इला भटनागर
नयी दिल्ली। लोगों के देर से शादी करने का असर फर्टिलिटी पर पड़ रहा है। भारतीय महिलाओं की लाइफस्टाइल में बदलाव का असर उनकी प्रजनन दर पर पड़ा। गायनोकोलॉजिल्ट और आईवीएफ विशेषज्ञों के अनुसार इससे मोटापा, मेनोपॉज जल्दी होना, स्ट्रेस और यूटरस की टीबी जैसे कारण हैं। देर से शादी करने, आफिस और घर की जिम्मेदारी के कारण महिलाएं अपने खाने पीने का सही से ध्यान नहीं रख पा रही हैं और इस वजह से उनकी प्रेग्नेसी प्रभावित हो रही है।
मां बनने में बाधा है मोटापा
महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज, जयपुर की आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. मनीषा चौधरी कहती हैं कि इनफर्टिलिटी की बड़ी वजह महिलाओं में मोटापा बढ़ना है। मोटापे के कारण पीरियड्स अनियमित होने लगते हैं। इससे एग कम बनते हैं और कई बार उनकी क्वॉलिटी ठीक नहीं होती है।
मेनोपॉज जल्दी होने से भी फर्टिलिटी रेट कम हुआ
डॉ. मनीषा चौधरी कहती हैं कि भारतीय महिलाओं की लाइफस्टाइल में बदलाव का असर ये हुआ कि उन्हें समय से पहले मेनोपॉज होने लगा है। इंडियन वुमन में मेनोपॉज वेस्टर्न वुमेन की तुलना में जल्दी होने लगा है। इसका असर बच्चा प्लान करने में पड़ता है। लेट मैरेज के बाद भारतीय महिला 34 की उम्र में बच्चा प्लान करती हैं तब वो एग रिजर्व वाले फेज में आ चुकी होती हैं। इसका मतलब है कि 35 के बाद भारतीय महिला की फर्टिलिटी एकदम कम हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक तो एग रिजर्व काम है, ऊपर से बेबी के लिए प्लानिंग देर से हो रही है। इस वक्त महिला एक ऐसे टाइम में आ जाती है, जहां पर उसकी फर्टिलिटी कम होना शुरू हो जाती है।
फूड हैबिट्स से भी कम हुई फर्टिलिटी की दर
डॉ. मनीषा चौधरी बताती हैं कि फूड हैबिट्स जैसे जंक फूड खाना भी फर्टिलिटी की दर कम कर रहा है। अगर गर्भवती महिलाएं जंक का सेवन अधिक करेंगी तो इससे उनका वजन बढ़ेगा। वजन अधिक बढ़ने के कारण मिसकैरेज और प्रीमैच्योर डिलीवरी का रिस्क होता है। गर्भवती महिला जंक फूड खाती है तो इससे उसको जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा बढ़ता है। इससे डिलीवरी के समय गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
स्ट्रेस से प्रेग्नेंसी के चांसेज कम होते हैं
डॉ. मनीषा चौधरी के अनुसार, किसी भी तरह का स्ट्रेस महिला की प्रेग्नेंसी को एफेक्ट करता है। स्ट्रेस से प्रेग्नेंसी के चांसेज काम होते हैं। तीसरा कारण यह है कि आज भारतीए महिलाएं करियर ऑरिएंटेड है और वे वर्किंग मोड में आ चुकी हैं। इसके साथ ही एनवायरमेंट चैंजेस के कारण फर्टिलिटी रेट कम हुआ है। जयपुर में पांच साल पहले 15 आईवीएफ सेंटर थे और अब 35 के लगभग सेंटर हैं।
यूटरस की टीबी होने से महिला कंसीव नहीं कर सकती
महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज, जयपुर की आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. मनीषा चौधरी कहती हैं कि राजस्थान और वेस्टर्न इंडिया में इनफर्टिलिटी का कारण ट्यूबरक्लोसिस है। यूटरस की टीबी के बारे में जानकारी कम लोगों को है। यूटरस की टीबी होने से पेट के निचले हिस्से में बहुत दर्द होता है और महिला कंसीव नहीं कर सकती है। फैलोपियन ट्यूब को टीबी बैक्टीरिया बंद कर देता है, जिससे पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं।
