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Home national परिस्थितियों में मौत हो गई. ताशकंद से जब यह खबर भारत पहुंची तो हड़कंप मच गया.

परिस्थितियों में मौत हो गई. ताशकंद से जब यह खबर भारत पहुंची तो हड़कंप मच गया.

by Mansi

10 जनवरी 1966. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पाकिस्तानी राष्ट्रपति से मिलने ताशकंद पहुंचे, जो तब सोवियत रूस का हिस्सा हुआ करता था. दोनों नेताओं की तय समय पर मुलाकात हुई और एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर भी हो गया. लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) उस बातचीत के बाद अपने कमरे में गए और फिर जिंदा नहीं निकले. 10-11 जनवरी की दरम्यानी रात भारतीय प्रधानमंत्री की विदेशी धरती पर संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. ताशकंद से जब यह खबर भारत पहुंची तो हड़कंप मच गया.

इंदिरा ने रात 3 बजे किसको करवाया फोन?
11 जनवरी 1966 की उस रात इंदर कुमार गुजराल गहरी नींद में थे. करीब 3:00 बजे उनके फोन की घंटी बजी. गुजराल ने झुंझलाहट में फोन उठाया. मन में आशंका थी कि इतनी रात को कौन हो सकता है. दूसरी तरफ इंदिरा गांधी के सहयोगी यशपाल कपूर थे. उन्होंने धीमी आवाज में कहा-‘प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया. उन्हें हार्ट अटैक आया और बचाया नहीं जा सका…’ यह सुनकर गुजराल भौचक्के रह गए.

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में लिखती हैं कि गुजराल अभी संभलने की कोशिश कर रहे थे कि यशपाल कपूर ने आगे कहा, ‘मिसेज गांधी ने आपको फौरन बुलाया है…’ इतना कहकर फोन काट दिया. गुजराल, इंदिरा के करीबियों में शुमार थे और जब वह सूचना प्रसारण मंत्री थीं, तो उनके राजनीतिक सलाहकार भी रह चुके थे.

‘आप PM बन सकती हैं…’
चौधरी लिखती हैं कि इंदर कुमार गुजराल फौरन तैयार हुए और जैसे-तैसे इंदिरा गांधी के आवास पर पहुंचे. इंदिरा गांधी बहुत बेचैनी से उनका इंतजार कर रही थीं. गुजराल के पीछे-पीछे ‘सेमिनार’ के प्रकाशक रोमेश थापर भी वहां पहुंचे. वह अभी इंदिरा के बहुत करीबी थे. पूरे घटनाक्रम पर चर्चा के बाद बातों-बातों में इंदिरा गांधी ने इशारा किया कि अब वह विदेश मंत्री बन सकती हैं. इस पर गुजराल और रोमेश थापर ने एक-दूसरे को देखा और कहा ‘आप प्रधानमंत्री भी चुनी जा सकती हैं…’

उसी सुबह इंदिरा गांधी के करीबियों की एक और बैठक हुई. इस बार बैठक में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अनुभवी नेता उमाशंकर दीक्षित, राजा दिनेश सिंह जैसे नेताओं को भी बुलाया गया. इस बैठक में तय किया गया कि इंदिरा गांधी खुद अपना नाम आगे नहीं बढ़ाएंगी, बल्कि सामान्य व्यवहार करती रहेंगी. नीरजा चौधरी लिखती हैं कि ‘दीक्षित जैसे नेताओं को राजनीति की बहुत गहरी समझ थी और उन्हें पता था कि खुद से अपना नाम प्रस्तावित करने का मतलब है दौड़ शुरू होने से पहले ही बाहर हो जाना…’ उनकी रणनीति काम आई.

बन गईं पहली महिला PM
नीरजा चौधरी लिखती हैं कि इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री बनना इतना आसान नहीं था. बल्कि मोरारजी देसाई ने उन्हें कड़ी टक्कर दी. सांसदों के बीच देसाई की अच्छी-खासी लोकप्रियता भी थी, लेकिन कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष के. कामराज ने इंदिरा के पक्ष में माहौल बनाने में पूरी ताकत झोंक दी. इसकी बदौलत इंदिरा गांधी के पक्ष में 355 सांसदों ने वोट किया, जबकि देसाई के पक्ष में सिर्फ 169 सांसदों ने. नेता चुने जाने के बाद इंदिरा गांधी ने देसाई का पैर छूकर आशीर्वाद लिया और कुर्सी संभाल ली.

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