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Success Story: लॉकडाउन के दौरान 2 साल की मेहनत ने अर्चना बिष्ट को बनाया ISRO का साइंटिस्ट, पढ़ें पूरी कहानी

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Archana Bisht Success Story: दो साल का लॉकडाउन कई लोगों के लिए वरदान साबित हुआ है. लॉकडाउन के दौरान गाजियाबाद की रहने वाली अर्चना ने अपनी मेहनत से अपना लक्ष्य हासिल किया है. लॉकडाउन में टाइमपास करने के बजाय अर्चना ने घर पर बैठकर मैथ की जमकर पढ़ाई की और अपने सपने को पूरा किया. अब अर्चना (Archana Bisht) इसरो में साइंटिस्ट (Scientist in ISRO) हैं. आइए जानते हैं अर्चना की सफलता की पूरी कहानी. अर्चना ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान घर पर रहकर खूब पढ़ाई करती थी और गणित की तैयारी करती थी. पहले स्कूल में हुई पढ़ाई को उसने घर में रिकॉल किया. अर्चना ने बताया अगर लॉकडाउन का गैप नहीं आता तो शायद इतनी बड़ी सफलता नहीं मिलती.

प्रताप विहार के ब्लूम स्कूल की छात्रा बनी इसरो में साइंटिस्ट

इसरो में सलेक्ट हुई साइंटिस्ट अर्चना बिष्ट का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने जमकर मेहनत की जिसके बाद उनका इसरो मे सलेक्शन हो गया. इसरो में सलेक्ट हुई अर्चना बिष्ट प्रताप विहार केएम ब्लॉक में रहने वाली हैं. प्रताप विहार के ब्लूम पब्लिक स्कूल से 12वीं टॉपर रही उसके बाद 2016 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ मैथमेटिक्स ऑनर्स कंप्लीट किया. उसके बाद बीएचयू से 2018 में मास्टर्स कंप्लीट कर सीएसआईआर (CSIR) का एग्जाम क्लियर किया. अर्चना ने बताया आईआईटी रूड़की में (IIT Roorkee) पीएचडी के लिए सलेक्शन हुआ. अर्चना बिष्ट ने लॉकडाउन के 2 साल गैप में बहुत मेहनत की. अर्चना ने कहा कि मैंने मैथमेटिक्स को पढ़ाई में जिया और बहुत मेहनत की और उसके बाद इसरो का एग्जाम मेरे लिए कुछ भी मुश्किल नहीं रहा.

100 में से 11 नंबर आया करते थे

अर्चना ने अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा एक समय वह भी था जब मेरे मैथ में 100 में से 11 नंबर आए थे. लेकिन टीचरों ने उसे उत्साहित किया और अगले साल ही अर्चना ने 100 में से 100 नंबर लाकर बता दिया उसके इरादे क्या है.अर्चना विजय नगर में रहती हैं, जो एक साधारण परिवार में जन्मी है. विजय नगर स्थित ब्लूम स्कूल में पढ़ती थी. आज अपने ही स्कूल की लड़कियों को उसने बताया कभी मैं भी आपकी तरह स्कूल की लाइन में खड़ा हुआ करती थी लेकिन मेरी मेहनत और लगन ने मुझे इसरो तक पहुंचा दिया.

माता-पिता होते हैं पहले टीचर

मां बाप और टीचर की प्रेरणा से बनी साइंटिस्ट अर्चना ने बताया लॉकडाउन के दौरान उसने 2 साल कड़ी मेहनत की लेकिन इस मेहनत में सबसे बड़ा योगदान उसके माता-पिता का था. अर्चना ने बताया माता-पिता ही बचपन के सबसे पहले टीचर होते हैं. माता-पिता की शिक्षा के बाद स्कूल में अध्यापक हमें मिलते हैं और वह हमें आगे ले जाते हैं. माता-पिता और टीचर के मार्गदर्शन के बाद उसने इसरो में साइंटिस्ट बनने का लक्ष्य प्राप्त किया है.

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