मां का प्यार अपने हर बच्चे के लिए समान होता है. बच्चे के भविष्य को बनाने के लिए मां (Mother) न जानें कितने त्याग हंसते हंसते कर देती है और बदले में उससे कोई उम्मीद नहीं रखती. इसीलिए एक मां के प्यार को नि:स्वार्थ और अनमोल माना गया है. हम सब भी अपनी मां को बहुत प्यार करते हैं, लेकिन चाहकर भी अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं कर पाते. मां के इस त्याग, समर्पण और प्यार को सम्मान देने और उनके प्रति अपनी संवेदना को प्रकट करने का दिन है मातृ दिवस, जिसे अंग्रेजी में मदर्स डे कहा जाता है. मदर्स डे (Mother’s Day) हर साल मई के दूसरे रविवार को मनाया जाता है. इस साल ये 8 मई 2022 (Mother’s Day 2022 Date) को मनाया जाएगा. इस मौके पर अगर आप अपनी मां से दूर हैं, तो यहां हम आपको बताने जा रहे हैं, मां पर बने वो शेर जो मशहूर कवियों द्वारा लिखे गए हैं. मां को समर्पित ये शेर आपके मन की भावनाओं और मां के प्रति श्रद्धा को शब्दों में पिरोकर मां के सामने जाहिर कर सकते हैं. मदर्स डे के दिन अगर आप मां को ये शेर भेजेंगे, तो आपकी मां खुद के प्रति आपके प्यार और समर्पण को देखकर अपने आंसू रोक नहीं पाएंगी.
मां को समर्पित शेर
– लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती, बस एक मां है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती -मुनव्वर राणा
– वो लम्हा जब मेरे बच्चे ने माँ पुकारा मुझे, मैं एक शाख़ से कितना घना दरख़्त हुई -हुमैरा रहमान
– मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार, दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी, बिन तार -निदा फाजली
– अभी जिन्दा है मां मेरी, मुझे कुछ भी न होगा, मैं जब भी घर से निकलता हूं, दुआ मेरे साथ चलती है -मुनव्वर राणा
– चलती फिरती आंखों से अज़ान देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं लेकिन मां देखी है -मुनव्वर राणा
– वो लम्हा जब मेरे बच्चे ने माँ पुकारा मुझे मैं एक शाख़ से कितना घना दरख़्त हुई -हुमैरा रहमान
– मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू, मुद्दतों मां ने नहीं धोया दुपट्टा अपना -मुनव्वर राणा
– भारी बोझ पहाड़ सा कुछ हल्का हो जाए, जब मेरी चिंता बढ़े मां सपने में आए -अख्तर नज्मी
– कल अपने-आप को देखा था माँ की आंखों में, ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है -मुनव्वर राना
– मैंने इक बार कहा था मुझे डर लगता है, एक मुद्दत से मेरी मां नहीं सोई ‘ताबिश’ -अब्बास ताबिश
– सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है, मुझे मालूम है मां की दुआएं साथ चलती हैं -आलोक श्रीवास्तव
– किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई, मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में मां आई -मुनव्वर राणा
– चुपके चुपके कर देती है जाने कब तुरपाई अम्मा, घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे -आलोक श्रीवास्तव
– मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार, दुख ने दुख से बातें की बिन चिट्ठी बिन तार -निदा फ़ाज़ली
– हम गरीब थे, ये बस हमारी मां जानती थी, हालात बुरे थे मगर अमीर बनाकर रखती थी -मुनव्वर राना
– मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती घर की कुंडी जैसी मां, बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां -निदा फाजली
– इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है -मुनव्वर राणा
– न जाने क्यों आज अपना ही घर मुझे अनजान सा लगता है, तेरे जाने के बाद ये घर-घर नहीं खली मकान सा लगता है.
– उन बूढ़ी बुजुर्ग उंगलियों में कोई ताकत तो न थी, मगर मेरा सिर झुका तो,कांपते हाथों ने जमाने भर की दौलत दे दी.
– मांगने पर जहां पूरी हर मन्नत होती है, मां के पैरों में ही तो वो जन्नत होती है.