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सैनी, बर्क और शेखजादा… कौन होगा शहजादा? यूपी की इस सीट पर सपा-भाजपा के बीच सीधा मुकाबला

by Nikhil

इस चुनावी संघर्ष में, यूपी की एक महत्वपूर्ण सीट पर तीन उम्मीदवारों की उपस्थिति ने राजनीतिक दलों के बीच जोरदार टक्कर का माहौल बना दिया है। सैनी, बर्क, और शेखजादा नामों के इस त्रिमुखी युद्ध में, एक प्रतिस्पर्धी अपने विचारों, कार्यक्रमों, और नेतृत्व के साथ लोगों के दिलों को जीतने के लिए प्रयासरत है। क्या ये तीनों में से कोई एक शहजादा बन पाएगा, जो इस सीट पर अपने प्रतिद्वंदियों को पीछे छोड़कर आगे निकलेगा, या फिर यह मैदान किसी और के लिए राजनीतिक सिक्का पलट देगा? चुनावी ताकत का सच्चा परिचय इस महायुद्ध में निकलेगा।

यूपी की संभल लोकसभा सीट पर सपा और भाजपा के बीच एक महत्वपूर्ण चुनावी जंग लड़ रहे हैं। इस सीट पर बसपा भी महसूस की जा रही है, और सैनी, बर्क, और शेखजादा इस मुकाबले के मुख्य उम्मीदवार हैं। इन उम्मीदवारों में से किसी एक को यहां विजयी बनने का इंतजार है। यहां चुनावी रणनीति और समीकरणों का अहम भूमिका होगा, जहां जातीय और सामाजिक प्रकृतियां भी महत्वपूर्ण होंगी। इस चुनाव के नतीजे से पहले, संभल लोकसभा सीट पर राजनीतिक समीकरण की गहराई को समझना महत्वपूर्ण होगा।

आधे से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले संभल में भाजपा और सपा के बीच कड़ा मुकाबला है। हां, यदि बसपा उम्मीदवार मुस्लिम वोटों में तगड़ी सेंध लगा गए और उनका परंपरागत दलित वोटर भी उन्हें पूरी शिद्दत से वोट कर गया, तो उनके कच्चे समीकरण को पक्का होते देर नहीं लगेगी।

संभल सीट पर इस बार का चुनाव बेहद रोमांचक होने की उम्मीद है। कारण, यहां से पिछला चुनाव जीते पुराने दिग्गज डॉ. शफीकुर्रहमान वर्क के निधन के बाद सपा ने उनके पोते जियाउर्रहमान वर्क पर दांव लगाया है। छोटे बर्क कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और अब बड़े होने की चाह में एड़ी-चोटी का जोर लगाए हैं।

उधर, भाजपा ने परमेश्वर लाल सैनी पर और बसपा ने पूर्व विधायक सौलत अली पर दांव लगाया है। सौलत अली शेखजादा बिरादरी से आते हैं।
संभल के सियासी शतरंज की बिसात पर मुद्दे गौण हैं। यहां पूरा गुणा-भाग जातियों का है। हालांकि, कई जगह रोजगार और कारोबार का मुद्दा भी आता है, पर उससे ऊपर जाति, धर्म के समीकरण ही हैं।

सुबह के करीब 11 बजे हम यूसुफपुर गांव पहुंचे। यहां पेड़ की छांव में बैठे लोग चर्चा में मशगूल थे। चर्चा में पता चला कि यहां आसपास के गांवों के काफी लोग ट्रांसपोर्ट कारोबारी हैं। ज्यादातर के पास बड़े ट्रक हैं। कारण, जमीन एसईजेड में चली गई और लोगों ने अब दूसरा धंधा शुरू कर दिया है।
यहां मिले मोहम्मद नदीम कहते हैं, क्या करें धंधा ही मंदा हो गया है। डीजल का रेट तो मार ही रहा था, ऊपर से जीएसटी और टोल टैक्स ने कमर तोड़ दी। अब तो बस गुजारा ही हो रहा है। आसिम भी हां में हां मिलाते हैं। अजीम कहते हैं, भाई! यहां तो इस बार भी साइकिल ही दौड़ रही है।
गुणा-भाग में जुटे हैं मतदाता
यूसुफपुर से निकल हम डींगरपुर गांव पहुंचे। चुनावी चर्चा छिड़ते ही प्रधान मो. ताहिर कहते हैं, देखिए, यहां आधे से ज्यादा मुसलमान हैं। डेढ़ लाख से ज्यादा यादव वोटर हैं। सपा को भला कौन रोक सकता है? तपाक से गौरव ठाकुर मैदान में कूद पड़े। वह बोले, 2014 में भी तो थे…। तब तो भाजपा को नहीं रोक पाए थे। अरे भाई, चुनावी बयार कब कौन सा रुख ले ले, किसी को नहीं पता। पास में ही बैठे रतनपुर कलां गांव के प्रधान नजाकत अली बोले, ना भाई ना… कुछ भी कहो, बर्क चुनाव जीत रहे हैं। जो हमारे हैं हम तो उन्हें वोट देंगे। मुखालिफ को वोट क्यों दिया जाए।
कनेक्टिवटी का दर्द तो है
दोपहर का वक्त है। तपती दुपहरी में कुंदरकी के गुलड़ चौराहा स्थित एक प्रतिष्ठान पर युवा जमे हुए थे। हम भी उनकी चर्चा में शामिल हो गए। मो. अजीम बोले, सबके अपने-अपने मुद्दे हैं, पर अब लोगों को रोजगार कहां मिल रहा है। इसके बाद भी सब अपनों को ही वोट देंगे।
डॉ. सैदान ने उनका समर्थन करते हुए कहा, हर बात को अब अलग ही रंग दिया जा रहा है। स्थानीय मुद्दों को लोग भूल गए गए हैं। संभल से गजरौला तक रेलवे लाइन नहीं है। यह पीर पर्वत सरीखी है, पर किसी ने आज तक नहीं सुनी। बिलारी से संभल तक अंग्रेजों के जमाने से लाइन है। यदि इसे गजरौला तक ले जाया जाता, तो आज यहां विकास का नजारा कुछ और ही होता। मुरादाबाद से संभल तक मात्र एक ही गाड़ी है, जो यहीं से वापस चली जाती है।
ट्रेन का चालक खुद करता है फाटक बंद
रेहान कहते हैं, सिरसी कस्बे के रेलवे फाटक पर कोई गेटमैन नहीं है। गेट के करीब पहुंचते ही ट्रेन रोककर चालक उतरता है और खुद गेट बंद करता है। ट्रेन गेट क्रॉस कर जाती है तो फिर उसे रोकता है और गार्ड उतरकर गेट खोलता है। यह रोज का काम है। यह स्थिति बता देती है कि इस क्षेत्र पर सरकारों ने कितना ध्यान दिया।