प्लेसेंटा प्रीविया में दिक्कत
प्लेसेंटा प्रीविया में दिक्कत होने पर कम या ज्यादा ब्लीडिंग हो सकती है और कई बार दर्द भी नहीं होता है। कुछ महिलाओं को ब्लीडिंग के साथ संकुचन भी होता है। प्लेसेंटा प्रीविया में दिक्कत उन गर्भवती महिलाओं को हो सकती है जो स्मोकिंग करती है या कोकीन लेती हों, 35 साल से अधिक उम्र की वो महिला जो पहले ही एक सिजेरियन डिलीवरी करवा चुकी हो। गर्भाशय में किसी प्रकार की सर्जरी हुई हो। इन मामलों में प्लेसेंटा प्रिविआ का खतरा रहता है।
पीसीओडी की समस्या बढ़ रही
नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, मुंबई की फर्टिलिटी कंसल्टेंट डॉ. स्नेहा साठे बताती हैं कि महिलाओं में आजकल पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज (पीसीओडी) की समस्या बढ़ रही है । पीसीओएस एक हार्मोनल विकार है जो प्रजनन आयु की महिलाओं को प्रभावित करता है। यह बहुत आम है और भारत में 10 में से 3 महिलाओं को पीसीओएस है। किशोरियों में पीसीओएस इन दिनों बढ़ रहा है, इसका मुख्य कारण जीवनशैली में बदलाव है। अनहेल्दी फूड और शारीरिक व्यायाम की कमी ऐसी चीजें हैं जो हम आज की युवा पीढ़ी में आमतौर पर देखते हैं।
पीसीओएस का सटीक कारण अभी तक अज्ञात है। आनुवंशिकी, मोटापा, हार्मोन, जीवन शैली सभी की इसमें भूमिका रहती हैं। पीसीओएस से पीड़ित कई महिलाओं को अपना वजन नियंत्रित करने में परेशानी होती है। मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे हैं और प्रजनन संबंधी समस्याएं भी हैं। कई महिलाओं को स्वाभाविक रूप से गर्भ धारण करने में कठिनाई होती है और अक्सर उपचार की आवश्यकता होती है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग विकसित होने का भी खतरा है।
स्वस्थ आहार और नियमित शारीरिक व्यायाम जैसे जीवन शैली में बदलाव के साथ शुरुआती निदान और उपचार से लक्षणों को प्रबंधित करने और दीर्घकालिक समस्याओं को रोकने में मदद मिल सकती है
डॉ. स्नेहा साठे बताती हैं कि पीसीओएस वाली कुछ महिलाओं में लंबे समय तक एमेनोरिया ( एमेनोरिया का संबंध मासिक धर्म के कम होने या फिर उसकी अनुपस्थिति से है। किसी महिला को अगर वो गर्भवती नहीं है और लगातार तीन महीने से ज्यादा पीरियड्स न आने की शिकायत है तो इसे हल्के में न लें।) होता है। उनमें गर्भ की परत असामान्य रूप से मोटी हो सकती है और इससे एंडोमेट्रियल कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
देश में बढ़ते आईवीएफ सेंटर
- जयपुर : जयपुर में पांच साल पहले 15 आईवीएफ सेंटर थे और अब 35 के लगभग सेंटर हैं।
- लखनऊ:लखनऊ में पांच साल पहले चार आईवीएफ सेंटर थे और आज 25 आईवीएफ सेंटर हैं।
- इंदौर: इंदौर में पांच साल पहले तीन आईवीएफ सेंटर थे और आज 23 आईवीएफ सेंटर हैं।
- आईवीएफ सेंटर आने वाले पेशंट 35 से 40 की उम्र वाले हैं। एक साल में एक आईवीएफ सेंटर में 3 हजार पेशंट आ रहे हैं।
आईवीएफ तकनीक फर्टिलिटी रेट इंप्रूव करती है : डॉक्टर गीता खन्ना
