देश के कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसे प्राकृतिक कीटनाशक की खोज की है जिसका इस्तेमाल हजारों साल पहले भारतीय किसान (Indian Farmers) करते थे. इस कीटनाशक का जिक्र सुरपाला द्वारा लिखे गए एक प्राचीन ग्रंख वृक्षायुर्वेद में हैं. इसका निर्माण मछली और जानवरों के कचरे से किया जाता है. इसे कुनापजला (Kunapajala) कहते हैं और यह एक चमत्कारिक जैविक उर्वरक है. माना जाता है कि यह इतना चमत्कारी है कि यह मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढ़ाता है. इनता ही नहीं यह उन कीटों को भी खत्म कर देता है जो रासायनिक उर्वरक (Chemical Fertilizers) से भी खत्म नहीं होते हैं. इसके साथ ही इसके इस्तेमाल कुछ वर्षों के अंदर ही यह कीटनाशक के अवशेषों को भी हटा देता हैं.
इस पद्धति को वापस खोज कर लाने के पीछे प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक और एशियाई कृषि इतिहास फाउंडेशन के संस्थापक औऱ अध्यक्ष स्वर्गीय डॉ वाईएल नेने थे. द बैटर इंडिया के मुताबिक उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूके के बोडलियन लाइब्रेरी से वृक्षायुर्वेद पांडुलिपि की एक प्रति प्राप्त की, और इसे संस्कृत से अंग्रेजी में अनुवादित किया और 1996 में एएएचएफ के माध्यम से इसका प्रकाशन किया. एग्रोनॉमी की प्रोफेसर और एएएचएफ, कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर जीबीपीयूए एंड टी, पंतनगर की कार्यकारी सचिव डॉ सुनीता टी पांडे बतातीं है कि कुनापजला का संदर्भ 400 ईसा पूर्व से 1725 ईस्वी तक किसानों द्वारा अभ्यास और गुरुकुल में पढ़ाए जाने वाले साहित्य में मिलता है. आज भी कुछ किसान मूल नुस्खा का उपयोग कर रहे हैं, हालांकि, कुछ पशु अवशेषों का उपयोग करने में संकोच करते हैं.
स्वर्गीय डॉ वाईएल नेने ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
डॉ सुनीता टी पांडे बतातीं हैं कि यही कारण था कि डॉ नेने गाय के गोबर और गमूत्र का उपयोग करके कुनापजला का शाकाहारी संस्करण लेकर आए. लेकिन सुरपाला द्वारा उपयोग की जाने वाली अन्य सामग्री को बरकरार रखा. 2012 में, उन्होंने उर्वरक के लिए एक हर्बल आधार के साथ एक नया संस्करण पेश किया और इसे हर्बल कुनापजला कहा. यह उर्वरक उसी प्रक्रिया के तहत कार्य करता है. साथ ही पशु अवशेषों को अलग नियम के साथ
वनस्पति के साथ प्रतिस्थापित करता है लेकिन एक ही सिद्धांत पर आधारित होता है.
हर्बल कुनापजला के फायदे
हर्बल कुनापजला (Herbal Kunapajala) में मुख्य सामग्री गाय का गोबर और मूत्र, गुड़, अंकुरित साबुत काले चने, सरसों या नीम के तेल की खली, चावल की भूसी का पानी, बारीक कटा हुआ खेत का खरपतवार और निर्धारित अनुपात में पानी है. हर्बल कुनापजला तैयार होने में गर्मियों में लगभग 15 दिन और सर्दियों में 30-45 दिन लगते हैं. हर्बल कुनापजला पौधों की वृद्धि से साथ-साथ पैदावार को बढ़ाता है, और पौधों को बीमारियों और कीट से बचाता है. यह पर्यावरण के अनुकूल पोषक तत्व, पानी, रोग और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली के रूप में कार्य करता है.
चाय बगानों में हो रहा कुनापजला का इस्तेमाल
किसानों ने फसलों और पेड़ों पर हर्बल कुनापजला का छिड़काव काफी बेहतर परिणाम प्राप्त किए हैं. इसने पैदावार में वृद्धि की है, प्राकृतिक कीट नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है साथ ही, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार किया है.वरिष्ठ चाय सलाहकार विजय परमार दार्जिलिंग और डूआर क्षेत्र चाय बागान मालिकों के बीच इस पद्धति के बारे में जागरूकता पैदा कर रहे हैं, और वर्तमान में, उत्तरी पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग और डूआर्स के दो-तिहाई चाय बागानों को वृक्षायुर्वेद से कुनापजला के इस्तेमाल से जैविक चाय की खेती में परिवर्तित किया गया है.
पैदावार में आयी अप्रत्याशित बढ़ोतरी
उत्तराखंड में, लगभग 25 किसान विभिन्न फसलों के लिए कुनापजला का उपयोग करते हैं. केरल में सैकड़ों छोटे किसान इस वृक्षायुर्वेद की खेती के तरीके का पालन कर रहे हैं. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और यूपी में लगभग 100 किसान कुनापजला का उपयोग कर रहे हैं. नैनीताल जिले के रामगढ़ प्रखंड के ग्राम सिमराड के छोटे जोत वाले किसान प्रमोद गुणवंत पिछले दो साल से अपने खेत में अलग-अलग फसलों में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने अपने 8 वर्षीय कीवी पौधे से उपज में शानदार वृद्धि प्राप्त की और 10-12 किलोग्राम कीवी फल के बजाय उन्होंने 2020 में 100 किलोग्राम की उपज प्राप्त की है.