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तीन और 13 की लड़ाई में उलझा पंजाब का चुनावी मैदान, भाजपा के आगे सबसे बड़ी चुनौती; बदले सियासी समीकरण

by Nikhil

लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में शनिवार को पंजाब की सियासत में नए राजनीतिक समीकरणों की बड़ी परीक्षा है। यह भाजपा के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। क्योंकि बीते करीब तीन दशक में यह पहला मौका है, जब भाजपा ने अपने पुराने सहयोगी अकाली दल से अलग होकर पंजाब की राजनीति में सियासी मोहरे सजाए हैं। खास बात यह है कि कभी तीन सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा इस बार सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सियासी जानकारों का कहना है कि भाजपा के रणनीतिकारों ने इस बार “तीन के अंकों वाली सियासत” में खूब दांव लगाया है।

शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर चुनाव लड़ रही भाजपा
यह पहला मौका है, जब भाजपा अपने पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर चुनाव लड़ रही है। राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार भूपेंद्र सिंह चहल बताते हैं कि इसी बदले सियासी गुणा गणित को भाजपा अपने लिए मुफीद मान रही है। जबकि अकाली दल इस बदले हुए सियासी समीकरण को अपने लिए फायदेमंद मानकर चल रहे हैं। चहल कहते हैं कि भाजपा पंजाब में अपने पुराने सहयोगी अकाली दल के साथ मिलकर 13 लोकसभा सीटों में से तीन सीटों पर चुनाव लड़ती थी। इसमें अमृतसर, गुरदासपुर और होशियारपुर लोकसभा सीट शामिल थी। लेकिन इस बार भाजपा और अकाली दल का गठबंधन टूटा, तो भाजपा ने सभी तेरह सीटों पर ताल ठोक दी।

पहली बार राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही भाजपा
चहल के मुताबिक यह पहला मौका है जब भाजपा सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। हालांकि भाजपा के रणनीतिकारों की मानें, तो यह सियासी फैसला राजनीतिक तौर पर बहुत फायदेमंद होने वाला है। इसकी वजह बताते हुए भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता जगमोहन थिंड कहते हैं कि जिस तरीके से पूरे देश में भाजपा ने अलग-अलग राज्यों में अपनी स्थिति मजबूती से दर्ज की है, ठीक उसी तरह इस बार भाजपा पंजाब में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने वाली है। जगमोहन तर्क देते हैं कि उनकी पार्टी को 13 सीटों पर चुनाव लड़ने का न सिर्फ फायदा होगा, बल्कि वह ज्यादा से ज्यादा सीटें भी जीतेंगे। हालांकि राजनीतिक रणनीतिकार चहलजीत सिंह कहते हैं कि भाजपा ने इस बार जिन प्रत्याशियों का चयन किया है, उसमें बाहरी दलों से ज्यादा लोग आए हैं। इसीलिए भाजपा पंजाब में खुद की मजबूत उपस्थिति मान रही है। हालांकि यह कितना कारगर होगा, यह तो चुनावी नतीजे बताएंगे। लेकिन सियासी गलियारों में चर्चाएं इस बात की हैं कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं को अपने साथ जोड़कर भाजपा ने सियासी दांव तो ठीक से चला है।
पंजाब का सियासी समीकरण 
चहलजीत सिंह कहते हैं कि एक तो भाजपा के पास दूसरे दलों से आए प्रत्याशी हैं। दूसरा, पार्टी का पूरा फोकस पंजाब के उन 39 फीसदी हिंदू वोटरों पर है, जो कभी भाजपा, अकाली दल या कांग्रेस के साथ जुड़े हुए थे। वह कहते हैं कि अभी तक भाजपा महज तीन सीटों पर ही चुनाव लड़ती थी, इसलिए उसका वोट प्रतिशत अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में कम होता था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा तीन सीटों पर 6.63 फीसदी वोट पा सकी थी। अब इस बार जरूर यह देखना होगा कि भाजपा अकाली दल से अलग होकर राज्य के तकरीबन 39 फीसदी हिंदू वोटरों में मजबूत सेंधमारी कर पाती है या नहीं। चहलजीत कहते हैं कि भाजपा के रणनीतिकार भी पंजाब के इन 39 फीसदी वोटरों को अपने साथ जोड़ने की पूरी फील्डिंग सजा चुके हैं।

क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार?
सियासी जानकार कहते हैं कि भाजपा ने इस बार अपनी पार्टी में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कुछ बड़े नेताओं पर दांव लगाया है। वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा कहते हैं कि परनीत कौर से लेकर रवनीत बिट्टू और आम आदमी पार्टी के सांसद रहे सुशील रिंकू पर दांव लगाकर पार्टी ने इशारे तो बहुत कुछ किए हैं। शर्मा कहते हैं क्योंकि भाजपा अब तक अपने अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में तीन सीटें ही जीत सकी है, इन तीन सीटों पर पार्टी हमेशा से चुनाव जीतती आई है। ऐसे में इन तीन सीटों के साथ-साथ पार्टी इस बार पटियाला, लुधियाना और जालंधर सीट पर भी अपनी मजबूत दावेदारी ठोंक रही है। दरअसल इन सीटों पर अन्य पार्टियों से आए बड़े नेता भाजपा में शामिल होकर चुनाव लड़ रहे हैं।

भाजपा ने इन पर जताया है भरोसा
वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक जानकार वीरेश तिवाड़ी कहते हैं कि भाजपा ने अपनी सियासी फील्डिंग में जिस तरीके से पटियाला में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री परनीत कौर को मैदान में उतारा है, उससे पार्टी के नेता उत्साहित हैं। ठीक इसी तरीके से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रवनीत सिंह बिट्टू को भी भाजपा ने लुधियाना से टिकट दिया है। बिट्टू तीन बार के सांसद हैं। तिवाड़ी कहते हैं कि बिट्टू, पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते भी हैं और उनका पंजाब के एक हिस्से में जनाधार भी है। इसलिए पार्टी उन्हें मजबूत प्रत्याशी मान रही है। भाजपा ने जालंधर में भी इस बार आम आदमी पार्टी के सांसद सुशील कुमार रिंकू को अपने साथ जोड़ लिया। अब पार्टी रिंकू के माध्यम से जालंधर सीट पर मजबूत दावेदारी कर रही है। जबकि भाजपा ने अमृतसर से अमेरिका में पूर्व राजदूत रहे तरनजीत सिंह संधू को टिकट दिया है। संधू के सियासी मैदान में आने से भाजपा के नेता यहां भी अपनी मजबूती मान रहे हैं।

सभी दलों की अपनी-अपनी दावेदारी 
हालांकि सियासी जानकारों का मानना है कि बदले राजनीतिक समीकरणों में भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल अपनी-अपनी मजबूत दावेदारी ठोंक रहे हैं। राजनीतिक जानकार भूपेंद्र सिंह चहल कहते हैं कि इस बार पंजाब में जहां अकाली और भाजपा अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी गठबंधन के साथ होकर भी आमने सामने के चुनावी मैदान में है। चहल कहते हैं कि पंजाब के लोकसभा चुनाव में इस बार पूरी तरह से सियासत बदली हुई है। इसलिए सभी राजनीतिक दलों के अपने-अपने दावे भी मजबूत हैं। लेकिन देखना यही होगा कि पंजाब का वोटर किस दिशा में जाएगा।

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