City Headlines

Home Uncategorized GST Collection में रिकॉर्ड तोड़ बढ़त क्या एक समृद्ध और संतुलित अर्थव्यवस्था का संकेत है?

GST Collection में रिकॉर्ड तोड़ बढ़त क्या एक समृद्ध और संतुलित अर्थव्यवस्था का संकेत है?

by

अप्रैल 2022 के जीएसटी कलेक्शन (GST Collection) के शानदार और ऐतिहासिक आंकड़ों से देश के अंदर और देश के बाहर भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) में चमत्कारिक सुधार को लेकर जबरदस्त उत्साह है. सरकार ने भी रिकॉर्ड जीएसटी कलेक्शन के लिए अपनी पीठ थपथपाने के साथ देश के आर्थिक संकट से उबरने तक का ऐलान कर दिया है. स्वभाविक भी है क्योंकि सरकार के जीएसटी (GST) कलेक्शन ने एक बार फिर नया रिकॉर्ड जो बना दिया है. सरकार को अप्रैल में जीएसटी 9के जरिए 1 लाख 67 हजार 540 करोड़ रुपये की रिकॉर्ड कमाई हुई है. सरकार की मानें तो इसकी बड़ी वजह ये है कि आर्थिक गतिविधियां पहले से काफी बेहतर हुई हैं.

इससे पहले मार्च 2022 में जीएसटी कलेक्शन 1.42 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर था. इस लिहाज से देखें तो अप्रैल 2022 का जीएसटी कलेक्शन मार्च 2022 की तुलना में करीब 25 हजार करोड़ रुपये अधिक है. लेकिन क्या जीएसटी का रिकॉर्ड हाई कलेक्शन देश की आर्थिक प्रगति और सुधार का संकेत माना जा सकता है? इससे कोई इनकार नहीं कि भारत में जीएसटी की स्थापना से लेकर अब तक के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो अप्रैल 2022 का जीएसटी कलेक्शन बेहद शानदार और ऐतिहासिक है, लेकिन इसके साथ ये सवाल भी सरकार को कठघरे में खड़े करते हैं कि हम कितने नए लोगों को रोजगार दे पाए, लोगों की आय में कितनी बढ़ोतरी हुई, खपत और मांग को हम कितना बढ़ा पाए, महंगाई को हम कितना कंट्रोल कर पाए?

ये तमाम सवाल ऐसे हैं जो जीएसटी कलेक्शन के रिकॉर्ड आंकड़े पर सवाल खड़े करते हैं. तो ऐसे में ये भी सवाल उठता है कि क्या जीएसटी कलेक्शन के आंकड़े गलत हैं? नहीं, बिल्कुल नहीं. जीएसटी कलेक्शन के आंकड़े बिल्कुल सही हैं, लेकिन जीएसटी कलेक्शन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर बयां नहीं करती है. लिहाजा देश की आर्थिक सेहत से जुड़े तमाम सवालों के जवाब जानने से पहले हमें जीएसटी की हकीकत से जुड़े पहलुओं को समझना होगा.

महंगाई से जीएसटी कलेक्शन का है सीधा संबंध

जीएसटी दरअसल एक ‘ट्रांजैक्शनल टैक्स’ होता है. वस्तु एवं सेवाओं के लेन-देन पर लगने वाला टैक्स. यह उत्पाद के मूल्य पर लगाया जाता है. मतलब अगर उत्पाद और सेवाओं के दाम अधिक होंगे तो टैक्स कलेक्शन भी अधिक होगा. मान लीजिए कोई सामान मार्च के महीने में 100 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा था, जिसपर 28 प्रतिशत के हिसाब से 28 रुपये का जीएसटी प्राप्त हो रहा था. अप्रैल के महीने में उस वस्तु की कीमत 130 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई तो स्वभाविक तौर पर 28 प्रतिशत के हिसाब से 36.40 रुपये जीएसटी के तौर पर प्राप्त होंगे. आप इसे यूं भी समझ सकते हैं. पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. हालांकि ये दोनों उत्पाद जीएसटी के तहत नहीं आते हैं लेकिन डीजल की कीमत बढ़ने का असर माल भाड़े पर सीधे तौर पर पड़ता है.

