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Eid Ul Fitr 2022: जानें ईद उल-फितर और ईद उल-अजहा के बीच का अंतर

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पूरे विश्व में मीठी ईद यानी ईद उल फितर ( Eid Ul Fitr 2022 ) का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से इस बार आज यानी 3 मई को ईद उल फितर के जश्न तारीख तय किया गया है.भारत में पीएम मोदी समेत कई दिग्गजों ने लोगों को इस बड़े त्योहार की बधाइयां दी. ईद उल फितर के करीब ढाई महीने बाद यानी 70 दिन बाद मुस्लिम समुदाय में एक और बड़ा त्योहार आता है. इसे ईद उल अजहा ( Eid Ul Adha ) कहते हैं, जिसे आम भाषा में समुदाय के लोग बकरीद के नाम से पुकारते हैं. इन दोनों खास मौके बड़े त्योहारों के रूप में आते हैं और बड़े धूमधाम से सेलिब्रेट ( Eid celebrations ) किए जाते हैं.

ये दोनों त्योहार अलग-अलग होकर भी सामाजिक रूप से एक जैसे होते हैं. इनमें अल्लाह का शुक्रिया अदा किया जाता, लेकिन फर्ज दोनों में अलग-अलग अपनाए जाते हैं. दोनों त्योहारों के साथ कई रोचक बातें भी जुड़ी हुई हैं. इस लेख में हम आपको ईद उल फितर और ईद उल अजहा के बीच क्या अंतर है ये बताने की कोशिश करेंगे. जानें इन दोनों बड़े त्योहारों के बीच क्या है अंतर

कब मनाई जाती है ईद उल फितर

मीठी ईद के नाम से मशहूर ईद उल फितर को पहली बार 624 ई. पूर्व में सेलिब्रेट किया गया था. कहते हैं कि इस समय जंग-ए-बदर खत्म होने के बाद पैगंबर मोहम्मद ने ईद उल फितर का जश्न मनाया था. ईद की इस्लामिक कैंडर के हिसाब से तय की जाती है, जिसे इस्लाम में हिजरी सन भी कहा जाता है. हिजरी सन के मुताबिक चांद की चाल के आधार पर रमजान का महीना आता है. कैलेंडर के मुताबिक साल का 9वां महीना रमजान के लिए तय होता है, जिसमें 29 दिन तक रोजे रखे जाते हैं. इस दौरान चांद के दिख जाने पर ईद मनाई जाती है. अगर चांद नहीं दिखा तो 30वें दिन इसके जश्न का ऐलान किया जाता है.

क्यों कहते हैं मीठी ईद

एक महीने तक रोजा रखने के बाद इस त्योहार पर एक-दूसरे को मीठी चीजें खिलाने की परंपरा है और इसी कारण इसे मीठी ईद भी कहा जाता है. इस दौरान मीठी सेवइयां सबसे ज्यादा बनाई जाती है. मीठी सेवइयां के अलावा मिठाइयों का लेन-देन और खुरमा भी इस त्योहार की मिठास को और बढ़ा देता है. मीठी सेवइयां का स्वाद बहुत लाजवाब होता है.

ईद उल अजहा की कहानी

इस दिन को धर्म में ईद-ए-कुर्बानी के नाम से भी जाना जाता है. ज्यादातर लोग इस दिन बकरे की कुर्बानी देते हैं, लेकिन कुछ नियमों को इल्म में रखकर अन्य जानवरों की कुर्बानी देकर अपना फर्ज अदा करते हैं. कहते हैं कि इस त्योहार की शुरुआत हजरत इब्राहिम से हुई थी. इसके पीछे एक कहानी जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि अल्लाह ने इब्राहिम से खास चीज की कुर्बानी मांगी और उन्होंने बिना सोचे समझे अपने बेटे की कुर्बानी दे दी. कहते हैं कि इब्राहिम ने इस दौरान आंखों पर पट्टी बांध ली थी और जब कुर्बानी देकर ये पट्टी हटाई, तो उनका बेटा जिंदा था और एक जानवर की कुर्बानी चली गई. तब से इस त्योहार को कुर्बानी के लिए खास माना जाता है.

(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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