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पढ़िए सीमा पर तैनात जवानों की अनसुनी कहानी, गलती की नहीं रहती गुंजाईश

by City Headline

भारत-पाकिस्तान बॉर्डर,
पोस्ट- बॉर्डर पॉइंट …..
ये खाली जगह जान बूझकर छोड़ा गया है। ताकि जवानों की पहचान जाहिर न हो (उनकी मर्जीनुसार)। यहां BSF के 40 जवान तैनात हैं। अब पढ़िए उनके 4 वक्त की कहानी…..

पहली कहानी:
BSF कैंप…..जिन जवानों को सुबह 6 बजे वाली शिफ्ट में ड्यूटी पर जाना है, वे उठ चुके हैं। टॉयलेट कॉमन है, इसलिए हर कोई अपनी बारी के इंतजार में कतार में खड़ा है। जो हालात हैं उसकी फोटो दिखा नहीं सकते क्योंकि फोटो लेने से भी मना किया है। जो लोग तैयार हो चुके हैं, वे ब्रेकफास्ट कर रहे हैं। तय वक्त पर बॉर्डर पर पहुंचना है, इसलिए जवान 5.30 बजे से पैदल निकलना शुरू कर रहे हैं। हाथों में इंसास राइफल है, पैरों में काले रंग के जूते, सिर पर कैप जिस पर BSF लिखा है। कुछ के हाथ में पानी की बोतल और बाइनाकुलर भी है। इसी बीच कैंप में रात वाली शिफ्ट से लौट रहे जवानों का सिलसिला भी जारी है।

दूसरी कहानी:
दोपहर के 12 बजे, जो लोग सुबह 6 बजे गए थे, उनकी शिफ्ट ओवर हो गई है। जवान बॉर्डर से कैंप के लिए निकलना शुरू कर चुके हैं। 12.30 बजे तक सब लौट आए हैं। कोई टॉयलेट में है, कोई अपने छोटे-मोटे काम निपटा रहा, तो कोई नहा रहा है। इन सब एक्टिविटी में दोपहर के 1.30 बज जाते हैं, फिर लंच शुरू होता है। बेड पर जाते-जाते किसी को 2 तो, किसी को 2.30 बज चुके हैं। इस बीच कुछ जवान मोबाइल लेकर आसपास कोई जगह ढूंढ रहे, जहां नेटवर्क आए तो घर बात हो जाए। जवानों के पास सोने के लिए अब महज 2 घंटे का वक्त है, क्योंकि शाम 6 बजे उन्हें फिर दूसरी शिफ्ट के लिए निकलना जो है।

तीसरी कहानी:
शाम के 4.30 बजे, जो जवान दो घंटे पहले सोए थे, उनके उठने का सिलसिला शुरू हो चुका है। कुछ कैंप के मेंटेनेन्स में जुट चुके हैं। कुछ देर काम के बाद डिनर शुरू हो गया है। डिनर के बाद शाम 5.30 बजे से जवान सरहद के लिए निकल रहे हैं। तय वक्त पर शाम 6 बजे जवान सरहद संभाल चुके हैं।

चौथी कहानी:
रात के 12 बजे, जो जवान शाम को गए थे, अब उनकी दूसरी शिफ्ट पूरी हो गई है। 12.30 बजे तक कैंप में जवानों के आने-जाने का सिलसिला लगा हुआ है। अगला एक घंटा रुटीन एक्टिविटी में जाता है। कोई रात के 2 बजे सोने गया है तो किसी को 2.30 बज गए। इन जवानों को दो घंटे बाद यानी 4.30 बजे तक किसी भी हाल में उठना होगा, क्योंकि सुबह 6 बजे फिर सरहद पर पहुंचना है यानी दोनों शिफ्ट में जवान मुश्किल से 4 घंटे ही सो पाए। वो भी टुकड़ों में, जिन्हें तुरंत नींद नहीं आती, वे और भी कम सो पाते हैं।

दरअसल, BSF में कोई फिक्स ड्यूटी आवर्स नहीं हैं। आमतौर पर एक BOP यानी बॉर्डर आउटपोस्ट के पास तीन से साढ़े किमी का एरिया होता है, जिसे 18 से 20 जवान दिन-रात संभालते हैं। जवानों की संख्या के आधार पर वर्किंग आवर्स बदलते रहते हैं। BSF में जवानों का पहला प्रमोशन ही 18 से 20 साल में होता है। मतलब यदि कोई सिपाही की पोस्ट पर जॉइन हुआ है तो वो अगले 20 सालों तक सिपाही ही रहेगा। अफसरों का प्रमोशन भी 10 से 12 साल में होता है। ऐसे में एक ही पोस्ट पर एक ही तरह का काम करते-करते जवान ऊब जाते हैं और फ्रस्ट्रेट हो जाते हैं।

BSF में अभी करीब 20 से 22 हजार पद खाली हैं। 2016 के बाद से कोई सीधी भर्ती नहीं हुई है। हर यूनिट में एवरेज 100-125 जवानों की वैकेंसी है। खाली पद न भरने से काम का एक्स्ट्रा बर्डन आ रहा है। शिफ्ट टाइम पर खत्म नहीं हो पाती और छुटि्टयां मिलने में दिक्कत होती है। हर साल खाली पद भर लिए जाएं तो ऐसी नौबत न आए।

BSF में कहा जाता है कि गलती से भी गलती नहीं होनी चाहिए। जीरो एरर पर काम होता है। छोटी सी भी गलती में बड़ी सजा मिलती है। मान लीजिए दो जवानों के बीच में बहस ही हो गई और यदि ये बात कमांडेंट तक पहुंच गई तो जवानों को एक से तीन महीने तक की जेल हो सकती है। गलती होने पर 7 दिन की जेल देना प्रैक्टिस में है। कैंपों में अंदर ही जेल होती है।

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