नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी समान विचारधारा वाले दलों को साथ लेकर चलेगी।
खड़गे ने शनिवार को कांग्रेस के 85वें महाअधिवेशन के दूसरे दिन के प्रथम सत्र को रायपुर में संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस ऐसे सभी दलों को साथ लेकर चलेगी जो भाजपा और आरएसएस की विचारधारा से लड़ने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस देश जोड़ने का काम करती है जबकि भाजपा देश तोड़ना चाहती है। ऐसे में समान विचारधारा के लोगों को एक मंच पर आने की जरूरत है तभी देश के संवैधानिक संस्थानों को बचाया जा सकेगा।
खड़गे ने अपने संबोधन के दौरान मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि नोटबंदी, तालाबंदी सहित जीएसटी ने देश की अर्थव्यवस्था तो तबाह कर दिया है। लेकिन मोदी सरकार इन फैसलों को अपनी उपलब्धि बता रही है।
खड़गे ने कहा कि आज देश सबसे कठिन चुनौतियों से गुजर रहा है। सत्ता में बैठे लोग संवैधानिक मूल्यों का हनन कर रहे हैं। वे लोग देश की जनता के अधिकारों और भारत के मूल्यों पर हमला बोल रहे हैं। ऐसे समय में देश में एक नए आंदोलन के शुरुआत की जरूरत है।
Demonetisation
नई दिल्ली। नोटबंदी के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 4-1 के बहुमत से खारिज कर दिया। चार जजों ने नोटबंदी के फैसले को सही और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने गलत ठहराया। 7 दिसंबर को कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। नोटबंदी की प्रक्रिया को सही ठहराने वाले जजों में जस्टिस एस अब्दुल नजीर के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम शामिल हैं।
चार जजों ने अपने फैसले में कहा कि यह कार्यपालिका की आर्थिक नीति थी जिसे पलटा नहीं जा सकता। नोटबंदी का फैसला लेने की प्रक्रिया में कोई कमी नहीं थी। इसलिए उस नोटिफिकेशन को रद नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले में कहा है कि पुराने नोट बदलने के लिए 52 हफ्ते का पर्याप्त समय दिया गया, जिसे अब बढ़ाया नहीं जा सकता। कोर्ट ने कहा कि 1978 में नोटबंदी के लिए तीन दिन का समय दिया गया था, जिसे पांच दिनों के लिए और बढ़ाया गया था।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने कहा कि केन्द्र सरकार के कहने पर सभी सीरीज के नोट को प्रचलन से बाहर कर दिया जाना काफी गंभीर विषय है। नोटबंदी का फैसला केन्द्र सरकार की अधिसूचना के जरिए न होकर विधेयक के जरिए होना चाहिए था। ऐसे महत्वपूर्ण फैसलो को संसद के सामने रखना चाहिए था। जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि रिजर्व बैंक द्वारा दिए गए रिकॉर्ड से ये साफ होता है कि रिजर्व बैंक द्वारा स्वायत्त रूप से कोई फैसला नहीं लिया गया। सबकुछ केन्द्र सरकार की इच्छा के मुताबिक हुआ। नोटबंदी करने का फैसला सिर्फ 24 घंटे में ले लिया गया। केन्द्र सरकार के प्रस्ताव पर रिजर्व बैंक द्वारा दी गई सलाह को कानून के मुताबिक दी गई सिफारिश नही मानी जा सकती। कानून में आरबीआई को दी गई शक्तियों के मुताबिक किसी भी करेंसी के सभी सीरीज को बैन नही किया जा सकता, क्योंकि सेक्शन 26(2)के तहत किसी भी सीरीज का मतलब सभी सीरीज नही है। केन्द्र सरकार का 08 नवंबर का नोटबंदी का फैसला गैरकानूनी था।
इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा था कि नोटबंदी के नतीजों के बारे में न तो आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड को पता था और न ही केंद्रीय कैबिनेट को कोई जानकारी थी। चिदंबरम ने कहा था कि सरकार ने ये फैसला लेने से पहले पुराने और नये नोटों के बारे में कुछ नहीं सोचा। कोई आंकड़ा नहीं जुटाया गया। उन्होंने सवाल उठाया था कि क्या नोटबंदी का फैसला 24 घंटे के अंदर लिया जा सकता है। चिदंबरम ने कहा था कि नोटबंदी के बाद ज्यादातर नोट वापस आ गए। नोटबंदी के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई वह कानूनी तौर पर उल्लंघन है।
केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि 2016 के पहले भी देश में दो बार नोटबंदी की गई। पहली नोटबंदी 1946 में और दूसरी नोटबंदी 1978 में हुई थी। नोटिफिकेशन की धारा 4 के मुताबिक ग्रेस पीरियड दिया जा सकता है। अटार्नी जनरल ने कहा था कि याचिकाकर्ताओं का ये कहना बेबुनियाद है कि नोटबंदी से अप्रवासी भारतीयों का अपमान हुआ। नोटबंदी का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद इस पर संसद ने चर्चा की। संसद ने पूरी चर्चा कर इसे मंजूरी भी दी।