देश के ज्यादातर हिस्सों में चिलचिलाती गर्मी (heatwave) के लगातार बने रहने और बिजली की भारी मांग की वजह से बिजली कंपनियों पर खासा दबाव बना हुआ है. कोयले की कमी (coal crisis) की वजह से बिजली संकट को देखते हुए राज्य बिजली वितरण कंपनियों ने कुछ राज्यों में पांच से आठ घंटे के बीच बिजली कटौती का सहारा लिया है. कुछ दिनों में पिछले साल इसी समय की तुलना में मैदानी इलाकों में बिजली की मांग (power demand) में 30% तक की वृद्धि दर्ज की गई है. अधिकारियों का कहना है कि थर्मल पावर प्लांट्स को पर्याप्त कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सरकार को खासा संघर्ष करना पड़ता है.
आने वाले सप्ताह में बिजली की मांग बढ़ने में और वृद्धि की संभावना है, भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने 2 मई तक भीषण गर्मी की लहर की भविष्यवाणी की है, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर सकता है. कल मंगलवार को ही देश के कई स्थानों पर अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया.
40% कम हो रहा बिजली का उत्पादन
थर्मल पावर प्लांट्स देश की 3,99,496 मेगावाट की बिजली उत्पादन क्षमता का 70% हिस्सा हैं और बिजली मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार कोयले की कमी के कारण ये 30-40% अपनी उत्पादन क्षमता से नीचे चल रहे हैं. बिजली मंत्रालय ने कोयले को बिजली संयंत्रों तक ले जाने के लिए रेक्स (कोयले के परिवहन के लिए बनाए गए ट्रेन के डिब्बों) की कमी को भी हाइलाइट किया है, क्योंकि उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में ट्रकों के माध्यम से कोयले ले जाया जाता है.
समाचार एजेंसी पीटीआई को रविवार को दिए एक साक्षात्कार में, कोयला सचिव एके जैन ने बिजली संयंत्रों में कोयले के कम स्टॉक के लिए कई कारकों के लिए जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी आने के कारण बिजली की मांग बढ़ना, इस साल जल्दी गर्मी शुरू हो जाना, गैस एवं आयातित कोयलों की कीमतों में वृद्धि होना और तटीय ताप विद्युत संयंत्रों के बिजली उत्पादन का तेजी से गिरना जैसे कारक इसके लिए जिम्मेदार रहे हैं.
बिजली की मांग और आपूर्ति का बेमेल होना बड़ी वजहः कोयला सचिव
एके जैन ने कहा, ‘यह कोयले का संकट न होकर बिजली की मांग और आपूर्ति का बेमेल होना है. देश में गैस-आधारित बिजली उत्पादन में भारी गिरावट आने से यह संकट और बढ़ गया है.’ उन्होंने कहा कि देश में कुल बिजली आपूर्ति बढ़ाने के लिए पहले से ही कई उपाय किए जा रहे हैं. जैन ने कहा, ‘भारत में कुछ ताप-विद्युत संयंत्र समुद्री तट के किनारे बनाए गए थे ताकि आयातित कोयले का इस्तेमाल कर सकें, लेकिन आयातित कोयले की कीमत बढ़ने से उन संयंत्रों ने कोयला आयात कम कर दिया है. ऐसी स्थिति में तटीय ताप-विद्युत संयंत्र अब अपनी क्षमता का लगभग आधा उत्पादन ही कर रहे हैं.’
कल मंगलवार को, पावर प्लांट्स में उपलब्ध कोयले की मात्रा मानक स्टॉक का 33% थी, जिसका अर्थ है कि उनके पास एक हफ्ते के लिए स्टॉक बचा हुआ है. मानक स्टॉक स्तर (normative stock level) 11 अप्रैल से पांच प्रतिशत अंक और शुक्रवार से तीन प्रतिशत गिर गया है. मानक कोयला स्टॉक 85% पावर लोड फैक्टर (पीएलएफ) या 26 दिनों के लिए क्षमता पर बिजली संयंत्र चलाने के लिए आवश्यक कोयले की मात्रा को संदर्भित करता है.
