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Loudspeaker Controversy : अपने सबसे बेशर्म स्टंट के साथ महाराष्ट्र की राजनीति में वापस लौटे राज ठाकरे

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करण प्रधान :- 2006 के बाद से दुनिया बहुत बदल गई है. राजनीति (घरेलू और अंतरराष्ट्रीय), खेल, जलवायु परिवर्तन, तकनीक और इनोवेशन जैसे क्षेत्रों पर आए बड़े बदलाव को आप खुद महसूस कर सकते हैं. लेकिन, ऐसा लगता है कि राज ठाकरे (Raj Thackeray) का अवसरवाद और उनकी राजनीति के बेशर्म और ढीठ तौर-तरीके में बहुत कम बदलाव आया है. हाल के हनुमान चालीसा स्टंट, जनता को बहकाने की उनकी इच्छा का प्रतीक है. शिवसेना (Shiv Sena) के भीतर दरकिनार किए जाने को ठाकरे ने अपने साथ अन्याय माना और इससे उपजे गुस्से के परिणामस्वरूप 16 साल पहले, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) का जन्म हुआ.

इसकी स्थापना ‘भूमि पुत्र’ और मराठी महत्व जैसे मुद्दे पर हुई और एक समय, यह एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी बनना चाहती थी. पार्टी ने बड़े-बड़े दावों के साथ बदलाव का अग्रदूत होने की घोषणा की और कहा कि इसकी शुरुआत यह सुनिश्चित करने के साथ होगी कि महाराष्ट्र के लोग शांति से वेलेंटाइन डे मनाने में सक्षम होंगे. उस समय, 14 फरवरी को शिवसैनिकों का जबरन दुकानों में घुसना और वेलेंटाइन डे पर तोड़-फोड़ करना आम बात थी. तब MNS ने यह कहा कि वह कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस का सहयोग करेगी.

उनकी बदलती राजनीति

अब, अजीब चीजें देखने को मिल रही हैं. अपनी खुद की पार्टी बनाने से पहले राज, भारतीय विद्यार्थी सेना (शिवसेना का स्टूडेंट विंग) के प्रमुख थे, यह विंग वैलेंटाइन दिवस विरोधी गतिविधियों की अगुआई करता था. यह एक पर्याप्त संकेत था कि आगे उनकी राजनीति कैसे चलेगी. कई वर्षों तक, उनकी पार्टी सभी दुकानों और संस्थानों पर मराठी साइन बोर्ड की मांग और सुशांत सिंह राजपूत की, एमएस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी के मराठी डब जैसे मुद्दों के खिलाफ भटकती रही. असल में, वे कुछ साल पहले ऐसा नहीं कर सकते थे, क्योंकि तब हिंदी साइन बोर्ड नहीं हुआ करते थे और सभी दुकानों में मराठी में साइन बोर्ड होते थे.

जैसे-जैसे साल बीतते गए, ठाकरे एक के बाद एक कई तरह के मुद्दों को उठाते, और जब उन्हें यह अहसास होता कि महाराष्ट्र की राजनीति में उनकी पार्टी कोई खास जगह नहीं रखती और वह 2009 के विधानसभा चुनाव से बहुत दूर है, या इन मुद्दों से उनकी पार्टी को नुकसान हो सकता है, तो वह इन्हें वापस ले लेते. 2009 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उन्हें केवल 4.6 फीसदी वोट मिले और वह महज 13 सीटें जीत पाए. तब से पार्टी की किस्मत खराब ही चल रही है, पूरे राज्य में उसके पास मुट्ठी भर नगरपालिका सीटें और एकमात्र विधानसभा सीट है. वक्त बीतने के साथ, राजनीतिक उठापटक के लिए ठाकरे ने दूसरा ठिकाना ढूंढा, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.

