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Russia Ukraine War: फौरन जंग रोक दूंगा! रूस की ये तीन शर्तें मान लें जेलेंस्की तो पुतिन रेडी हैं, कहां फंसा पेच?

by Mansi

मॉस्को. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस-यूक्रेन जंग को खत्म करने के लिए तीन ‘बड़ी’ मांगें रखी हैं. सूत्रों के मुताबिक यूक्रेन की जमीन पर रूसी सैनिक भेजने के तीन साल बाद भी पुतिन ने इन तीन मांगों पर समझौता करने का कोई इरादा नहीं दिखाया है. वहीं ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि पुतिन की मांगें ‘जानबूझकर बहुत कड़ी’ हैं. गुमनाम अधिकारियों का हवाला देते हुए न्यूज एजेंसी ने कहा कि इसका ‘कोई संकेत नहीं है’ कि रूसी नेता ‘अपने किसी भी मांग पर समझौता करने के लिए तैयार हैं.’

व्लादिमीर पुतिन की शर्तें हैं कि यूक्रेन अपनी औपचारिक तटस्थता की प्रतिबद्धता जताए. दूसरा नाटो में शामिल होने की किसी भी आकांक्षा को छोड़ दे, और तीसरा कब्जे वाले इलाकों पर रूसी दावों की मान्यता दी जाए. रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने यूरोपीय शांति सैनिकों की तैनाती के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने पहले ही यूरोपीय शांति सैनिकों को हालात को स्थिर करने के लिए भेजे जाने से इनकार कर दिया है.

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डोनाल्ड ट्रंप का दावा
ये मांगें अमेरिका और यूरोपीय शांति कोशिशों के खिलाफ हैं जो एक स्थायी समाधान की कोशिश कर रहे हैं. जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा है कि पुतिन शांति चाहते हैं. हाल ही में 7 मार्च को ट्रंप ने प्रेस से कहा कि ‘मुझे यूक्रेन से निपटना अधिक कठिन लग रहा है.’ वहीं यूरोप के शांति के ‘इच्छुक देशों के गठबंधन’ की ओर से यूके के प्रधानमंत्री सर कीर स्टारमर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अपील की है कि वे सुनिश्चित करें कि वार्ताएं सकारात्मक नतीजे दें.

युद्धविराम की रणनीति तैयार
इस बीच यूक्रेन का समर्थन करने के इच्छुक देशों के के सैन्य नेता पेरिस में मिलेंगे. फ्रांसीसी अधिकारियों ने संकेत दिया है कि 30 देशों तक इसमें हिस्सा ले सकते हैं, जिसमें यूके के रक्षा प्रमुख एडमिरल सर टोनी राडाकिन भी शामिल होंगे. शनिवार को यूके के प्रधानमंत्री स्टारमर ने इच्छुक देशों के गठबंधन के समान विचारधारा वाले सहयोगियों के साथ एक बातचीत का नेतृत्व करेंगे. यदि एक युद्धविराम हो जाता है तो गठबंधन का उद्देश्य एक रणनीति तैयार करना है ताकि भविष्य में रूसी हमले को रोका जा सके. सभी देशों से शांति सेना में शामिल होने की उम्मीद नहीं है, लेकिन वैचारिक और रसद से समर्थन की उम्मीद की जा सकती है.