बंगाल और तमिलनाडु में सबसे कम स्टॉक
वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, बढ़ती गर्मी के बीच कुछ राज्यों में स्थिति बेहद खराब दिख रही है. उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में, उपलब्ध कोयला मानक स्टॉक का केवल 5%, तमिलनाडु में 7%, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 14%, उत्तर प्रदेश में 19%, गुजरात में 23%, कर्नाटक में 16% और आंध्र प्रदेश में 11% है. इन राज्यों के अधिकारियों के मुताबिक, उनके पास तीन से पांच दिनों से अधिक बिजली संयंत्र चलाने के लिए पर्याप्त कोयला नहीं है.
हालांकि, तत्काल कोयला संकट को टाला जा सकता है क्योंकि देश में बिजली का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता, नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन 55% मानक कोयले का स्टॉक बनाए हुए है और छत्तीसगढ़, झारखंड तथा ओडिशा जैसे कोयला खनन राज्यों को कोयले की कमी का सामना नहीं करना पड़ रहा है. छत्तीसगढ़ सरकार ने एक बयान में कहा कि उनके पास 13-14 दिनों के लिए कोयले का स्टॉक है और सभी कोयले से चलने वाले प्लांट 80% से अधिक पीएलएफ पर चल रहे हैं, जो कुछ अन्य राज्यों में 35-60% के पीएलएफ से बहुत अधिक है. ओडिशा भी 4,150 मेगावाट की अपनी दैनिक बिजली की मांग को पूरा करने में सक्षम है.
105 बिजली संयंत्रों में कोयले की आपूर्ति कम
बिजली मंत्रालय की दैनिक कोयला रिपोर्ट से पता चलता है कि देश के 165 बिजली संयंत्रों में से 105 में कोयले की आपूर्ति कम है, जो मानक स्टॉक के 25% से भी कम है. राजस्थान सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पर्याप्त कोयला उपलब्ध नहीं होने से थर्मल प्लांटों में बिजली उत्पादन में 25-30% की गिरावट आई है, खासकर राज्य सरकारों द्वारा संचालित प्लांट्स में. उदाहरण के लिए, राजस्थान में, 10,110 मेगावाट की क्षमता के मुकाबले, थर्मल पावर प्लांट केवल लगभग 6,000 मेगावाट बिजली पैदा कर रहे हैं. पंजाब में 5,680 मेगावाट ताप विद्युत की स्थापित क्षमता के मुकाबले केवल 3350 मेगावाट बिजली ही पैदा की जा रही है.
भले ही हाइड्रो जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से आपूर्ति में वृद्धि हुई है, लेकिन यह थर्मल पावर प्लांट्स द्वारा उत्पन्न बिजली में गिरावट को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है. केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने अपनी दैनिक रिपोर्ट में कहा कि समस्या यह है कि करीब 70,000 मेगावाट (कुल 2,36,108 मेगावाट की तापीय क्षमता में से) की क्षमता वाले संयंत्र रखरखाव या अन्य कारणों से बंद हैं.
देश में बिजली की मांग फरवरी में 179,098 मेगावाट से बढ़कर इस हफ्ते सोमवार को 191,834 मेगावाट तक पहुंच गई है, जो राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और मध्य प्रदेश जैसे गर्म राज्यों में स्पष्ट रुप से खपत दिखा रहा है. राजस्थान के ऊर्जा सचिव भास्कर ए सावंत ने कहा कि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में बिजली की मांग में 31% की वृद्धि हुई है. मध्य प्रदेश के एक अधिकारी ने कहा कि मांग में करीब 30 फीसदी का उछाल आया है.
यूपी पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) के अध्यक्ष एम देवराज ने कहा कि यह सच है कि थर्मल प्लांट नियमों के अनुसार कोयले के स्टॉक को बनाए रखने में सक्षम नहीं थे, लेकिन उन्होंने दावा किया कि इससे राज्य में सामान्य बिजली उत्पादन प्रभावित नहीं हो रहा है.