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पद्मश्री प्रो. वागीश शास्त्री का हुआ निधन, लंबे समय से थे बीमार

by City Headline

वाराणसी

पद्मश्री से सम्मानित योग-तंत्र विद्या के विद्वान महामहोपाध्याय प्रो .भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी (वागीश शास्त्री) का बुधवार रात निधन हो गया। प्रो. त्रिपाठी 88 वर्ष के थे। लंबे समय से बीमार चल रहे थे। गंभीर हाल में तीन मई को रवींद्रपुरी स्थित निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान यहां ही उन्होंने अंतिम सांस ली। अंतिम यात्रा गुरुवार को शिवाला स्थित आवास से निकाली जाएगी। हरिश्चंद्र घाट पर अंत्येष्टि की जाएगी।

प्रो. शास्त्री के निधन की सूचना मिलते ही संस्कृत जगत में शोक की लहर दौड़ गई। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने संस्कृत जगत की अपूरणीय क्षति बताया और कहा कि इस रिक्तता को भरना बहुत कठिन होगा। ख्यात संस्कृतविद् प्रो. वागीश शास्त्री का जन्म 24 जुलाई 1934 में मध्यप्रदेश के सागर जनपद के बिलइया ग्राम में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा वहीं प्राप्त की और फिर वृंदावन व काशी में अध्ययन किया। उन्होंने 1959 में वाराणसी के टीकामणि संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत प्राध्यापक के रूप में अपने अध्यापकीय जीवन की शुरुआत की थी।

इसके बाद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में अनुसंधान संस्थान के निदेशक व प्रोफेसर के पद पर 1970 में नियुक्त हुए और 1996 तक विश्वविद्यालय में कार्यरत रहे। वागीश शास्त्री ने 1983 में वाग्योगचेतनापीठम नामक संस्था की स्थापना की थी। इसके माध्यम से सरल विधि से बिना रटे पाणिनी व्याकरण का ज्ञान देते थे। उनके शिक्षा के लिए देश-विदेश से लोग उनके पास आते रहते थे। कई विदेशी शिष्य भी बने।

बता दें कि लगभग 30 वर्ष तक संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को अपनी सेवा देने वाले आचार्य वागीश शास्त्री को 1982 में ही काशी पंडित परिषद की ओर से महामहोपाध्याय की पदवी दी गई थी। वर्ष 2014 में प्रदेश सरकार की ओर से यशभारती सम्मान दिया गया था। इसी साल संस्कृत संस्थान ने विश्व भारती सम्मान दिया। वर्ष 2017 में दिल्ली संस्कृत अकादमी ने महर्षि वेद व्यास सम्मान प्रदान किया।

वहीं 2018 में पद्मश्री से सम्मानित किए गए। वर्ष 1993 में उन्हें अमेरिका ने सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट गोल्ड आफ आनर से सम्मानित किया था। काशी परंपरा के संस्कृत के विद्वान डा. वागीश शास्त्री को वर्ष 2013 में संस्कृत साहित्य में योगदान के लिए राष्ट्रपति के हाथों सर्टिफिकेट आफ मेरिट प्रदान किया गया। उन्हें राजस्थान संस्कृत अकादमी की ओर से बाणभट्ट पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

बीपीटी के नाम से थी ख्याति
प्रो. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी विदेशी शिष्यों में बीपीटी वागीश शास्त्री के नाम से भी जाने जाते थे। अंतरराष्ट्रीय संस्कृत व्याकरणज्ञ, उत्कृष्ट भाषाशास्त्री, योगी एवं तंत्र विद्या के ख्यात ज्ञाता थे। उन्होंने 19 साल की उम्र में निबंध लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने 40 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं और 300 से ज्यादा पांडुलिपियों का संपादन किया।

उनके 200 से अधिक निबंध और शोध पत्र राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे। वे पांचवीं विश्व संस्कृत सम्मेलनों में एक खंड के सचिव अध्यक्ष थे। सरस्वती भवन ग्रंथमाला जैसी कई श्रृंखलाओं के मुख्य संपादक रहे। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की पत्रिका सरस्वती सुषमा का लगभग 30 सालों तक उन्होंने संपादन किया था। विभिन्न विषयों पर किताबें लिखी हैं जिनमें व्याकरणिक और भाषाशास्त्र संबंधी शोध कार्य, नाटक, इतिहास, कविता, व्यंग्य, ऐतिहासिक शोध कार्य और आध्यात्मिक लेखन शामिल हैं।

आपको बता दें कि पाप गायिका मैडोना ने तरावली का गायन किया तो प्रो. वागीश शास्त्री ने उसमें गलतियां पाईं। उन्हें उच्चारण सिखलाया। मैडोना बीबीसी रेडियो के माध्यम से डा. शास्त्री के संपर्क में आई थीं और उच्चारण सीखा था।

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