इस चर्चा में, एनडीटीवी के एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया ने एस गुरुमूर्ति के साथ विशेष बातचीत की। उन्होंने लोकसभा चुनाव और उसके महत्व के बारे में विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने पूछा कि वैश्विक स्तर पर चुनाव क्यों महत्वपूर्ण हैं और क्यों उन्हें एकाधिकारिक चुनाव की तरह नहीं देखा जाता है। उन्होंने नरेंद्र मोदी के लिए भी लोकतांत्रिक होने का सवाल उठाया। मुझे विशेषतः महत्वपूर्ण लगता है कि उन्होंने आपातकाल के समय अपने भूमिका को भी जिक्र किया, जोकि लोकतंत्र के महत्व को समझाता है। अब, जब चर्चा है कि कम लोकतंत्र और अस्थिर सरकार के बीच अंतर क्या है, तो यह चर्चा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
जब संजय पुगलिया ने आपातकाल की चर्चा की, एस गुरुमूर्ति ने बेहतरीन तरीके से समझाया कि आपातकाल के दौरान किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने अपने अनुभव से साझा किया कि कैसे उन्हें अपने परिवार से दूर रहना पड़ा, और कैसे अंधेरे की तरह आपातकाल की स्थिति थी। वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि आपातकाल का मतलब यह नहीं कि लोगों को इसकी जानकारी नहीं हो, बल्कि इसका मतलब यह है कि संवैधानिक अधिकारों पर रोक लगा दिया गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि एक नेता या सरकार के मजबूत होने से ही आपातकाल की घोषणा नहीं होती, बल्कि उसके पीछे संविधान की अवहेलना की जाती है। उन्होंने व्यक्त किया कि भारत में अब ऐसी स्थिति कभी नहीं हो सकती, क्योंकि संविधान में परिवर्तन किया गया है। यहां तक कि अगर किसी भी क्षेत्र में सशस्त्र विद्रोह नहीं होता, तो आपातकाल की घोषणा की जा सकती है।
तमिलनाडु में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसकों के विरोध में एक बड़ा सवाल उठा। इस संदर्भ में, एस गुरुमूर्ति ने एक रुचिकर विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि डीएमके ने अपने अपने तरीके से राजनीति में अपना काम किया है, लेकिन अब उनकी सकुशल नजरें अधिक उजागर हो रही हैं। वे उज्ज्वल करते हैं कि डीएमके ने “मोदी वापस जाओ” के नारे उठाए हैं, जो प्रधानमंत्री मोदी को उकसाने का प्रयास है, जबकि मोदी उन्हें इतनी हल्के में नहीं लेते हैं।