मीरजापुर। गुरु शिष्य परंपरा के पराकाष्ठा से आच्छादित विंध्य पर्वत और गंगा नदी के संगम तट पर विराजमान माता विंध्यवासिनी के चार आरतियों मे बदलता है माँ का स्वरूप । जगत का पालन करने वाली माता विंध्यवासिनी अपने भक्तों के कल्याण के लिए प्रत्येक दिन चार रूपों में दर्शन देती हैं | जीवन के चारो पुरुषार्थ अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाली आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी की चार (अवस्था) रूपों में चार आरती होती है | प्रत्येक अवस्था में माँ का स्वरूप बदल जाता है ।
इस संदर्भ में विंध्य क्षेत्र के पुरोहित राज मिश्रा ने बताया कि प्रातः काल मंगला आरती में माता विंध्यवासिनी का स्वरूप बाल्यावस्था का होता है। प्रात: काल आदिशक्ति की बाल्यावस्था का श्रृंगार और आरती की जाती है । प्रात: काल की जाने वाली मंगला आरती के बारे में कहा जाता है कि “जो करे मंगला – कभी न रहे कंगला” | यह जीवन के चार पुरुषार्थ में धर्म माना गया है । जीवन के चारों पुरुषार्थ सन्देश देने के लिए माँ का स्वरूप बदलता रहता है । उन्होंने बताया कि प्रत्येक मानव का प्रतिदिन चार अवस्थाएं होती हैं जाग्रत, सुसुँप्ता, स्वप्ना व दुरिया अवस्था | दूसरी आरती दोपहर में युवावस्था की है जिसका दर्शन करने से धन धान्य मिलता है | इसमें माँ का स्वरूप युवावस्था का होता है । यह अवस्था अर्थ को प्रदान करने वाली है ।तीसरी आरती सायंकाल प्रौढ़ावस्था की है । माँ का दिव्य फूल और आभूषणों से श्रृंगार किया जाता है । इस स्वरूप का दर्शन करने से वंश वृद्धि और सदमार्ग पर चलने का आशीर्वाद मिलता है तथा चौथी आरती रात में वृद्धावस्था की है जिसके दर्शन से सहजता से लक्ष्य की प्राप्ति होती है । चार आरती चार पुरुषार्थ धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक है ।
वहीं प्रधान श्रृंगारिया शिवजी मिश्र ने बताया कि भक्तो का कल्याण करने वाली माता विंध्यवासिनी विभिन्न अवस्था में दर्शन देकर अपने भक्तों की सारी मनोकामना अवश्य पूरी करती है | माँ विंध्यवासिनी के आरती का मात्र दर्शन कर लेने से हजारो अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है |