बीजिंग: चीन ने अपनी सेना, पीएलए (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) के लिए 10 लाख आत्मघाती कामीकाजी ड्रोन खरीदने का बड़ा ऑर्डर दिया है, जो 2026 तक आपूर्ति किए जाएंगे। यह कदम दुनियाभर में चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि इन ड्रोन का इस्तेमाल युद्ध की रणनीति में एक नया मोड़ लाने की क्षमता रखता है। चीन ने यह निर्णय ऐसे समय में लिया है जब ड्रोन तकनीक ने यूक्रेन युद्ध जैसे संघर्षों में अपनी प्रभावशीलता साबित की है, जहां इस प्रकार के विस्फोटक ड्रोन ने काफी नुकसान पहुंचाया है।
कामीकाजी ड्रोन का प्रभाव
आत्मघाती ड्रोन, जो मिसाइलों की तुलना में सस्ते होते हैं, आधुनिक युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यूक्रेन में रूस के खिलाफ इनका व्यापक उपयोग हुआ, जिससे ड्रोन युद्ध का महत्व और बढ़ गया है। इस तकनीक का इस्तेमाल अर्मीनिया और अजरबैजान के बीच हुए संघर्ष में भी देखा गया था, जिसमें अजरबैजान को विजय मिली। अब, चीन ने भी अपने सैन्य अभियानों में इस तकनीक का समावेश करने का फैसला किया है, और इसके लिए उसने बड़े पैमाने पर ड्रोन खरीदने का कदम उठाया है।
चीन का इरादा और भारत के लिए खतरे की घंटी
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का यह कदम ताइवान के खिलाफ संभावित युद्ध के लिए एक रणनीतिक तैयारी हो सकता है, जहां वह इन ड्रोन का इस्तेमाल भारी संख्या में कर सकता है। इसके अलावा, यह भारत के लिए भी एक गंभीर चुनौती बन सकता है, क्योंकि ये ड्रोन भारतीय सीमा पर भी प्रयोग किए जा सकते हैं। चीन की सेना ने पहले ही अपनी ट्रेनिंग प्रोग्राम में ड्रोन युद्धकला को प्रमुखता से शामिल किया है और इस पर युद्धाभ्यास कर रही है।
भारत की स्थिति
भारत के पास पहले से ही हारूप ड्रोन जैसे हमलावर ड्रोन मौजूद हैं, जिन्हें उसने आयात किया है। हालांकि, चीन के पास अब बड़े पैमाने पर कामीकाजी ड्रोन उपलब्ध होने से भारत के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले समय में इन ड्रोन को आयात करना भारत के लिए महंगा साबित हो सकता है, जिससे उसकी सैन्य तैयारियों पर असर पड़ सकता है। चीन के इस फैसले से साफ है कि वह भविष्य के युद्धों में ड्रोन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनने के लिए तैयार है, और इसके साथ ही यह भारत के लिए एक बढ़ती हुई चुनौती का संकेत है