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एससीओ सम्मेलन में भाग लेने जाएंगे मोदी, जिनपिंग, पुतिन और शरीफ से हो सकती है मुलाकात

by Suyash
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नईदिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 और 16 सितंबर को समरकंद में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भाग लेने के लिए उज्बेकिस्तान जाएंगे। 2019 में किर्गिस्तान के बिश्केक में हुई बैठक के बाद यह पहली इन-पर्सन बैठक होने वाली है। प्रधानमंत्री मोदी के अलावा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ समेत सदस्य देशों के नेता इस सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।
भारत के लिए इस बैठक में मौजूद होना बाकी सब नजरियों के अलावा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके बाद एक साल तक भारत इस संगठन की अध्यक्षता करेगा। इस नाते अगले साल एससीओ की बैठक भारत में होगी और इसमें चीन, रूस और पाकिस्तान आदि देशों के नेता शामिल होंगे। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा पर इसलिए भी नजर है क्योंकि वो बैठक के इतर दूसरे नेताओं के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग की आखिरी व्यक्तिगत द्विपक्षीय मुलाकात नवंबर, 2019 में बीआरआईसी सम्मेलन के दौरान हुई थी। उसके बाद दोनों देशों के रिश्तों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर विवाद को लेकर काफी तनाव आ गया था। हालांकि, अब एलएसी के दो विवादित स्थानों पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 और गोगरा-हॉटस्प्रिंग क्षेत्र से सैनिकों की वापसी शुरू होने के बाद दोनों पक्षों के पास उच्चतम स्तर के नेताओं की बातचीत का मौका आया है।
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी रूस और ईरान के राष्ट्रपतियों से मुलाकात कर सकते हैं, लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ उनकी मुलाकात को लेकर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं मिली है। अधिकारियों ने बताया कि उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ नरेंद्र मोदी की मुलाकात तय है। जिस समरकंद शहर में इस बैठक का आयोजन होने जा रहा है, वह ताशकंद से 300 किलोमीटर की दूरी पर है।
सूत्रों के अनुसार, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद स्थितियां और उनके असर और अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को लेकर बैठक में चर्चा हो सकती है। बता दें कि एससीओ के कई सदस्य अफगानिस्तान के पड़ोस में स्थित हैं।
एससीओ एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है। इसका गठन 2001 में हुआ था और यह एक यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है, जिसका लक्ष्य इस क्षेत्र में शांति, सुरक्षा एवं स्थिरता बनाए रखना है। फिलहाल चीन, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान समेत आठ देश इसके सदस्य है। इस बार इसमें दो नए सदस्य देश जुड़ सकते हैं। इसके अलावा चार देशों के पास ऑब्जर्वर स्टेट और छह देशों के पास डायलॉग पार्टनर का दर्जा है।