लीची का सीजन शुरू होने में कुछ ही वक्त बाकी है. इस बीच फल तैयार होने की प्रक्रिया में एक कीड़ा अटैक करता है. समय रहते अगर इसका समाधान नहीं किया तो किसान हाथ मलते रह जाएंगे. इस कीड़े का नाम फ्रूट बोरर (Fruit Borer) है. जो देखते ही देखते बाग के बाग तबाह करने की क्षमता रखता है. लीची से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले साल ही इस कीड़े ने 100 करोड़ रुपये से अधिक की लीची बर्बाद कर दी थी. जिससे लीची की खेती (Litchi Farming) करने वाले काफी किसानों की आजीविका पर असर पड़ा था. वैज्ञानिकों ने इस समय इसके खतरे को देखते हुए किसानों को इससे सावधान रहने की सलाह दी है, ताकि फसल नुकसान (Crop Loss) से बचा जा सके.
बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह ने इतने नुकसान की तस्दीक की है. बिहार के किसानों के लिए मौसम के साथ-साथ एक कीड़ा सबसे घातक साबित हो रहा है. इस समय बिहार में मशहूर शाही प्रजाति के लीची के फल में कहीं-कहीं लाल रंग विकसित हो रहा है. इस समय फल छेदक कीट (Fruit Borer) के आक्रमण का अंदेशा बढ़ जाता है. यदि बाग का ठीक से देखभाल नहीं किया गया तो भारी नुकसान होने की अंदेशा है. लीची में फूल आने से लेकर फल की तुड़ाई के मध्य मात्र 40 से 45 दिन का समय मिलता है. इसलिए लीची उत्पादक किसान को बहुत सोचने का समय नहीं मिलता है. तैयारी पहले से करके रखने की जरूरत है.
इन दवाओं का कर सकते हैं स्प्रे
एसके सिंह के मुताबिक लीची में फल बेधक कीट से बचने के लिए थायो क्लोप्रीड (Thiacloprid) एवं लमडा सिहलोथ्रिन (Lamda cyhalothrin) की आधा आधा मिलीलीटर दवा को प्रति लीटर पानी या नोवल्युरान @ 1.5 मीली दवा/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
जिन लीची के बागों में फल के फटने की समस्या ज्यादा हो वहां के किसान यदि 15 अप्रैल के आसपास बोरान @ 4 ग्राम / लीटर पानी में घोलकर छिडकाव कर दें. उन बागों में लीची के फल के फटने की समस्या में भारी कमी आएगी.
रोग एवं कीड़ों की उपस्थिति के अनुसार रसायनों का प्रयोग करें. गर्मी में हल्की सिंचाई करें. जिससे बाग की मिट्टी में नमी बनी रहे. लेकिन इस बात का ध्यान देना चाहिए कि पेड़ के आस-पास जलजमाव न हो. अनावश्यक कृषि रसायनों का छिड़काव न करें.
पिछले साल तोड़ भी नहीं पाए फल
बिहार के समस्तीपुर के रोसड़ा ब्लॉक के ठाहर गांव निवासी विनोद कुमार चौधरी बता रहे हैं कि पिछले साल तो लीची की बहुत अच्छी फसल थी, हमने व्यापारी के हाथ से सौदा भी किया 60 पेड़ के लिए. लगभग 25 हजार रुपये तय हो गया लेकिन बीच-बीच में बारिश हुई, उसके बाद कीड़े लगने लगे तो सबकुछ बर्बाद हो गया. फल छेदक कीड़े ने एक भी फल को सही नहीं रहने दिया. नतीजा यह रहा है कि पेड़ से एक भी लीची हमने नहीं तोड़ी. सब खुद ही गिर कर बर्बाद हो गई.
पूसा समस्तीपुर में अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रो. एसके सिंह ने कहा कि लीची की सफल खेती के लिए जरूरी है कि इसमें लगने वाले फल छेदक कीट को पेड़ पर आने से रोका जाय. खेती में इसकी दो अवस्थाएं बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैं, पहली जब फल लौंग के बराबर के हो जाते हैं. दूसरी अवस्था जब लीची के फल लाल रंग के होने लगें. इन दोनों अवस्थाओं पर फल बेधक कीट से बचाव के लिए दवा का छिड़काव जरूरी है.