ट्रकों की ऑपरेटिंग लागत में 65 से 70 प्रतिशत खर्च डीजल का होता है. इसके अलावा, टोल टैक्स और इंश्योरेंस दूसरे प्रमुख खर्च हैं. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल रिसर्च के मुताबिक, ट्रांसपोर्टर्स ने इसका बोझ सीधे उपभोक्ताओं पर डालते हुए माल भाड़ा बढ़ाना शुरू कर दिया है. देश के 159 ट्रांसपोर्ट रूट्स में से 143 यानी 90% रूट्स पर माल भाड़ा बढ़ा दिया गया है. डीजल, टोल और बीमा तीनों को मिला दें तो बीते सालभर में मालभाड़े में 25% तक का इजाफा हुआ है. जाहिर सी बात है, इससे हर उत्पाद की कीमतें बढ़ी है और उसी आधार पर जीएसटी कलेक्शन भी बढ़ा है. कहने का मतलब यह कि वस्तु या उत्पाद की कीमत बढ़ने से जीएसटी कलेक्शन बढ़ जाता है. आसान शब्दों में कहें तो बढ़ती महंगाई अगर रिकॉर्ड बनाएगा तो जीएसटी कलैक्शन खुद-ब-खुद रिकॉर्ड बन जाता है.

लगातार बढ़ रही खुदरा और थोक महंगाई दर

जब हम जीएसटी कलेक्शन के आंकड़ों को समझने की कोशिश करते हैं तो मौजूदा दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी मुश्किल उसकी बढ़ती महंगाई है और अब तो यह महंगाई सरकारी आंकड़ों में भी दिखाई देने लगी है. मार्च के महीने में खुदरा महंगाई दर 18 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई. सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, खुदरा महंगाई दर 6.95 प्रतिशत पर रही. यह लगातार तीसरा महीना है जब खुदरा महंगाई दर आरबीआई की 6% की ऊपरी लिमिट के पार रही है.

मार्च 2022 के थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर (WPI based Inflation) की बात करें तो यह भी चार महीने के उच्चतम स्तर 14.55 प्रतिशत पर रही. जबकि फरवरी 2022 में थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर 13.11 प्रतिशत रही थी. जनवरी 2022 में यह दर 12.96 प्रतिशत थी. महंगाई दर के आंकड़े इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि जीएसटी के रिकॉर्ड कलेक्शन की असली वजह महंगाई दर का लगातार बढ़ना है. और महंगाई दर का बढ़ना किस तरह से भारत की आर्थिक तरक्की का सूचक है, सरकार यह नहीं बता रही है.

रिकॉर्ड जीएसटी कलेक्शन और बेरोजगारी का दंश

भारत में बेरोजगारी की समस्या लगातार विकराल रूप धारण करती जा रही है. अप्रैल महीने में देश की बेरोजगारी दर बढ़कर 7.83% पर पहुंच गई. इससे पहले मार्च में ये 7.60% पर थी. बेरोजगारी दर 7.83 फीसदी रहने का मतलब यह है कि काम करने को तैयार हर 1000 लोगों में से 78 लोगों को काम नहीं मिल पाया. नौकरियों की बात करें तो फरवरी में कर्मचारी भविष्यनिधि कार्यालय (EPFO) के तहत जुड़ने वाले नए सदस्यों की संख्या 8.40 लाख रही, जबकि 9.35 लाख इससे बाहर हो गए. इसी तरह एनपीएस में जुड़ने वाले सदस्यों की संख्या भी 0.59 फीसदी घटी है.

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 से 2022 के बीच, कुल श्रम भागीदारी दर 46 प्रतिशत से घटकर 40 प्रतिशत हो गई है. भारत में अभी 90 करोड़ लोग रोजगार के योग्य हैं. इनमें 45 करोड़ से ज्यादा लोगों ने अब काम की तलाश भी छोड़ दी है. देश में रोजगार की अभी जो स्थिति बनी हुई है वह भारत में आर्थिक असमानता भी तेजी से बढ़ा रहा है. इसे ‘K शेप ग्रोथ’ कहते हैं. इसमें अमीरों की आय जितनी तेजी से बढ़ती है, गरीबों की आय उतनी तेजी से नहीं बढ़ती है.

आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो किसी भी देश की आर्थिक सेहत को उसकी बेरोजगारी दर सही तरीके से पेश करती है. ऐसे में सवाल तो बनता है कि भारत में जिस तरह की बेरोजगारी का परिदृश्य है, जीएसटी के रिकॉर्ड कलेक्शन से उसपर पर्दा डाला जा सकता है और अगर नहीं तो फिर जीएसटी कलेक्शन को देश की आर्थिक तरक्की से जोड़कर देखना खुद को दिग्भ्रमित करने जैसा होगा.

