नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने 26 हफ्ते की गर्भवती महिला का भ्रूण हटाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला तब लिया, जब एम्स की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि बच्चा गर्भ में सामान्य है। डिप्रेशन की मरीज महिला जो दवाएं ले रही है, उससे बच्चे को कोई नुकसान नहीं हुआ है।
13 अक्टूबर को कोर्ट ने महिला का नए सिरे से स्वास्थ्य जांच का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह देखा जाएगा कि वह गर्भ जारी रखने योग्य है या नहीं। महिला जो दवाएं खाती रही है, उसके बावजूद भ्रूण गर्भ में स्वस्थ है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि हम याचिकाकर्ता को राजी नहीं कर सके हैं। अब कोर्ट को ही फैसला करना है। भाटी ने कहा था कि जीवन का समर्थन करने वाले देश गर्भपात को पूरी तरह से खत्म कर चुके हैं, क्योंकि उन्होंने अजन्मे बच्चे की स्थिति को नागरिकों के बराबर बढ़ा दिया है जबकि हम एक विकासशील देश हैं और इसलिए महिला की स्वायत्तता महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा था कि दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं है, जो 24 सप्ताह से अधिक गर्भावस्था समाप्त करने पर आगे कदम उठाता हो।
गौरतलब है कि 12 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने महिला से अपनी राय बताने को कहा था। चीफ जस्टिस ने कहा था कि महिला की इच्छा का सम्मान और अजन्मे बच्चे के अधिकार के बीच संतुलन कायम करना जरूरी है। सुनवाई के दौरान महिला की ओर से पेश वकील ने कहा था कि महिला की मानसिक और आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वो तीसरे बच्चे को जन्म दे। महिला के दो बच्चों की देखभाल उसकी सास करती है। कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी को महिला से बात करने को कहा था।
इस मामले पर 11 अक्टूबर को दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसला दिया था। जस्टिस हीमा कोहली और जस्टिस बीवी नागरत्ना की विशेष बेंच में मामले पर सहमति नहीं बन सकी, जिसके बाद इस मामले को बड़ी बेंच के पास रेफर करने के लिए चीफ जस्टिस के पास भेजा था। उसके बाद चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने 12 अक्टूबर को सुनवाई की थी।
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रायपुर। छत्तीसगढ़ में बिलासपुर के सकरी थाना क्षेत्र में लव जिहाद की सनसनी घटना से लोगों में आक्रोश है। स्थानीय पुलिस ने पहले तो इस घटना पर हीलाहवाली की। तब आईजी बद्रीनारायण मीणा से फरियाद कर इंसाफ की गुहार लगाई गई। अंततः आईजी के आदेश पर मुकदमा दर्ज हुआ। शुक्रवार को युवती की मेडिकल जांच कराई गई। पुलिस ने आरोपित आकिब जावेद (22) को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भेज दिया है। आकिब कुम्हारपारा जरहाभाठा का रहने वाला है।
पुलिस के अनुसार आकिब जावेद का निशाना बनी प्राइवेट जॉब करने वाली 22 वर्षीय हिंदू युवती का चार साल तक शारीरिक शोषण किया गया। उस पर धर्म परिवर्तन करने का दबाव बनाया गया। आरोपित के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज किया गया। उसे गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है।
बताया गया है कि आकिब और उसके रिश्तेदारों से परेशान यह युवती कुछ दिन पहले फरियाद लेकर सकरी थाना गई थी। तब पुलिस ने प्रेम प्रसंग का मामला बताकर उसे भगा दिया था। इंसाफ न मिलने पर मजबूरी में उसने आईजी के दर पर दस्तक दी।
युवती का आरोप है कि आकिब ने उसके साथ कई बार जबरदस्ती संबंध बनाए। वह गर्भवती हो गई। पता चलने पर उसका जबरदस्ती गर्भपात करा दिया गया। फिर भी वह संबंध बनाता रहा। वह इससे तंग आ गई। तब उसने आइंदा ऐसा करने पर पुलिस के पास जाने की चेतावनी दी।