अजंता हॉस्पिटल एवं आईवीएफ सेंटर, लखनऊ की डॉक्टर गीता खन्ना के अनुसार, महिलाओं में शिक्षा का उच्च स्तर, आर्थिक स्वतंत्रता, फैमिली प्लानिंग के बेहतर तरीके अपनाने से फर्टिलिटी रेट कम हुआ। भारतीय महिलाएं अब खुद भी यह तय करने लगी हैं कि उन्हें बच्चे कब और कितने करने हैं। इसमें महिलाओं की अपनी मर्जी चल रही है। कपल्स भी आजकल एक बच्चा ही चाहते हैं। लेकिन एक तरफ जहां भारत में फर्टिलिटी रेट गिर गया है वहीं आईवीएफ सेंटर इनको संतुलित करने में योगदान दे रहे हैं। आईवीएफ तकनीक फर्टिलिटी रेट इंप्रूव करती है। जिनके बच्चे नहीं हो रहे हैं,उनको आईवीएफ हेल्प करता है।
मैरिज की एज बढ़ने से फर्टिलिटी रेट कम हो रहा
अजंता हॉस्पिटल एवं आईवीएफ सेंटर. लखनऊ की डॉक्टर गीता खन्ना ने बताया कि फर्टिलिटी रेट इसलिए कम हो गया क्योंकि मैरिज की एज बढ़ गई है। महिलाएं करियर ऑरिएंटेड हो गईं, लोग बच्चा पोस्टपोंड करते हैं। महिलाएं अपना करियर बनाने के बाद जब बच्चा चाहती हैं तब वो 35 की उम्र के आस पास पहुंच जाती हैं। ओवरी मे अंडा बनने की शक्ति कम हो जाती है, जिसे आईवीएफ के जरिए करा सकते हैं। आईवीएफ के लिए 35 से 45 की उम्र वाली महिला आती हैं। 35 की उम्र में ओवेरियन रिजर्व नेचुरली कम हो जाता है क्योंकि ओवरी में एग लिमिटेड होते हैं। ओवेरियन रिजर्व होने के कारण फर्टिलिटी और भी रिड्यूस हो जाती है।
डॉक्टर गीता कहती हैं कि लाइफ स्टाइल चेंज होने के कारण ही पिछले एक दशक में आईवीएफ सेंटर आने वाली महिलाओं में 10 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। आईवीएफ की तकनीक और अच्छी होती जा रही है। 1990 में सक्सेस रेट 25 परसेंट थीं आज 75 प्रतिशत है।
35 साल के बाद प्रेग्नेंसी की संभावना कम होती है : डॉ. स्नेहा साठे
नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, मुंबई की फर्टिलिटी कंसल्टेंट डॉ. स्नेहा साठे बताती हैं कि कम उम्र में लोग शादी नहीं करना चाहते हैं। खासकर शहरों में 28 से 30 साल के बीच लड़कियां और लड़के मैरिज कर रहे हैं। देर से शादी होने से फैमिली प्लानिंग भी देर से होती है क्योंकि कपल्स अपने करियर में सेटल होना चाहते हैं। वे अपना घर खरीदना चाहते हैं, अच्छी नौकरी पाना चाहते हैं, कुछ सेविंग करना चाहते हैं इसलिए बच्चा देर से प्लान करते हैं। जब चाइल्ड बीयरिंग का प्लान लेट होता है तो लाइफ में कई चीजें देर से होने लगती हैं।
35 की उम्र में बच्चा प्लान करने में कई तरह की दिक्कत
डॉ. स्नेहा साठे के अनुसार, 35 के पास बच्चा प्लान करने में महिलाओं को कई तरह की दिक्कत हो सकती हैं और इसका असर फर्टिलिटी रेट पड़ता है। देर से शादी यानी कि देर से बच्चा प्लान करने से फर्टिलिटी रेट तो गिर रहा है। इसके कारण हेल्थ रिलेटेड कई प्रॉब्लम्स हो जाती है जैसे कि मिसकैरेज के चांस बढ़ जाते हैं,प्लेसेंटा प्रीविया में दिक्कत (प्रेग्नेंसी और डिलीवरी के दौरान अधिक ब्लीडिंग), डाउन सिंड्रोम और समय से पहले डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है। ओवरी में प्रॉब्लम और इंफेक्शन हो सकता है, ट्यूबरक्लोसिस की संभावना बढ़ जाती है।
