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गांधी परिवार के नेतृत्व पर सोनिया गांधी ने लगाया विराम, सामूहिक नेतृत्व की मांगों का बंद किया रास्ता

by City Headline

नई दिल्ली

कांग्रेस में लंबे अर्से से चल रही अंदरूनी उथल-पुथल के दौर के बीच उदयपुर चिंतन शिविर से लेकर 2024 के चुनाव के लिए टास्क फोर्स बनाने के पिछले कुछ दिनों में उठाए गए कदमों के जरिए सोनिया गांधी ने पार्टी में गांधी परिवार के नेतृत्व की पकड़ पर उठाए जाते रहे संशय के सवालों को लगभग विराम दे दिया है। टास्क फोर्स का गठन कर नेतृत्व ने जहां पार्टी में छायी गहरी निराशा के दौर को थामने की शुरूआत कर भविष्य की बड़ी जमीनी राजनीतिक लड़ाई के लिए संगठन को तैयार करने का संदेश देने की कोशिश की है।

वहीं अहम मुद्दों पर सलाह-मशविरे के लिए राजनीतिक मामलों के समूह का गठन कर कांग्रेस में सामूहिक नेतृत्व की उठाई जा रही मांगों को नकार दिया है। इसका संदेश साफ है कि पार्टी में असंतोष की उठाई जा रही आवाजों के लिए अब ज्यादा जगह नहीं है और न ही कांग्रेस में गांधी परिवार के नेतृत्व को चुनौती देने की कोई गुंजाइश। कटु आलोचक कपिल सिब्बल को भी पार्टी से अलग होकर अपनी राह बनानी पड़ी।

उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब समेत पांच राज्यों के चुनाव में तीन महीने पहले कांग्रेस की हुई करारी हार के बाद पार्टी में असंतोष का सुर तेज हुआ था और गांधी परिवार के नेतृत्व पर निशाना साधते हुए गंभीर सवाल उठाए गए थे। कांग्रेस में सामूहिक नेतृत्व की मांग जोर-शोर से उठाई गई और इसे देखते हुए पार्टी का अंदरूनी तूफान इतनी जल्दी कमजोर पड़ जाएगा इसकी उम्मीद शायद कांग्रेसजनों को भी नहीं थी।

हांलाकि 12 मार्च को कांग्रेस कार्यसमिति की पहली बैठक बुलाकर पार्टी में बदलाव करने की घोषणा से लेकर चिंतन शिविर बुलाने का तत्काल ऐलान कर सोनिया गांधी ने इस तूफान को थामने की पहल शुरू कर दी। इस बीच ढाई महीने की सुलह-सफाई की कसरत के दौरान जी 23 समूह के नेताओं में सबसे ज्यादा जमीनी पकड़ रखने वाले हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडृडा को नेतृत्व ने साध लिया। चिंतन शिविर के लिए गठित छह समूह में एक कृषि-किसानों के मसले से जुड़े समूह का जिम्मा हुडडा को ही सौंप दिया गया।

उदयपुर चिंतन शिविर के पहले ही दिन कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे में बड़े बदलावों की रूपरेखा रख दी गई जिसे पार्टीजनों ने हाथोंहाथ स्वीकार कर मुहर लगा दी। चिंतन शिविर में देश भर से जुटे पार्टी नेताओं के इस मूड को भांपते हुए ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने समापन संबोधन में नेतृत्व को चुनौती देने के लिहाज से उठाए जा रहे सामूहिक नेतृत्व की मांग को सीधे खारिज कर दिया।

असंतुष्ट नेताओं को साधने के लिए अहम मसलों पर सलाह-मशविरा के लिए उन्होंने कार्यसमिति के सदस्यों का एक सलाहकार समूह बनाने की घोषणा की मगर यह साफ कर दिया कि यह सामूहिक नेतृत्व जैसी कोई व्यवस्था नहीं होगी और उनका फैसला ही अंतिम होगा। इसके अनुरूप ही मंगलवार को टास्क फोर्स के साथ राजनीतिक मामलों के समूह का गठन हुआ जिसमें असंतुष्ट खेमे के दो प्रमुख नेताओं गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा को जगह दी गई है।

आजाद और शर्मा की राज्यसभा की उम्मीदवारी का फैसला भी अब पूरी तरह नेतृत्व के हाथों में है। चिंतन शिविर के दो हफ्ते के भीतर ही सोनिया गांधी जिस अंदाज और गति से पार्टी के फैसले ले रही हैं उससे साफ है कि नेतृत्व पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से डांवडोल हुई स्थिति से बाहर निकल आया है और गांधी परिवार के नेतृत्व को चुनौती देने की पार्टी में राह लगभग बंद हो गई है।

गांधी परिवार के नेतृत्व पर सीधे सवाल उठाने वाले कांग्रेस के असंतुष्ट जी 23 खेमे के सबसे मुखर नेता रहे कपिल सिब्बल का पार्टी छोडऩे का फैसला भी कुछ इसी ओर इशारा कर रहा है। सिब्बल को उदयपुर चिंतन शिविर के लिए न्यौता देकर नेतृत्व ने सुलह का विकल्प जरूर दिया मगर इस दिग्गज वकील को यह बखूबी मालूम था कि गांधी परिवार से नेतृत्व छोडऩे की मांग करने के बाद पार्टी टिकट पर राज्यसभा में वापसी की उनके लिए गुंजाइश नहीं बची और इसीलिए सिब्बल ने अपनी नई राह चुन ली है।

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