पीड़ित का कहना है तब आकिब ने उससे जल्द शादी का वादा किया। इसके बाद आकिब और उसके रिश्तेदारों ने उस पर धर्म परिवर्तन करने का दबाव बनाया। वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। आकिब से हिंदू रीति-रिवाज से विवाह करने का आग्रह किया। इस पर उसके साथ मारपीट की गई। यह सिलसिला कई महीनों तक चला। एक हफ्ता पहले भी उसकी पिटाई की गई और जेवर भी छीन लिए।
नई दिल्ली । दिल्ली हाई कोर्ट ने स्वास्थ्य और महिला की सहमति के देखते हुए 33 हफ्ते पुराने भ्रूण को हटाने की इजाजत दे दी है।
जस्टिस प्रतिभा सिंह की बेंच ने 26 वर्षीय विवाहिता के 33 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की सशर्त अनुमति दे दी है। कोर्ट ने कहा कि भ्रूण को हटाने वाले डॉक्टर महिला को भ्रूण हटाने की प्रक्रिया और उसके परिणाम से अवगत कराएंगे। उसके बाद अगर महिला अपनी सहमति देती है तो भ्रूण हटाया जाए।
कोर्ट ने कहा कि भ्रूण हटाने को लेकर महिला की इच्छा और भ्रूण का स्वास्थ्य सबसे बड़ा मापदंड है। कोर्ट ने 2 दिसंबर को लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल को महिला के भ्रूण की पड़ताल के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया था। महिला ने अपने 33 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की अनुमति मांगी थी। याचिका में कहा गया था कि गर्भधारण के बाद से याचिकाकर्ता ने कई अल्ट्रासाउंड कराए। 12 नवंबर के अल्ट्रासाउंड की जांच में पता चला कि महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण में सेरेब्रल विकार है। याचिकाकर्ता महिला ने अल्ट्रासाउंड टेस्ट की पुष्टि के लिए 14 नवंबर को एक निजी अल्ट्रासाउंड में जांच करवाया। उसमें भी भ्रूण में सेरेब्रल विकार का पता चला।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने बांबे हाईकोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फैसले को उद्धृत करते हुए कहा था कि एमटीपी एक्ट की धारा 3(2)(बी) और 3(2)(डी) के तहत भ्रूण को हटाने की अनुमति दी जा सकती है। उन्होंने कहा था कि दिल्ली के जीटीबी अस्पताल में एमटीपी से जुड़े मामलों की पड़ताल के लिए मेडिकल बोर्ड नहीं है, इसलिए लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल को मेडिकल बोर्ड के गठन का आदेश जारी किया जाए। उसके बाद कोर्ट ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल को मेडिकल बोर्ड गठित कर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर महिला को सुरक्षित और वैधानिक रूप से भ्रूण हटाने का अधिकार है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि 20 से 24 हफ्ते का भ्रूण हटाने का अधिकार हर महिला को है, चाहे वह शादीशुदा हो या विवाहित। अविवाहित महिला को भी अपना भ्रूण सुरक्षित और वैधानिक रूप से हटाने का अधिकार है।
कोर्ट ने कहा कि समाज के बदलने के साथ कानून स्थिर नहीं रह सकता है। एमटीपी एक्ट की व्याख्या करते समय समाज की सच्चाई परिलक्षित होनी चाहिए। विवाहित और अविवाहित महिला का फर्क नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि असुरक्षित अबॉर्शन को टाला जा सकता है। किसी प्रेग्नेंट महिला की मानसिक स्थिति का भी ध्यान रखना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि विवाहित महिला भी रेप का शिकार हो सकती है। वो अपने पति के साथ बिना इच्छा बनाए गए संबंध से भी प्रेग्नेंट हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि रेप को साबित करने की जरूरत एमटीपी एक्ट के लक्ष्य के खिलाफ होगा। कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट और एमटीपी एक्ट को एक साथ देखना होगा।