उम्र के साथ-साथ औरतों के एग घटना शुरू हो जाते हैं। 35 साल के बाद प्रेग्नेंसी की संभावना कम होती है। इसलिए औरतों को 30 से पहले बच्चा प्लान करना चाहिए। अगर देर से बच्चा प्लान करना हो तो तो एग फ्रीज़ के बारे में सोचना चाहिए।
कॉन्ट्रासेप्टिव का इस्तेमाल बढ़ा
एनएफएचएस-5 के सर्वे के अनुसार, नौकरी करने वाली ज्यादातर महिलाओं में कॉन्ट्रासेप्शन यूज बढ़ा है। यूपी में, कॉन्ट्रासेप्टिव का उपयोग 13 प्रतिशत बढ़ गया है। यह 2016-16 में 31.7 प्रतिशत था जो 2019-2020 में 44.5 प्रतिशत हो गया है। इसमें महिला नसबंदी में 0.4 प्रतिशत की मामूली कमी भी है।
एनएफएचएस 5 और एनएफएचएस 4 के तुलनात्मक आंकड़ों से पता चलता है कि कॉन्ट्रासेप्टिव को इस्तेमाल करने वालों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी करने वाले राज्यों में बिहार में 21 प्रतिशत, गोवा 35.3प्रतिशत, दादर और नगर हवेली और दमन और दीव 24प्रतिशत, नागालैंड में 24 प्रतिशत शामिल हैं। अरुणाचल प्रदेश का 20.6% प्रतिशत और राजस्थान ने भी इस संबंध में 9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, पुडुचेरी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और गोवा ने 2019-2020 में कम से कम 60 प्रतिशत गर्भनिरोधक उपयोग दर्ज किया।
पंजाब और लद्दाख में सबसे तेज गिरावट दर्ज की गई है जबकि मेघालय 22.5 प्रतिशत और मणिपुर 18.2 प्रतिशत ने देश में सबसे कम गर्भनिरोधक उपयोग किया है।
इन आंकड़ों से पता चलता है कि महिलाएं छोटे परिवार चाहती हैं। कॉन्ट्रासेप्टिव के उपयोग में वृद्धि हुई है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 के आंकड़ों के अनुसार फैमिली प्लानिंग के लिए मौजूदा समय में 15 से 49 आयु की 66.7 महिलाओं ने कॉन्ट्रासेप्टिव का चयन किया है।
भारत में 15 से 49 वर्ष की आयु के 48.2 प्रतिशत कपल्स फैमिली प्लानिंग के लिए कॉन्ट्रासेप्टिव इस्तेमाल करते हैं।
महिलाओं में गर्भनिरोधक के आधुनिक तरीकों को उपयोग 47 से बढ़कर 56.5 हो गया है।
महिला नसबंदी में 34.2 प्रतिशत का योगदान है। 1992-93 में पुरुष नसबंदी 3.4 प्रतिशत से घटकर 1998-99 में 1.9 प्रतिशत हो गई। कंडोम का इस्तेमाल 2.4 प्रतिशत से बढ़कर 3.1प्रतिशत हो गया।
देश की एक महिला औसतन 2 बच्चों को जन्म दे रही
पिछले सात सालों में भारतीय समाज में महिलाओं के फर्टिलिटी रेट में कमी हुई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिर्पोट के अनुसार 2019-2021 में देश में प्रजनन दर 2:00 पर आ गई है। 2015-16 में यह दर 2.2 थी। आसान भाषा में कहा जाए तो देश की एक महिला औसतन 2 बच्चों को जन्म दे रही है। 1947 में देश की एक महिला औसतन 6 बच्चों को जन्म देती थी।
2019-2021 के लिए देश के 707 जिलों के लगभग 6.1 लाख घरों में सर्वेक्षण किया गया, जिसमें जिला स्तर पर 7,24,115 महिलाओं और 1,01,839 पुरुषों को शामिल किया गया।
2015-16 में रिपोर्ट राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण या एनएफएचएस- 5 (फेस 2) के अनुसार, नेशनल लेवल पर टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) 2.2 से घटकर 2.0 हो गई।
