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गांधी को यहां से विजय प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली, बल्कि वे चार बार हार भी गए। इस रिकॉर्ड का श्रेय सोनिया और राजीव गांधी को है

by Nikhil

सियासी दंगल में अमेठी के सात गांधी उतरे, परंतु चारों को हार का सामना करना पड़ा। यहां सिर्फ राजीव और सोनिया गांधी की जोड़ी थी, जिसने सिर्फ जीतों का सामना किया। अमेठी के चुनावी मैदान में गांधी का नाम जब भी आता है, तो उसमें गांधी परिवार की पहचान होती है। अमेठी और गांधी परिवार से जुड़े पुराने पन्नों को पलटने पर, कई रोचक जानकारियाँ सामने आती हैं। चुनावी युद्ध में इस इलाके में ऐसे नेता भी उतरे, जो गांधी परिवार के साथ संबंधित थे।

अमेठी के राजनीतिक युद्ध में उतरने वाले नामों में संजय गांधी, मेनका गांधी, राज मोहन गांधी, राहुल गांधी और गोपाल स्वरूप गांधी भी शामिल हैं, परंतु उन्हें हार का सामना करना पड़ा। यहां सिर्फ राजीव और सोनिया गांधी की ही ऐसी जोड़ी थी, जिसने सिर्फ जीतों का सामना किया। 1967 से 2019 तक, अमेठी में 16 संसदीय चुनाव हुए, जिसमें सिर्फ़ जवाहर लाल नेहरू के करीबी नहीं बल्कि गांधी परिवार के अन्य सदस्यों ने भी भाग लिया। 1976 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी भी यहां प्रतिस्थित थे, जिसके बाद से गांधी परिवार का सीधा जुड़ाव अमेठी से शुरू हुआ। अब तक, गांधी परिवार से अमेठी में कौन चुनावी मैदान में उतरेगा, यह अभी तय नहीं है।

पहले गांधी:
1976 में अमेठी पहुंचे संजय गांधी ने राजनीतिक रास्ता चुना। उन्हें मात्र 34.47 प्रतिशत वोट मिले। वे भारतीय लोक दल के रवींद्र प्रताप सिंह से 75,844 वोटों के अंतर से हार गए। 1980 के चुनाव में उन्होंने एक लाख 28,545 मतों के अंतर से जीत हासिल की, लेकिन उनका असमय निधन उनकी जीत को अधूरा छोड़ दिया।

दूसरे गांधी:
भाई के निधन के बाद, राजीव गांधी ने अमेठी में राजनीतिक कार्यक्रम शुरू किया। 1981 में उन्होंने उपचुनाव जीता और फिर अन्य चुनावों में भी विजयी रहे। 1989 के चुनाव में विवादों के बीच भी उन्होंने विजय हासिल की, लेकिन उनकी मौत के बाद पार्टी को चुनौती मिली।

तीसरे गांधी:
संजय गांधी के निधन के बाद, मेनका गांधी ने अपनी प्रेरणा को धारण करते हुए अमेठी का संघर्ष जारी रखा। 1984 में उन्होंने चुनाव में भाग लिया, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने दोबारा चुनाव नहीं लड़ा, और अब वह सुल्तानपुर से चुनाव लड़ रही हैं।

चौथे गांधी:
1989 के चुनाव में एक और गांधी ने अमेठी में कदम रखा, यह बार राज मोहन गांधी का। उन्हें समर्थन मिला, लेकिन वह हार गए।

पांचवे गांधी:
1999 में सोनिया गांधी ने राजनीतिक नाज़ुक अमेठी का साथ दिया और चुनाव जीता। उन्होंने अपने बेटे को अपनी विरासत जोड़ी।

छठे गांधी:
2014 और 2019 में गोपाल स्वरूप गांधी ने अमेठी की राजनीति में भाग लिया, परंतु हार का सामना करना पड़ा।

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