City Headlines

Home » जालौन के जलियांवाला बाग का वो किस्सा, जब तिंरगा यात्रा निकालने पर 11 देशभक्तों को मिली थी मौत

जालौन के जलियांवाला बाग का वो किस्सा, जब तिंरगा यात्रा निकालने पर 11 देशभक्तों को मिली थी मौत

by Rashmi Singh

जालौन, 12 अगस्त -जलियांवाला बाग का नाम सुनते ही हमारे मन में अमृतसर के भयानक गोलीकांड की यादें ताजा हो जाती हैं, जहां अंग्रेजों ने निहत्थे मासूमों पर गोलियों की बारिश कर कत्लेआम मचाया था। उसी तरह की एक और दर्दनाक घटना 25 सितंबर 1947 को यूपी के जालौन में हुई, जिसकी खौफनाक यादें आज भी दिलों में जिंदा हैं।

Also Read-बांग्लादेश में हिंसक भीड़ ने जलाया इस्कॉन मंदिर, गीता जलाई, गर्भगृह को लूटा

15 अगस्त 1947 को जब पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था, तब जालौन का बाबनी स्टेट अभी भी गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। यहां के नवाब ने अपनी सत्ता का रौब दिखाकर मौत का तांडव रचाया। इस दौरान देशभक्तों ने तिरंगा फहराने की योजना बनाई, लेकिन यहां का निजाम, जो हैदराबाद के शासकों के अधीन था, ने इसे गुनाह करार दिया। जैसे ही क्रांतिवीरों ने तिरंगा यात्रा निकाली, निजाम ने उन पर गोलियां चलवा दीं। इस गोलीकांड में 11 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद हो गए और 26 घायल हुए। इस घटना को “दूसरा जलियांवाला बाग कांड” कहा गया।

बाबनी के देशभक्तों ने 25 सितंबर 1947 को हरचंदपुर में तिरंगा फहराने की योजना बनाई, जिसे रोकने के लिए निजाम ने पुलिस को आदेश दिया। तिरंगा यात्रा के दौरान, पुलिस ने देशभक्तों को घेर लिया और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इस नरसंहार में 11 वीर स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गए।

इस घटना के बाद, बाबनी स्टेट में भारी हलचल मच गई। अंततः, 24 अप्रैल 1948 को विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री लालाराम गौतम ने बाबनी स्टेट का चार्ज विश्वनाथ व्यास को सौंपा, और 25 जनवरी 1950 को बाबनी स्टेट का भारत संघ में विलय हो गया। हरचंदपुर में शहीदों की याद में एक स्मारक बनाया गया, जो आज भी उनकी कुर्बानी की गवाही देता है।

वरिष्ठ पत्रकार के.पी. सिंह बताते हैं कि इस सामूहिक नरसंहार को दूसरा जलियांवाला बाग इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां भी तिरंगा फहराने की कोशिश कर रहे स्वतंत्रता सेनानियों को उसी तरह घेरकर मारा गया था जैसे जलियांवाला बाग में हुआ था।

आज भी जालौन के हरचंदपुर गांव में शहीद स्मारक खड़ा है, लेकिन प्रशासन की उपेक्षा के कारण यह इमारत खंडहर में तब्दील हो चुकी है। शहीद बाबूराम शिवहरे के परिवारजन बताते हैं कि 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था, लेकिन बाबनी में तिरंगा फहराने पर नवाब का प्रतिबंध था। तिरंगा यात्रा के दौरान हुए इस गोलीकांड में उनके ताऊ बाबूराम शिवहरे भी शहीद हुए थे।

Subscribe News Letter

Copyright © 2022 City Headlines.  All rights reserved.