एनएफएचएस-5 सर्वेक्षण के मुताबिक इसमें गिरावट हुई है। सरकार के परिवार नियोजन कार्यक्रम के अलावा घटती प्रजनन दर का एक कारण छोटे परिवारों के प्रति लोगों की धारणा भी है। हालाँकि भारत में, चीन की तरह ‘एक बच्चे की नीति’ लोगों पर नहीं थोपी गई, फिर भी 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जन्म दर 1.1 से 1.9 है।
24 की उम्र लड़कियां शादी नहीं करना चाहती
एनएफएचएस-5 सर्वेक्षण के मुताबिक, महिलाएं देर से शादी कर रहृी हैं, इसलिए फर्टिलिटी रेट में गिरावट आ रही है। 20-24 और 25-29 वर्ग में महिलाओं की प्रजनन क्षमता अच्छी होती है। लेकिन इस उम्र वे शादी नहीं करना चाह रही क्योंकि अभी उन्हें अपने करियर पर फोकस करना है।
सबसे बड़ा बदलाव 15-19 की उम्र में आया है। किशोर गर्भधारण में उल्लेखनीय गिरावट आई है। अब कम लड़कियां ही शादी की कानूनी उम्र 18 साल से पहले ही शादी कर रही हैं।
किस वर्ग में कितना फर्टिलिटी रेट
सर्वेक्षण के आंकड़े के मुताबिक देश के लोअर इनकम ग्रुप में फर्टिलिटी रेट 3.2 है। यानी गरीब परिवार की महिला 3 से ज्यादा बच्चों को जन्म दे रही है। वहीं मध्यम वर्ग में यह दर 2.5 और उच्च वर्ग में 1.3 है। यानी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाएं ज्यादा बच्चे पैदा कर रही हैं।
समझिए फर्टिलिटी रेट क्या है
फर्टिलिटी रेट का मतलब है कि एक महिला कितने बच्चों को जन्म दे रही है। मान लीजिए शहर में एक कपल के दो बच्चे हैं तो यहां की फर्टिलिटी रेट 2 हुई। लेकिन अगर फर्टिलिटी रेट 1 रही तो आने वाले समय में जनसंख्या तेजी से गिरने लगती है।
कितना रहना चाहिए फर्टिलिटी रेट
माना जाता है कि किसी देश में फर्टिलिटी रेट 2.1 रहता है तो आने वाले कुछ सालों में जनसंख्या पर कंट्रोल रखा जा सकता है। अगर 2.1 से कम हो जाती है तो इसका मतलब है कि जनसंख्या में कमी आने वाली है। जैसे कि भारत की प्रजनन दर दो हो गई। देश की फर्टिलिटी रेट 1960 में 6 थी तब जनसंख्या में काफी बढ़ोतरी हुई थी।
फर्टिलिटी रेट कम होने के कारण हैं
1. देर से शादी और फैमिली प्लानिंग बना कारण
2. अपनी पढ़ाई और करियर को लेकर महिलाओं में पहले से अधिक जागरूकता आई है
3. आबादी कम होने से हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम पड़ेगा
4. परिवार नियोजन के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रही स्कीमों का अच्छा असर हुआ
5. आईवीएफ सेंटर बढ़े हैं या फिर सरोगेसी के केस अधिक हुए
6. परिवार के आकार में कमी या देरी होने से देश की बैंकिंग प्रणाली और घरेलू बचत प्रभावित हुई है।
ज्वाइंट एक्शन कमेटी बीएचयू से सम्बद्ध सामाजिक कार्यकर्ता राज अभिषेक का कहना है कि फर्टिलिटी रेट घटने के दो कारण हैं। पहला तो यह कि अपर क्लास में लिटरेसी रेट बढ़ा है, फैमिली प्लानिंग को लेकर जागरूकता बढ़ी है। दूसरा निचले तबके में अशिक्षा और बेरोजगारी कारण है। दोनों ही वर्गों में विवाह करने की उम्र बढ़ गई है। उच्च वर्ग में शिक्षा और करियर के कारण देर से मैरिज करने लगे हैं तो निम्न वर्ग में बेरोजगारी और पैसों की कमी के कारण देरी हो रही है। मतलब इन कारणों से दोनों ही वर्ग में फर्टिलिटी रेट कम हुई।
फर्टिलिटी रेट कम होना आबादी कम होना नहीं : परंजॉय गुहा ठाकुरता
