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कांवड़ रूट पर नामप्लेट लगाने की अब अनिवार्यता खत्म हो गई है, लेकिन दुकानदारों को सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का पालन करना होगा।

by Nikhil

सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा के मार्ग पर रेस्तरां और दुकानों पर नेम प्लेट लगाने संबंधी आदेश पर तात्कालिक रोक लगा दिया है। अदालत ने यह भी कहा कि खाद्य विक्रेताओं और दुकान के मालिकों तथा कर्मचारियों को नाम लिखने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी।

सुप्रीम कोर्ट के दौरान सवाल उठा कि क्या कांवड़िएं यह उम्मीद कर सकते हैं कि उनका खाना किसी विशेष श्रेणी के लोगों द्वारा तैयार किया जा रहा है? पीठ ने कहा कि वे सरकारी आदेश पर अंतरिम रोक लगाने का समर्थन करते हैं। उन्होंने बताया कि रेस्तोरेंट, होटल और खाद्य विक्रेताओं को अपने खाने की वैरायटी की सूची प्रदर्शित करने की आवश्यकता है, लेकिन उन्हें मालिकों या कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।

इससे पहले भारतीय जनता पार्टी के सांसद अरुण गोविल ने उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय का समर्थन व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि दुकान के मालिकों के नाम प्रदर्शित करने में कोई बुराई नहीं है और ग्राहकों को यह जानने का हक है कि उनका खाना कहां से आता है।

2006 में शुरू हुए यूपीए सरकार द्वारा इस नियम का पालन किया गया था, जिस पर उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने भी समर्थन व्यक्त किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वर्तमान सरकार केवल मौजूदा कानूनों का पालन कर रही है और कोई नया कानून नहीं ला रही है।

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और गैर सरकारी संगठनों ने यूपी, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मोइत्रा की याचिका में इन आदेशों पर रोक लगाने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने अदालत को बताया कि ये सरकारी आदेश विभाजन पैदा करते हैं क्योंकि इनसे अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव बढ़ सकता है और उनका आर्थिक बहिष्कार हो सकता है। इसे एक सभ्य समाज के लिए उचित नहीं माना गया।

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