लखनऊ
गर्भावस्था और हाइपोथायरायडिज्म के बीच रिश्ता गहरा होता जा रहा है। अभी तक माना जाता रहा है कि गर्भावस्था के दौरान हाइपोथायरायडिज्म की परेशानी की आशंका 4.8 से 11 प्रतिशत तक है। लेकिन हाल ही में हुए शोध ने साबित किया है इस परेशानी की आशंका 31 से 33 फीसद तक हो सकती है। एसोसिएशन ऑफ फिजीशियन आफ इंडिया की शोध रिपोर्ट में ये तथ्य सामने आए हैं।
प्रिवलेंस आफ थायराइड डिजीज इन प्रेग्नेंसी एंड इट्स रिलेशन टू आयरन डिफिसिएंसी विषय के तहत 491 गर्भवती महिलाओं पर शोध हुआ। इसमें पता चला कि 31.77 फीसद महिलाएं हाइपोथायरायडिज्म की शिकार थीं, इनमें थायराइड स्टिमुलेशन हार्मोन (टीएसएच) का स्तर 2.5 से अधिक था और थायराक्सिन (टी4) का स्तर कम (ओवर्ट हाइपोथायरायडिज्म) था। इन सभी महिलाओं में आयरन की कमी पता लगाने के लिए सीरम फेरिटिन का भी स्तर देखा गया। हाइपोथायरायडिज्म से ग्रस्त 38.46 महिलाओं में आयरन की कमी मिली, जबकि 61.53 फीसद में आयरन का स्तर सामान्य मिला।
हाइपोथायराइड के लक्षण (प्रतिशत में)
थकान- 35.6
बाल गिरना- 31.7
ठंड लगना- 16.9
ड्राइ स्किन- 6.72
कब्ज- 2.65
शरीर का भार बढऩा- 2.24
याददाश्त में कमी- 2.04
गले में गांठ (घेघा)- 6.41
एसजीपीजीआइ के मेटरनल एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ (एमआरएच) विभाग की प्रो. इंदु लता साहू के मुताबिक हाइपोथायरायडिज्म थायराइड ग्रंथि से थायराइड हार्मोन के अपर्याप्त उत्पादन के कारण होता है। यह आयोडीन की कमी से या प्रसव के पश्चात हाइपोथायरायडिज्म के परिणामस्वरूप भी हो सकता है। टीएसएच के उच्च स्तर और टी4 के निम्न स्तर के कारण भी थायराइड की परेशानी होती है। टीएसएच के बढ़े हुए स्तर मगर टी4 के सामान्य स्तर का मतलब यह हो सकता है कि भविष्य में थायराइड होने का खतरा है।
आपको बता दें कि प्रो. इंदुलता कहती है कि थायराइड के स्तर का परीक्षण और इलाज गर्भाधान से पहले ही या गर्भावस्था में जितना जल्दी हो सके कर लेना चाहिए। गर्भावस्था की शुरुआत में इसका पता चलने और उचित दवाएं लेने पर शिशु के स्वस्थ होने की पूरी संभावना होती है।