सूरत लोकसभा सीट पर चुनावी मैदान में गर्माहट बढ़ रही है। इस बार कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित प्रत्याशी निलेश कुंभानी के चरणों में एक नई मोड़ आ गया है। यहां तक कि उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें भी हाईलाइट हो रही हैं। इस मामले में गठबंधनों, राजनीतिक चालबाजियों और अन्य राजनीतिक दलों के बीच उत्तेजना बढ़ रही है। निलेश कुंभानी के भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं उनके समर्थकों को उत्साहित कर रही हैं, जबकि कांग्रेस के पक्ष में यह एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। इस अटकल के पीछे की कहानी और उसके नतीजे चुनावी मैदान में अभिव्यक्त होंगे।
मुकेश दलाल की जीत तो हो चुकी है, लेकिन सूरत सीट से उनकी जीत पर विवाद उठा ही था। कुछ लोग उन्हें पार्टी के अंदर से ना-मुकाबला उम्मीदवार मान रहे थे। फिर भी, राहुल गांधी ने इसे मैच फिक्सिंग का मामला बताया और उनके प्रतिद्वंद्वी मुकेश दलाल को जीत मिली। अब, कांग्रेस के प्रत्याशी निलेश कुंभानी भाजपा में शामिल हो सकते हैं। उनके भाजपा में शामिल होने का समय पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ बातचीत के बाद निर्धारित होगा। इससे पहले कांग्रेस ने उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया था, लेकिन अब उन्हें वही दल प्रतिष्ठित करते हुए दिख सकते हैं, जिसके खिलाफ वे चुनाव लड़ रहे थे।
मुकेश दलाल तो जीत के आदम्य दर्ज कर चुके हैं, परंतु उनकी सूरत सीट से उतरी दावेदारी पर भाजपा के अंदर से ही सवाल उठ रहे थे। कुछ लोग उन्हें पार्टी के बाहर से उम्मीदवार मान रहे थे। इसके कारण पुराने कार्यकर्ता उनके खिलाफ विरोध कर रहे थे, लेकिन गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के करीबी होने के कारण उनका विरोध खुलकर नहीं हो पाया।
विपक्ष का प्लान कैसे बिगड़ गया? यह सवाल बहुतों के मन में है। चुनावी तंत्र में जब दो विपक्षी दल मिलकर चुनाव लड़ने का एलान करते हैं, तो उन्हें एक अतिरिक्त ताकत की संभावना होती है। सूरत, जहां से नगर निगम में 27 पार्षदों की जीत से एक नया इतिहास बना था, वहां भी यह एक ऐसा क्षेत्र था जिसमें आम आदमी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया था। विधानसभा चुनावों में भी इस इलाके में आप का वोट अच्छा था। अगर यह वोटर भाजपा के साथ आ जाते या फिर वे कुछ भ्रष्टाचार में पड़ जाते, तो सूरत लोकसभा क्षेत्र में पूरी कहानी बदल सकती थी। इससे भाजपा का इस सीट पर लगातार जीतने का रिकॉर्ड भी टूट सकता था।
सूत्रों के अनुसार, नीलेश कुंभानी के पर्चे का खारिज होना एक अगणित योजना का परिणाम था, जिसे भाजपा के शीर्ष नेता के इशारों ने संचालित किया था। इसका मतलब यह था कि नीलेश कुंभानी अपने पर्चे को जमा करेंगे और उसमें अपने विश्वासपात्र रिश्तेदारों और साथियों को गवाह बनाएंगे। उन्होंने इस प्लान के अनुसार अपने एक रिश्तेदार और दो भरोसेमंद साथियों को अपना गवाह बनाया। फिर भी, जब तय तारीख के बाद उनके प्रस्तावकों ने अपने फर्जी हस्ताक्षर किए जाने का दावा किया और अपनी गलती मानी, तो भी उनका पर्चा खारिज कर दिया गया। जांच के बाद भी, किसी प्रस्तावक ने चुनाव कार्यालय में पहुंचने के बाद नहीं परवाह की, जिसके परिणामस्वरूप कुंभानी का पर्चा खारिज कर दिया गया।
पर्चा खारिज होने के बाद भी, सूरत लोकसभा क्षेत्र में चुनाव टलने की कोई संभावना नहीं थी। इसका मुख्य कारण था कि सूरत से भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों सहित लगभग 10 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन दाखिल किया था। चाहे भाजपा के प्रत्याशी हों या फिर किसी और दल के, चुनाव निर्णयक स्थिति में होने की संभावना थी। इसीलिए, भाजपा के कुछ शीर्ष नेताओं ने स्वतंत्र और छोटे दलों के उम्मीदवारों को तलाशने के लिए प्रयास किया और सभी का नामांकन वापस करवाने की कहानी पूरी की।