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ज्ञानवापी का फैसला सुनाने से पहले सिविल जज ने व्यक्त की चिंता, बोले- बनाया जा रहा डर का माहौल

by City Headline

वाराणसी

ज्ञानवापी प्रकरण में प्रतिवादी पक्ष की ओर से एडवोकेट कमिश्नर पर सवाल खड़ा करने को लेकर न्यायालय ने कहा कि एक सामान्य कमीशन कार्यवाही है जो अधिकतर सिविल वादों में सामान्यतया कराई जाती है। सिविल जज (सीनियर डिविजन) रवि कुमार दिवाकर ने कहा कि इस साधारण से सिविल वाद को असाधारण बनाकर डर का माहौल पैदा किया जा रहा है। डर इतना है कि अपनी व परिवार की सुरक्षा की चिंता बनी रहती है। घर से बाहर होने पर बार-बार पत्नी के द्वारा सुरक्षा के प्रति चिंता व्यक्त की जाती है।

बता दें कि दिवाकर ने कहा,इस दीवानी मामले को असाधारण मामला बनाकर भय का माहौल पैदा कर दिया गया है। डर इतना है कि मेरा परिवार हमेशा मेरी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहता हैबुधवार को लखनऊ में मां ने बातचीत के दौरान मेरी सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की। मीडिया की खबरों से उन्हें जानकारी हुई कि शायद मैं भी कमिश्नर के रूप में मौके पर जा रहा हूं। इस पर मां ने मुझे मना किया कि मैं मौके पर कमीशन पर न जाऊं।

इसी के साथ ही ज्ञानवापी प्रकरण में वादी पक्ष (पांच महिलाओं) की ओर से दाखिल प्रार्थना पत्र का निस्तारण करते हुए गुरुवार को सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर टिप्पणी की है। सिविल जज ने कहा है कि अहंकार के कारण अफसर न्यायालय के आदेश का अनुपालन कराने में लापरवाही बरतते हैं।

अदालत ने कहा कि वादी की ओर से 41 पृष्ठ का विस्तृत व सुस्पष्ट वाद पत्र दाखिल किया गया है। इसकी भाषा ऐसी नहीं है कि एक सामान्य प्रज्ञावान व्यक्ति के समझ में न आए। वाद पत्र में वर्णित आधारों पर कमीशन की कार्यवाही किए जाने का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। जिला प्रशासन को इतनी स्पष्ट भाषा क्यों समझ में नहीं आई, यह बात अदालत की समझ से परे है। जिला प्रशासन द्वारा कमीशन कार्यवाही में रुचि ली गई होती तो यह अब तक पूर्ण हो चुकी होती।

वादी पक्ष ने प्रार्थना पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि जिला प्रशासन की ओर से सहयोग नहीं किया जा रहा है। अदालत ने कहा कि प्राय: यह देखने में भी आता है कि जिला प्रशासन के अधिकारी अपने अहंकार के कारण न्यायालय के आदेश का अनुपालन कराना उचित नहीं समझते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा समय-समय पर पारित आदेशों का अनुपालन तब तक नहीं करते, जब तक उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही नहीं की जाती है। उच्चतम न्यायालय द्वारा भी समय-समय पर प्रशासनिक अधिकारियों के संबंध में न्यायालयों के आदेशों का अनुपालन न कराने के संबंध में सख्त टिप्पणियां की गई हैं।

कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी टिप्पणी की कि जिला प्रशासन के अधिकारी सही तरीके से तथ्यों को मुख्यमंत्री के समक्ष नहीं रखते हैं। अपने व्यक्तिगत हितों को दृष्टिगत रखते हुए उन्हें जानकारी देते हैं। हाईकोर्ट द्वारा संबंधित अधिकारी पर अर्थदंड लगाया जाता है तो प्रदेश सरकार उसके विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में जाती है। इससे सरकारी धन का व्यय होता है, जो जनता से कर के रूप में लिया जाता है। अर्थात आम जनता के धन का दुरुपयोग होता है।

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