कोरोनाकाल के बाद उथल-पुथल भरी दुनिया में 35 से कम उम्र के कई युवाओं में नया ट्रेंड दिखने लगा है। इन युवाओं ने भविष्य के लिए सोचना कम कर दिया है। इसके बजाय वे कमाई का अधिकांश हिस्सा खर्च कर रहे हैं, पहले के मुकाबले बचत कम कर रहे हैं और अपने जुनून को जी रहे हैं।
एक सर्वे में सामने आया था कि 18 से 35 साल के 45% युवाओं को जब तक चीजें सामान्य नहीं हो जातीं, तब तक बचत करने का कोई मतलब नहीं दिखता है। वहीं 55% ने कहा कि उन्होंने सेवानिवृत्ति योजना टाल दी है। दरअसल, महामारी में आइसोलेशन की जिंदगी ने लोगों को हर पल का आनंद लेने का महत्व सिखा दिया है। कई लोगों को जलवायु परिवर्तन, यूक्रेन-रूस युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता, बढ़ती मुद्रास्फीति और ऊपर-नीचे होते शेयर बाजार ने चिंता में डाल दिया है। इसलिए वे लंबे समय के लिए कोई योजना नहीं बना रहे हैं।
वित्तीय मनोवैज्ञानिक ब्रैड क्लॉन्ट्ज कहते हैं कि ‘अभी खर्च करो’ रवैया 2022 के युवाओं का ही शगल नहीं है। हर पीढ़ी का अपने जीवन के बारे में अलग दृष्टिकोण रहा है। महामंदी के दौरान भी कई लोगों का बैंकों से भरोसा उठ गया था। शीत युद्ध के चरम पर परमाणु युद्ध के डर ने कई युवाओं के योजना बनाने के तरीके को प्रभावित किया था। 2008 के वित्तीय संकट के दौरान भी कई लोगों को घर के लिए बचत करना व्यर्थ लगा था।
सर्वे में लोगों का मानना है कि इंडियन फैमिली सिस्टम आज भी मजबूत है। लोग आज भी मुश्किल समय पर लोग हमेशा पहला सहारा परिवार में ही तलाशते हैं। लोगों का कहना है कि परिवार हमेशा हर हालात में मदद के लिए साथ मौजूद रहता है। सर्वे में 43.3% लोगों का मानना है कि तमाम कामकाज और व्यस्तता के बावजूद वे अपने परिवार के साथ कम-से-कम तीन घंटे समय बिता लेते हैं।
कोविड जैसे मुश्किल दौर में करीब 77% लोगों को परिवार ने इमोशनली संभलने में मदद की है। 52% लोग मानते है कि परिवार हर स्थिति में उनका सबसे मजबूत सपोर्ट सिस्टम है। हालांकि, लोगों ने इस बात को लेकर चिंता भी जताई कि परिवारों में दूरियां बढ़ रही हैं और इसके दो प्रमुख कारण हैं। 44% लोगों ने कहा कि मोबाइल को अधिक समय देना इसका प्रमुख कारण है। साथ ही रिश्तों में मान-सम्मान घटा है। 32% लोगों ने तो 39% लोगों ने परिवार के सभी सदस्यों को समझने का श्रेय दिया है। अधिकांश लोग काम, करियर ढूंढने के कारण समय नहीं दे पाते हैं।