लॉस एंजल्स में हुए भारतीय फिल्म फेस्टिवल (IFFLA) ने अपनी 20वीं वर्षगांठ पर अवार्ड जीतने वाले विजेताओं का ऐलान कर दिया है. जिसमें चंडीगढ़ के थिएटर एक्टर (Theatre Artist) और पहली फिल्म निर्माता अनमोल सिद्धू की फिल्म जग्गी को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म डेब्यू के सम्मान से नवाजा गया. फिल्म के लिए उनको उमा दा कुन्हा अवार्ड के साथ-साथ सर्वश्रेष्ठ फीचर के लिए ऑडियंस च्वाइस अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. सिद्धू की फिल्म जग्गी (Jaggi) ग्रामीण पंजाब में एक स्कूली लड़के का ऊपर फिल्माई गई है, जो एक ट्रांसजेंडर होने पर जहरीली सामाजिक मर्दानगी और यौन शोषण का सामना करता है.
भारतीय स्वतंत्र सिनेमा और उनकी उभरती आवाजों के समर्थक और भारतीय फिल्म फेस्टिवल की संस्थापक सदस्य उमा दा कुन्हा ने सिद्धू से इस फिल्म के चयन को लेकर बात की. इस बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि भारत में कुछ स्वतंत्र फिल्में पंजाबी भाषा में बनाई जाती हैं. इसके अलावा बहुत कम ऐसी फिल्में हैं जो ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंचने के लिए त्योहारों का रास्ता अपनाती हैं. इसके आगे उन्होंने खुलकर अपनी बात रखते हुए कहा कि इस फिल्म को एक ऐसे माहौल में देखने की जरूरत है, जहां लोग यौन मामलों पर बात करते हुए झिझके नहीं. साथ ही इस मुद्दे पर खुले तौर पर बात कर की जा सके.
इसके आगे भारतीय फिल्म फेस्टिवल के डायरेक्टर ने कहा कि जग्गी एक ऐसी कहानी पर आधारित फिल्म है, जिसपर बात करने की बहुत जरूरत है, लेकिन कोई इस पर बात नहीं करता है. उन्होंने अपनी टीम को संबोधित करते हुए आगे कहा कि हम ज्यादा से ज्यादा क्या कर सकते हैं. हमारे पास कहानियां आती हैं, हमें मंत्रमुग्ध करती हैं और फिर पब्लिक के पास चली जाती है. उसके बाद वो कहानियां अपने अपने टारगेट ऑडिअंस तक पहुंचकर उनकी उसी पुरानी सोच को बढ़ावा देती हैं.
शॉर्ट फिल्म से अब लेगी फीचर फिल्म का रूप
बता दें कि जग्गी एक फिल्म है जो पहली बार एक शॉर्ट फिल्म के रूप में शुरू हुई है और फीचर फिल्म प्रोजेक्ट के रूप में आकार लेने से पहले इसने स्क्रीनप्ले और स्टोरीबोर्ड के कई ड्राफ्ट तैयार कर लिए हैं.
ग्रामीण इलाके की सच्ची घटना पर आधारित है फिल्म
फिल्ममेकर अनमोल सिद्धू बताते हैं कि यह फिल्म एक ऐसी कहानी पर आधारित है जो पंजाब के एक ग्रामीण इलाके की है. ये फिल्म एक ऐसी घटना पर आधारित है जिसे उन्होंने व्यक्तिगत रूप से देखा है. यही कारण है कि ये उनके दिल के बेहद करीब है.
मैं यौन उत्पीड़न के जख्मों से बखूबी वाकिफ हूं- सिद्धू
वो बताते हैं कि मैंने अपना अधिकांश जीवन एक गाँव में बिताया है, मैं यौन शोषण के जख्मों को पूरी तरह से समझ सकता हूं. इस मामले में एक युवा स्कूली छात्र को धमकाना, प्रताड़ित करना, उसका यौन शोषण और उसके साथ छेड़छाड़ करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं. लेकिन, पंजाब के ग्रामीण इलाकों में आम मुद्दे एक कठोर वास्तविकता है.
यौन शोषण के विषय पर खुलकर नहीं होती बात
दुख की बात है कि आज के समय में भी, यौन शोषण एक ऐसा विषय है जिस पर अक्सर बात नहीं की जाती है. माता-पिता, शिक्षकों और दोस्त भी इन शब्दों को संबोधित नहीं करते हैं. इतना ही नहीं, अगर इस बारे में कोई भी चर्चा की जाती है तो बिना इन शब्दों का उच्चारण किए.
अनमोल सिद्धू की उम्र महज 27 साल
मैंने इसको लेकर हमेशा परेशानी का सामना ही किया है. यही कारण है कि मैं हमेशा से एक ऐसी फिल्म बनाना चाहता था, जो इस मुद्दे को संबोधित करे. अनमोल सिद्धू की उम्र 27 वर्ष की है. अनमोल कई सालों से अलंकार थिएटर के साथ एक थिएटर आर्टिस्ट के रूप में काम कर रहे हैं.