जब मोदी 2011 में गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब राज ने उनके राज्य में उनसे मुलाकात की और भविष्य के प्रधानमंत्री की हर तरह से प्रशंसा की. एक साल बाद, जब मोदी ने तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिया, तब राज ने शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया. 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले, उन्होंने भारत के अगले प्रधानमंत्री के रूप में मोदी को सार्वजनिक रूप से समर्थन दिया. चुनावी चक्र फिर बदल गया और राज सत्य की खोज में निकल गए, यह बताते हुए कि पांच साल पहले किए अपने वादों को पूरा करने में मोदी सरकार कैसे विफल रही. यहां तक कि उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस को अपना समर्थन तक दे डाला. लेकिन अपने इरादों और उद्देश्यों के लिए, अब ठाकरे फिर से बीजेपी के पाले में खड़े होते नजर आ रहे हैं.

धर्मनिरपेक्षता का ध्वज

उनके नए राजनीतिक पैंतरे को तैयार होने में दो साल लगे हैं. MNS का गठन करने के बारे में, ठाकरे ने विस्तार से बताया कि कैसे उनकी पार्टी के तिरंगे झंडे में दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए नीला रंग, हिंदू समुदाय के लिए भगवा और मुस्लिम समुदाय के लिए हरा रंग दिखाया गया. मुझे संदेह है कि क्या केवल मैं ही यह मानता हूं कि धर्मनिरपेक्ष होने का प्रचलन और फैशन 2006 से पहले की बात थी. इसलिए अवसरवादी ठाकरे ने उस मुद्दे जोर-शोर से उठाया.

अब मौजूदा दशक को देखें. जब जघन्य अपराधों की बात आती है तो शायद धर्मनिरपेक्ष होना करीब-करीब उतना ही बड़ा अपराध है जितना किसी बच्चे की हत्या कर देना. इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि जनवरी 2020 में MNS ने ‘आक्रामक’ हिंदुत्व को अपनाने के लिए अपने नए भगवा झंडे और सोच का अनावरण किया, जिसे शिवसेना ने, महाराष्ट्र में कांग्रेस और राकांपा के साथ गठजोड़ करके, त्याग दिया था. यहां, यह ध्यान देने योग्य है कि 2019 में, महाविकास अघाड़ी के साथ गठबंधन करने के लिए MNS ने बहुत कोशिश की थी, जिसे उसके सदस्यों ने ठुकरा दिया था. और अब लाउडस्पीकर जैसे मुद्दों पर ‘आक्रामक हिंदुत्व’ बहुत ही मामूली और बनावटी तरीके से उभरा है. ऐसे में इन सब से हमें क्या सीख मिलती है?

चुनावों का मौसम आने वाला है

आइए, इस तथ्य को नजरअंदाज करें कि ठाकरे सुविधाजनक, गरमागरम मुद्दों को पकड़ते हैं, जिन पर उनका समाधान हमेशा ऊटपटांग होता है. अधिक प्रासंगिक बात यह है कि हम महाराष्ट्र के निकाय चुनावों से कुछ महीनों दूर हैं, जिसमें भारत के सबसे धनी बृहन्मुंबई नगर पालिका के चुनाव भी शामिल हैं. ठाकरे के हालिया ट्वीट को देखें तो वे शिवसेना कार्यकर्ताओं तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं. ठाकरे का नया स्टंट एक बार फिर प्रासंगिक बनने के लिए है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि शिवसैनिक उनके पाले में शामिल होते हैं या नहीं.

बीजेपी या एमवीए में कोई भी ठाकरे और उनकी पार्टी को एक सिरदर्द से ज्यादा कुछ नहीं देखता, (यदि वह आपकी तरफ है तो एक अच्छा सिरदर्द है, अगर वह नहीं है तो सामान्य सिरदर्द है) और शक्ति प्रदर्शन का यह नया एपिसोड इसका सबसे स्पष्ट प्रमाण है. राज ठाकरे, जो एक प्रतिभावान कार्टूनिस्ट हैं, को ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना होगा और सुविधाजनक मुद्दे को पकड़ने की तुलना में अधिक टिकाऊ योजना तैयार करना होगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)

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