मुंबई महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के संभावित गठबंधन को लेकर उद्धव ठाकरे के नए बयान ने चर्चाओं को और हवा दे दी है। शुक्रवार को उद्धव ठाकरे ने संकेत देते हुए कहा, महाराष्ट्र की जनता के मन में जो है, वही होगा। संकेत नहीं, थोड़े दिनों में खबर देंगे।**”
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी प्रमुख दल रणनीतिक मंथन में जुटे हैं। उद्धव ने यह भी कहा कि उनके शिवसैनिकों और कार्यकर्ताओं के मन में कोई भ्रम नहीं है, जिससे यह अंदेशा और मजबूत हो गया है कि मनसे प्रमुख **राज ठाकरे** के साथ गठबंधन की बातचीत अंतिम चरण में हो सकती है।
### क्या दोनों ठाकरे भाई फिर एक साथ?
उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच लंबे समय से राजनीतिक दूरी रही है। शिवसेना से अलग होकर 2006 में राज ठाकरे ने मनसे की स्थापना की थी, लेकिन अब परिस्थितियां और समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं। हाल के दिनों में राज ठाकरे ने बीजेपी के साथ नरम रुख दिखाया था, लेकिन शिवसेना (यूबीटी) से गठजोड़ की संभावना ने समीकरण उलटने की आशंका पैदा कर दी है।
### भाजपा और महायुति को कितना नुकसान?
अगर उद्धव और राज ठाकरे एक मंच पर आते हैं, तो इसका असर महाराष्ट्र की राजनीति पर व्यापक हो सकता है:
मराठी वोट बैंक का बड़ा हिस्सा एकजुट हो सकता है, जिससे बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
मुंबई, ठाणे, नासिक जैसे शहरी इलाकों में मनसे की पकड़ और शिवसेना की जमीनी ताकत का मिलन, महायुति के शहरी वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है।
ग्रामीण इलाकों में भी कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) के साथ मिलकर महा विकास अघाड़ी (MVA) और भी सशक्त हो सकती है।