कानून-व्यवस्था का मुद्दा भी कम नहीं

दोपहर बाद हम बिलारी तहसील परिसर पहुंचे। यहां मिले साबिर हुसैन कहते हैं, सपा का तगड़ा समीकरण बना है। विजय सिंह कहते हैं, कानून-व्यवस्था ऐसी है कि सारी गुंडागर्दी सरकार ने खत्म कर दी है। यह मुद्दा हावी है और इसलिए भाजपा चुनाव जीतेगी। इसपर साबिर कहते हैं, ये काम तो सपा ने ही कर दिया था। भाजपा तो बस भुना रही है। कुलदीप कहते हैं, बसपा किसी का खेल बिगाड़ सकती है।
सारे गुंडे या तो जेल में हैं या सरेंडर कर गए
शाम के चार बजे हैं। चंदौसी बाजार में सुभाष रोड फव्वारा चौक पर चाय की टपरी पर महफिल जमी थी। चुनावी चर्चा पर अजय इलायची लाला कहते हैं, भाजपा का कोई मुकाबला नहीं है। मोदी की देश-विदेश में चर्चा है। दीपक कश्यप ने तो अपना नाम ही दीपक मोदी कर लिया है। डिंपल मखीजा, शिरोमणि शर्थी, सत्यप्रकाश सिंह सभी भाजपा की वकालत करते दिखे। कहा, सारे गुंडे या तो जेल में है या सरेंडर कर गए हैं।
छुट्टा पशु भी चर्चा में
शाम के पांच बजे हैं। मोहम्मदपुर टांडा में एक बरात जाने की तैयारी हो रही थी, तो वहीं बराबर में बैठे लोग चुनावी चर्चा में मशगुल थे। बस में बरात ले जाने वाले चालक अर्जुन सिंह कहते हैं, अब किसी भी समय कहीं भी रात देर रात आ जा सकते हैं। इरफान कहते हैं। बाकी सब तो ठीक है। छुट्टा पशुओं ने नाक में दम कर दिया है।

  • संभल के चुनावी रण में जो भी जीतेगा, वह पहली बा संसद में पहुंचेगा। परमेश्वर लाल सैनी एमएलसी रह चुके हैं। सैनी वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में संभट सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, पर सपा के डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क के हाथों उन्हें करारी हार मिली थी
  • सौलत अली वर्ष 1996 में मुरादाबाद पश्चिम से विधायक रह चुके हैं।
  • सपा प्रत्याशी जियाउर्रहमान वर्क कुंदरकी के विधायक हैं। इससे पहले वह 2017 में संभल विधानसभा क्षेत्र से एआईएमआईएम के टिकट पर चुनाव लड़े थे और उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। उनके दादा डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क के निधन के बाद उन्हें संभल से प्रत्याशी बनाया गया है।

2014 के चुनाव की तरह, इस बार की संभल लोकसभा सीट पर भी तीनों दलों के बीच तीखी जंग चल रही है। 2014 में भाजपा के प्रतिस्पर्धी सत्यपाल सैनी की जीत के बाद, इस बार भी सैनी समाज के प्रमुख नेता परमेश्वर लाल सैनी के रूप में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। साथ ही, सपा ने डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क को पुनः अपना उम्मीदवार घोषित किया है, जो 2009 में इस सीट पर जीत चुके हैं। इस बार उनकी जीत भी संभव है। साथ ही, शेखजादा बिरादरी के अकीलुर्रहमान भी इस चुनाव में भाग लेकर राजनीतिक मैदान में अपनी ताकत दिखा रहे हैं। 2009, 2014 और 2019 के पिछले चुनावों के परिणाम इस बार की चुनावी रणनीति को भी प्रभावित करेंगे।

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