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Home Lucknow दस सिखों के एनकाउंटर मामले में पुलिस को नहीं मिली राहत, 25 मई को होगी सुनवाई

दस सिखों के एनकाउंटर मामले में पुलिस को नहीं मिली राहत, 25 मई को होगी सुनवाई

by City Headline

लखनऊ

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने पीलीभीत में वर्ष 1991 में दस सिखों की एनकाउंटर में हत्या करने के मामले में 2016 में दोशी करार दिये गये 34 पुलिसकर्मियों केा उनकी अपील के विचाराधीन रहने तक जमानत पर रिहा करने से इंकार करते हुए उनके अलग अलग जमानत प्रार्थना पत्रों पर एक साथ सुनवाई करते हुए खारिज कर दिया है। इसके साथ ही केार्ट ने उनकी अपीलों पर अंतिम सुनवाई के लिए 25 जुलाई की तिथि नियत की है। यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बृजराज सिंह की पीठ ने देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से अपीलों के साथ अलग से दाखिल जमानत प्रार्थना पत्रों को खारिज करते हुए पारित किया।

अभियोजन कथानक के अनुसार कुछ सिख तीर्थयात्री 12 जुलाई 1991 को पीलीभीत से एक बस से तीर्थयात्रा के लिए जा रहे थे। इस बस में बच्चे और महिलाएं भी थीं। इस बस को रोक कर 11 लोगों को उतार लिया गया। इनमें से 10 की पीलीभीत के न्योरिया, बिलसांदा और पूरनपुर थानाक्षेत्रों के क्रमशः धमेला कुंआ, फगुनिया घाट व पट्टाभोजी इलाके में एनकाउंटर दिखाकर हत्या कर दी गई। आरोप है कि 11वां शख्स एक बच्चा था जिसका अब तक कोई पता नहीं चला। इस केस की विवेचना पहले पुलिस ने किया किन्तु केस में फाइनल रिपेार्ट लगा दी। जिसके बाद एक अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने जाचं सीबीआई केा सौंप दिया।

सीबीआई ने विवेचना के बाद 57 अभियुक्तों केा आरेापित किया। विचारण के दौरान दस अभियुक्तों की मौत हो गयी। सीबीआई की लखनऊ स्थित विषेश अदालत ने 4 अप्रैल 2016 केा केस में 47 अभियुक्तों को घटना में दोशी करार दिया और उम्र कैद की सजा सुनायी। जिसके खिलाफ सबने हाईकोर्ट में अलग अलग अपीलें दाखिल किया। अपीलों के साथ सबने जमानत की अर्जियां भी दी ताकि उन्हें अपीलों के विचाराधीन रहने के दौरान जमानत मिल जाये। हाईकोर्ट ने 12 अभियुक्तेां केा उम्र या गंभीर बीमारी के आधार पर पहले ही जमानत दे दी थी। षेश की जमानत अर्जी पर सुनवायी करते हुए हाईकेार्ट ने उन्हें खारिज कर दिया है और उनकी अपीलेां केा अंतिम सुनवायी के लिए सूचीबद्ध कर दिया है।

अपीलार्थियों की ओर से दलील दी गई कि मारे गए दस सिखेां में से बलजीत सिंह उर्फ पप्पू, जसवंत सिंह उर्फ ब्लिजी, हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटा तथा सुरजान सिंह उर्फ बिट्टू खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट के आतंकी थे, इसके साथ ही उन पर हत्या, डकैती, अपहरण व पुलिस पर हमले जैसे जघन्य अपराध के मामले दर्ज थे। अपीलार्थियों की ओर से आगे दलील दी गई थी कि मृतकों में कई का लम्बा आपराधिक इतिहास था। यही नहीं वे खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट नामक आतंकी संगठन के सदस्य थे। इस बिंदु पर केार्ट ने अपने आदेश में कहा है कि मृतकों में से कुछ का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था, ऐसे में सभी को आतंकी मानकर उन्हें उनकी पत्नियों और बच्चों से अलग कर के मार देना किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता।

केार्ट ने आगे कहा कि मृतकों में से कुछ यदि असमाजिक गतिविधियों में शामिल भी थे व उनका आपराधिक इतिहास था, तब भी विधि की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए था व इस प्रकार के बर्बर और अमानवीय हत्याएं उन्हें आतंकी बताकर नहीं करनी चाहिए थी।
कोर्ट ने रमेश चंद्र भारती, वीरपाल सिंह, नत्थु सिंह, धनी राम, सुगम चंद, कलेक्टर सिंह, कुंवर पाल सिंह, श्याम बाबू, बनवारी लाल, दिनेश सिंह, सुनील कुमार दीक्षित, अरविंद सिंह, राम नगीना, विजय कुमार सिंह, उदय पाल सिंह, मुन्ना खान, दुर्विजय सिंह पुत्र टोडी लाल, महावीर सिंह, गयाराम, दुर्विजय सिंह पुत्र दिलाराम, हरपाल सिंह, रामचंद्र सिंह, राजेंद्र सिंह, ज्ञान गिरी, लखन सिंह, नाजिम खान, नारायन दास, कृष्णवीर, करन सिंह, राकेश सिंह, नेमचंद्र, शमशेर अहमद, सतिंदर सिंह व बदन सिंह के जमानत प्रार्थना पत्रों को खारिज किया है।

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