लेखक और पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता के अनुसार किसी भी देश में उसके मौजूदा जनसंख्या को बरकरार रखने के लिए यह जरूरी है कि उस देश की फर्टिलिटी रेट 2.1 से कम ना हो। लेकिन भारत की प्रजनन दर 2 हो चुकी है। इसका सीधा मतलब यह है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में देश की जनसंख्या में गिरावट देखने को मिल सकती है। यह जानकार आपको ऐसा लग रहा होगा कि देश में बढ़ती आबादी की समस्या खत्म होने वाली है, लेकिन ऐसा नहीं है। क्योंकि फर्टिलिटी रेट का असर देश की आबादी पर बहुत लंबे समय के बाद दिखता है।
2021 में साइंस जनरल लैंसेट की रिर्पोट के अनुसार 2110 तक भारत चीन को पीछे करते हुए दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। अभी चीन की आबादी 1.44 है और भारत की 1.39 है।
सदी के अंत तक सारे देशों की जनसंख्या कमी होगी
लैंसेट की एक ओर स्टडी के अनुसार दुनिया भर में फर्टिलिटी रेट में कमी हो रही है और और इस सदी के अंत तक लगभग सारे देशों की जनसंख्या में कमी आएगी। तो अब सवाल यह है कि क्या भारत में एक बड़ी आबादी कंट्रोल में आ रही है? अब जनसंख्या विस्फोट नहीं होगा ?
1960 में भारत की जनसंख्या 45 करोड़ थी जबकि जन्मदर 5.91 थी। यानी देश की एक महिला औसतन 5 से 6 बच्चों को जन्म दे रही थी। जबकि आज यानी 140 करोड़ है और और अब एक महिला दो बच्चों को जन्म दे रही है। यानी 62 साल में देश की आबादी 95 करोड़ बढ़ गई जबकि फर्टिलिटी रेट अब घट रही है। तो जाहिर है कि आबादी भी कम होगी।
गांवों और शहरों में अंतर
शहरों में जहां फर्टिलिटी रेट 1.6 है, वहीं ग्रामीण इलाकों में यह 2.1 है।
धार्मिक समुदायों की वर्तमान प्रजनन दर
एनएफएचएस 5 में धार्मिक समुदायों की वर्तमान प्रजनन दर इस प्रकार है:
समुदाय-प्रजनन दर
मुस्लिम – 2.3
हिंदू 1.94
ईसाई- 1.88
सिख- 1.61
जैन – 1.6
बौद्ध और नव-बौद्ध-1.39 पर (देश में सबसे कम दर)
मुसलमानों में फर्टिलिटी रेट में काफी कमी आई
लेखक और पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता का कहना है कि हमारे देश में 14 से 15 प्रतिशत मुसलमान हैं, जिस गति से उनकी संख्या बढ़ रही है और हिन्दू 80 से 82 फ़ीसदी के आसपास हैं। तो मतलब साफ है कि हिन्दुओं में जनसंख्या की रफ्तार ज्यादा है।
परंजॉय गुहा ठाकुरता का मानना है कि देश में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ने की दर धीमी है। लोग कहते हैं कि मुसलमानों में एक से अधिक पत्नी होने के कारण उनकी जनसंख्या में इजाफा हो रहा है। तो यह पूरी तरह से गलत है झूठ है।
गर्भ निरोधकों का उपयोग बढ़ा
वर्तमान सर्वेक्षण के अनुसार, प्रजनन क्षमता में गिरावट का कारण विभिन्न गर्भ निरोधकों का उपयोग है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 की तुलना में गर्भ निरोधकों का उपयोग करने वालों की संख्या में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्तमान में, देश में औसतन 67 प्रतिशत लोग गर्भ निरोधकों का उपयोग कर रहे हैं और संस्थागत जन्म 79 प्रतिशत से बढ़कर 89 प्रतिशत हो गए हैं। वहीं 76 फीसदी बच्चों को समय के साथ टीका लगाया जा रहा है, जिससे शिशु मृत्यु दर में तेज गिरावट आई है।