अमेरिका में H-1B वीजा कार्यक्रम को लेकर विवाद गहराता जा रहा है, खासकर भारतीय वर्कर्स के लिए यह एक प्रमुख मुद्दा है। इस वीजा के जरिए अमेरिका में विभिन्न स्पेशलाइज्ड फील्ड्स में विदेशी वर्कर्स को नियुक्त किया जाता है, जिनमें तकनीकी, हेल्थकेयर और अन्य क्षेत्रों में कार्यरत लोग शामिल हैं। भारतीय नागरिक H-1B वीजा का सबसे बड़ा हिस्सा बनाते हैं, लेकिन इसके इर्द-गिर्द कई विवाद उत्पन्न हो गए हैं, खासकर जब इसे अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां छीनने का कारण बताया जाता है।
बर्नी सैंडर्स का बयान
अमेरिका के प्रमुख सांसद बर्नी सैंडर्स ने H-1B वीजा प्रोग्राम को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं। उन्होंने इस कार्यक्रम में बदलाव की मांग की है, ताकि अमेरिकी वर्कर्स को नौकरियों में प्राथमिकता दी जा सके। सैंडर्स का कहना है कि अमेरिका को विदेश से सस्ते कर्मचारियों को लाने के बजाय अपने नागरिकों को प्रशिक्षित करना चाहिए। उनका मानना है कि स्किल्ड वर्कर्स की जरूरत को पूरा करने के लिए अमेरिका में ही लोगों को तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने अमेरिकी शिक्षा व्यवस्था में सुधार की भी वकालत की है।
एलॉन मस्क और सैंडर्स के बीच मतभेद
सैंडर्स की टिप्पणियां टेस्ला के सीईओ एलॉन मस्क के विचारों के खिलाफ थीं। मस्क ने H-1B वीजा कार्यक्रम का समर्थन किया था, यह कहते हुए कि अमेरिका को प्रतिभाशाली लोगों की जरूरत है और H-1B वीजा इसके लिए उपयुक्त है। सैंडर्स ने मस्क की टिप्पणियों को खारिज करते हुए कहा कि इस प्रोग्राम का उद्देश्य बेहतरीन और प्रतिभाशाली लोगों को नियुक्त करना नहीं, बल्कि सस्ते श्रमिकों को लाकर अमेरिकी नौकरियों को छीनना है। उनका कहना था कि सस्ते श्रमिकों को नियुक्त करके अरबपति कंपनियों के मालिक ज्यादा मुनाफा कमाते हैं।
भारतीय-अमेरिकी डॉक्टर की प्रतिक्रिया
सैंडर्स की इन टिप्पणियों के बाद एक भारतीय-अमेरिकी डॉक्टर ने नाराजगी जताई। उन्होंने सैंडर्स को इस मामले पर आलोचना की और H-1B वीजा की अहमियत को उजागर किया, खासकर जब अमेरिका में भारतीय डॉक्टरों की बड़ी संख्या स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में योगदान दे रही है।
H-1B वीजा पर भारत का रुख
भारत ने भी H-1B वीजा को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट की है, यह दावा करते हुए कि इस वीजा प्रोग्राम ने अमेरिका में उच्च गुणवत्ता वाले कामकाजी वर्ग को योगदान देने का अवसर प्रदान किया है। भारत का कहना है कि इस वीजा प्रणाली के तहत भारतीय पेशेवरों ने अमेरिका की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और इससे दोनों देशों के बीच तकनीकी और शैक्षिक सहयोग को बढ़ावा मिला है। H-1B वीजा को लेकर चल रहा यह विवाद अब एक वैश्विक मुद्दा बन चुका है, जिसमें भारत और अमेरिका दोनों के नागरिकों की भागीदारी है।