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Maharashtra: शिवाजी स्मारक के लिए लोकमान्य तिलक को श्रेय, श्री शिवाजी रायगढ़ स्मारक मंडल बोला- नष्ट होने के बाद तिलक ने किया जीर्णोद्धार

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महाराष्ट्र के रायगढ़ में छत्रपति शिवाजी महाराज के स्मारक (Chhatrapati Shivaji Memorial) के बारे में हाल के विवाद पर इंद्रजीत सावंत और जितेंद्र आव्हाड के दावों का जवाब देते हुए, श्री शिवाजी रायगढ़ स्मारक मंडल (Shivaji Raigarh Smarak Mandal) ने दावा किया कि लोकमान्य तिलक (Lokmanya Tilak) ने स्मारक के जीर्णोद्धार की पहल की थी. सन 1895 में, तिलक और उनके सहयोगियों ने श्री शिवाजी रायगढ़ स्मारक मंडल का गठन किया, जिसके माध्यम से शिवाजी स्मारक का जीर्णोद्धार किया गया. मंडल ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि अंग्रेजों ने 1818 में रायगढ़ को जीतकर इसे नष्ट कर दिया और आम लोगों को साइट पर जाने से रोक दिया. 1883 में जेम्स डगलस जो एक इतिहास प्रेमी थे, शिवाजी की जीवनी पढ़ने के बाद उन्होंने रायगढ़ किले का दौरा किया था. उन्होंने अपनी “बुक ऑफ़ बॉम्बे” में लिखा था कि शिवाजी का स्मारक जर्जर अवस्था में था और उन्होंने ब्रिटिश सरकार की इसीलिए आलोचना भी की थी.

इसके बाद जीर्णोद्धार कार्य के लिए श्री शिवाजी रायगढ़ स्मारक मंडल का गठन किया गया. दाजी अबाजी खरे को अध्यक्ष बनाया गया और तिलक स्वयं मंडल के सचिव थे. तिलक ने “केसरी” और “मराठा” के माध्यम से जीर्णोद्धार कार्य के लिए धन दान करने की भी अपील की. उन्होंने जागरूकता अभियान शुरू किया और किले में शिवाजी की जयंती मनाने की योजना बनाई. तिलक की उपस्थिति में पहली जयंती 24 और 25 अप्रैल को 1896 में मनाई गई थी. हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने बहाली की अनुमति से इनकार कर दिया था. लोकमान्य तिलक ने तब सरकार की कड़े शब्दों में निंदा की और तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड लीमिंगटन को इसके बारे में एक ख़त लिखा था. उसके बाद शिवाजी महाराज के कई अनुयायियों ने जीर्णोद्धार कार्य में खुदसे योगदान दिया और जमा राशि डेक्कन बैंक को भेजी गई। अफसोस की बात है कि बैंक 1913 में ध्वस्त हो गया, इसके चलते तिलक अदालत गए और उन्हें ब्याज सहित 33,911 रुपये अदालत से वो इस कार्य के लिए मंजूर कर लाए.

ब्रिटिश सरकार ने 1925 को दी थी जीर्णोद्धार की अनुमति

विज्ञप्ति में कहा गया कि हालांकि धनराशि जारी होने से पहले, परिसमापन प्रक्रिया शुरू की गई थी और धन की वसूली नहीं की जा सकी थी. तिलक ने बिना उम्मीद खोए फिर से काम शुरू किया और फिर से 12,000 रुपये एकत्र किए. हालांकि, 1920 में उनकी मृत्यु हो गई लेकिन संघर्ष जारी रहा. 30 साल बाद ब्रिटिश सरकार ने 6 फरवरी, 1925 को जीर्णोद्धार की अनुमति दी. 6 फरवरी, 1925 को एक सरकारी संकल्प, दुग्गन ई.एम, अवर सचिव द्वारा हस्ताक्षरित, यहां संलग्न किया गया है.” श्री शिवाजी रायगढ़ स्मारक मंडल ने 12,000 रुपये, लोक निर्माण विभाग ने 5,000 रुपये, पुरातत्व विभाग ने 2,043 रुपये जीर्णोद्धार कार्य के लिए दिए. काम 1926 में पूरा हुआ और स्मारक जो अभी भी एक अच्छी स्थिति में है, को तब बहाल किया गया था. विज्ञप्ति में कहा गया कि यह दुखद है कि शिवाजी महाराज के स्मारक के लिए संघर्ष करने वाले और भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले तिलक को जातिगत पूर्वाग्रहों पर बदनाम किया गया है और स्मारक के लिए श्रेय से इनकार किया.

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