खपत और मांग की कमी से जूझ रहा है बाजार

इसमें कोई शक नहीं कि जीएसटी कलेक्शन से सरकार का खजाना भर रहा है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हमारा बाजार भी खपत और मांग की कमी से उबर गया है. विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार की ओर से अचानक किए गए नीतिगत बदलावों मसलन, 2016 में नोटबंदी, फिर 2017 में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी लागू कर दिया. इसके बाद रियल एस्टेट से जुड़े रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) कानून समेत कई नीतिगत बदलावों से भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा पहले से ही खराब हो रखी थी और ऊपर से 2020 में आई कोरोना महामारी ने तो तबाही ही मचा दी. इन तमाम वजहों ने संगठित और असंगठित दोनों सेक्टरों पर जबरदस्त प्रहार किया.

सरकार की ओर से एक के बाद एक ऐसे कई नीतिगत फैसले किए गए जिन्होंने ना सिर्फ अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमताओं पर चोट पहुंचाई बल्कि इनसे लोगों की आजीविका भी बुरे तौर से प्रभावित हुई. शहरी क्षेत्रों में मांग तभी पैदा होती है जब उत्पादन से जुड़ी गतिविधियों में गति हो. उपभोक्ता मांग पैदा करने में असंगठित सेक्टर की बड़ी भूमिका होती है. लेकिन नोटबंदी और जीएसटी की वजह से असंगठित क्षेत्र इस तरह से चरमराया कि एक बार जब उत्पादन पटरी से उतरा तो यह पहले के स्तर पर फिर पहुंच नहीं पाया. इससे रोजगार में भी भारी गिरावट आई. शहरी उपभोक्ता अपनी आय में इजाफे का इंतज़ार कर रहा है लेकिन यह बढ़ नहीं रही है.

अलबत्ता उसकी देनदारियां बढ़ती जा रही हैं. इस वजह से उसने जोखिम लेकर खर्च करना बंद कर दिया है. आप कहेंगे सरकार ग्रामीण क्षेत्र में खर्च कर तो रही है, लेकिन यहां यह जानना जरूरी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में किए जाने वाले खर्च से शहरी क्षेत्र में किए जाने वाले खर्च की भरपाई नहीं हो सकती है. शहरी अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में ज्यादा वक्त लगता है क्योंकि उत्पादन अपनी पूरी क्षमता के साथ शुरू नहीं हो पाया है. इसके पीछे मांग में कमी मुख्य वजह है. लोग पहले से ही अर्थव्यवस्था में सुस्ती की मार झेल रहे थे और अब लोग कोराना के दुष्प्रभाव के तौर पर नौकरी खत्म होने व वेतन कटौती की मार झेल रहे हैं. उनके सामने अनिश्चितता की स्थिति है. भविष्य की चिंता ने उन्हें खर्च करने से रोक दिया है. वे पैसे बचा रहे हैं. लोगों को लगता है कि बुरे दिन अभी बीते नहीं हैं.

यह महंगाई के बेतहाशा बढ़ने का संकेत है

सरकार अभी तक ऐसा माहौल नहीं बना पाई है जिसमें लोग खर्च करें और मांग को बढ़ाएं. ऐसे में रिकॉर्ड जीएसटी कलेक्शन के आंकड़ों को सामने रखकर सरकार अगर यह दावा कर रही है कि भारत की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से निकल चुकी है तो सरकार को यह भी बताना चाहिए कि खपत और मांग की कमी बुरे दौर से क्यों नहीं उबर रही है और क्या जीएसटी के रिकॉर्ड कलेक्शन से इस समस्या को खत्म किया जा सकता है?

अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता और अमेरिकी अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन अक्सर कहा करते थे कि महंगाई बिना कानून के लगाया गया टैक्स है. इसे बाजार में हर इंसान को भरना होता है. मिल्टन के इस कथन पर जीएसटी कलेक्शन को आंकें तो सरकार के राजस्व का भी यही तरीका मौजूदा दौर में दिखाई पड़ रहा है जिसे जनता समझ नहीं पाती. ऐसे भी सरकार कोई भी हो, उसे बढ़ती महंगाई से तब तक कोई दिक्कत नहीं है जब तक उसकी राजनीतिक सत्ता को कोई चुनौती नहीं मिलती.

इसलिए यहां ये बात गहराई से समझने की जरूरत है कि अगर महंगाई को नियंत्रण में किए बिना रिकॉर्ड जीएसटी कलेक्शन के आंकड़ों से देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर समझने की भूल की जानी लगे जो आजकल खूब हो रहा है तो तय मानिए, हमारा देश एक बड़ी आर्थिक तबाही की तरफ बढ़ रहा है. यह महंगाई के बेतहाशा बढ़ने का संकेत है. बाजार में खपत और मांग के और विकराल रूप धारण करने का संकेत है. जीएसटी कलेक्शन में रिकॉर्ड तो़ बढ़त को एक समृद्ध और संतुलित अर्थव्यवस्था के संकेत के तौर पर बिल्कुल नहीं देख सकते हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)

Leave a Comment