इला भटनागर
नई दिल्ली। नीतीश भारद्वाज और द फिल्म एंड थिएटर सोसाइटी अपने बहुचर्चित नाटक “चक्रव्यूह” के साथ दिल्ली वापस आ गए हैं। इस नाटक में नीतीश भारद्वाज, जो बी आर चोपड़ा की ‘महाभारत’ में भगवान कृष्ण की अविस्मरणीय भूमिका अदा कर पूरे देश में कृष्ण रूप के पर्याय बन गए थे, एक बार फिर भगवान कृष्ण के रूप में मंच पर दिखेंगे। यह शो पूरे देश के विभिन्न शहरों और कई प्रतिष्ठित समारोहों में लगभग सौ बार प्रदर्शित किया जा चुका है।
नाटक महाभारत के महान युद्ध के तेरहवें दिन की कहानी है। यह नाटक “चक्रव्यूह” को केवल एक युद्ध-कला तक सीमित न करके इसे दर्शन के स्तर तक ले जाता है। नाटक चक्रव्यूह में अभिमन्यु की हत्या के प्रकरण और उससे जुड़े सभी प्रश्नों, मिथकों, विचारधाराओं और विश्वासों की कई स्तरों पर व्याख्या करता है। छंद-रूप में लिखित और प्रदर्शित यह नाटक इतिहास और वर्तमान के बीच एक सेतु का काम करता है और इतिहास तथा वर्तमान को “कर्म” और “धर्म” की चिरकालीन अवधारणाओं से जोड़ता है। मौलिक नाट्य-लेखन और मंच पर शानदार दृश्य-प्रदर्शन के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध अतुल सत्य कौशिक ने ये नाटक पूरी तरह से एक नए अवतार में लिखा और निर्देशित किया है।
नाटक कृष्ण के दृष्टिकोण से महाभारत की कहानी प्रस्तुत करेगा। कृष्ण प्रकट होते हैं और उपस्थित लोगों के सभी प्रश्नों, मिथकों और गलतफहमियों को सुलझाते हैं। कृष्ण कर्म के शाश्वत संदेशों को आगे बढ़ाते हुए बताते हैं कि “कोई भी मनुष्य अपने चक्रव्यूह से कभी बाहर नहीं आ पाया है अपितु यह पूरा जीवन एक चक्रव्यूह के अलावा और कुछ नहीं है। चक्रव्यूह में युद्ध करना हमारा कर्म है और उससे बाहर निकलना उस कर्म का फल है जिस पर हमारा वश कभी नहीं हो सकता। जीवन भर उनसे लड़ना है।”
लेखक और निर्देशक अतुल सत्य कौशिक कहते हैं, “भारतीय इतिहास ने हमेशा मुझे आकर्षित किया है और मैंने हमेशा इतिहास की व्याख्या कुछ इस तरह से करने की कोशिश की है कि उन प्रसंगों को एक नया अर्थ मिले जिन्हें हम यूँ ही अनगिनत बार सुनते आए हैं। इस विचार मात्र से कि महज़ सोलह साल का एक बाल-योद्धा, जिसके पास विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर की विरासत है, पृथ्वी के इतिहास के सात सबसे महाबली योद्धाओं से एकल युद्ध करता है, निस्संदेह मेरे रोंगटे खड़े हो गए लेकिन मैं इस कहानी से इससे भी अधिक कुछ चाहता था। मैंने कृष्ण के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि इस बात पर शोक क्यूँ मनाया जाए कि “अभिमन्यु” चक्रव्यूह से बाहर नहीं आ सका जबकि कोई और भी कभी ऐसा नहीं कर पाया। यह पूरा जीवन ही एक “चक्रव्यूह” है और वे सात योद्धा दरअसल हमारे ही भीतर स्थित सात बुराइयाँ। हम सभी “अभिमन्यु” हैं और ये पूरा जीवन इन बुराइयों से लड़ते इसी चक्रव्यूह में बीतना है।