नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार ने अपना कार्यान्वयन शुरू किया है। इस संदर्भ में, मोदी मंत्रिमंडल में कुल 72 सदस्यों को शामिल किया गया है, जिनमें 32 कैबिनेट मंत्रियों की भी शामिलता है। इस बार का महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बीजेपी के पास एकमात्र बहुमत नहीं है, फिर भी मंत्रिमंडल गठन में सहयोगी दलों को विशेष महत्ता दी गई है। बीजेपी ने समाज के विभिन्न वर्गों को समाहित करने के साथ-साथ क्षेत्रीय संतुलन भी ध्यान में रखा है।
शपथ ग्रहण समारोह में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, जिसमें उन्होंने संघी और सहयोगी दलों के साथ मिलकर देश की सेवा के लिए प्रतिज्ञा की।
कैबिनेट सूची में नवीनतम नामों के साथ-साथ पुराने नेताओं को भी जगह मिली है। इसके साथ ही, कैबिनेट मंत्रालयों में विभागों का वितरण भी किया गया है, जिससे बीजेपी अपने ही पास रखे गए हैं।
अब आएगा दिन, जब बीजेपी के सहयोगी दलों की संतुष्टि का मापदंड कितना है, क्योंकि सरकार के कार्यान्वयन में उनका सहयोग भी महत्वपूर्ण है। यह समय दिखाएगा कि बीजेपी और उसके सहयोगी दल कितने अच्छे संदर्भ में साथ काम कर सकते हैं।
बीजेपी के सैलानियों की दिशा में उन्होंने इस बार दक्षिणी राज्यों को अपनी अधिक प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया है। जो कांग्रेस और वामपंथ के परंपरागत बस्तियों में पहले से ही मजबूत रहते थे, उन्हें प्रभावित करके बीजेपी ने केरल में एक सीट जीती है। वहीं तमिलनाडु में भी उनका वोट शेयर बढ़ा है।
बीजेपी ने मंत्रिमंडल में क्षेत्रिय संतुलन को मजबूत करने के लिए प्रयास किया है, साथ ही अपने छोटे-छोटे सहयोगियों को भी संजोए। इसके अलावा, पार्टी ने सभी सहयोगी दलों के सदस्यों को मंत्रिमंडल में समाहित करने की चर्चा की है।
बीजेपी के लिए इस बार का मंत्रिमंडल गठन खासे चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इस बार उनके पास स्पष्ट बहुमत नहीं है। इससे प्रेरित होकर उन्होंने चिराग पासवान और जीतनराम मांझी जैसे नेताओं को भी मंत्री बनाने का संकेत दिया है। इस तरह से वह अपने सहयोगी दलों की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास कर रही है।