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CBSE Syllabus Cut: ‘अगर सीबीएसई सिलेबस से जरूरी चैप्टर यूं ही हटाता रहा, तो उन्हें सोशल साइंस विषय को ही पूरी तरह से हटा देना चाहिए’

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तनवीर ऐजाज़

CBSE class 9 to 12 syllabus 2022-23: सीबीएसई ने हाल ही में कक्षा 9-12 के लिए अपने संशोधित पाठ्यक्रम (CBSE new syllabus) की घोषणा की, जिसमें उन्होंने 11वीं कक्षा के इतिहास और राजनीति विज्ञान के सिलेबस से कुछ जरूरी चैप्टर हटा दिए हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब बोर्ड ने बिना किसी पूर्व चर्चा के इन दोनों विषयों में से चैप्टर हटा दिए हो. 2020 में, उन्होंने संघवाद, राष्ट्रवाद, नागरिकता और धर्मनिरपेक्षता पर आधारित अध्यायों में से कुछ हिस्सों को अलग कर दिया था, जिसे 2021 में फिर से जोड़ दिया गया था. इस बार बोर्ड ने लोकतंत्र और विविधता से जुड़े कुछ अंश हटाए हैं.

बोर्ड द्वारा गुटनिरपेक्ष आंदोलन और शीत युद्ध (Cold War) के दौर के अध्यायों में से कई टॉपिक को हटाने का मतलब है कि शिक्षकों के पास पढ़ाने के लिए व्यावहारिक रूप से कुछ भी नहीं बचा है. यदि विषय के कुछ मुख्य भागों को हटा दिया जाता है तो विषय की प्रासंगिकता की जांच की जानी चाहिए और इस कदम को चुनौती देकर सवाल किया जाना चाहिए. दरअसल यह एक तरह से विषय को कमजोर करना है.

दूसरा, सिलेबस से चैप्टर को हटाने का आधार क्या है? इस बारे में किससे परामर्श किया गया था? जब किसी पाठ्य पुस्तक से एक भी सेक्शन को हटाया जाता है, तो इसके लिए भी एक पूरी प्रक्रिया होनी चाहिए. एक ऐसा सिस्टम जो चर्चा और बहस की इजाजत देता है कि किसी खास टॉपिक को क्यों हटाया जा रहा है? उसे हटाने का कारण अकादमिक होना चाहिए. न कि किसी बोर्ड या नियामक प्राधिकरण की इच्छा के मुताबिक.

गुटनिरपेक्ष आंदोलन जैसे टॉपिक हटाने नहीं, नए कॉन्सेप्ट व नॉलेज जोड़ने की जरूरत

समय की मांग है कि कुछ समकालीन विकासों की नई अवधारणाओं को खास तौर से इतिहास (History) और राजनीति विज्ञान (Political Science) में जोड़ा जाए. बजाय इसके हम पाठ्यक्रम के उन हिस्सों को हटा रहे हैं जिन्हें उस विषय के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. यदि किसी अकादमिक आधार के बिना टॉपिक्स को हटाया जाता है या छोटा किया जाता है तो यह एक बड़ी समस्या है. इसके लिए एक पूरी प्रक्रिया होनी चाहिए. आप एक दिन अचानक उठकर यह नहीं कह सकते: चलो इसे हटा दें.

कौन सी समिति बैठक का हिस्सा थी? बैठक के समय ये सभी पब्लिक डोमेन का हिस्सा होना चाहिए. आखिरकार आप ऐसी चीजें कर रहे हैं जो सभी लोगों से संबंधित हैं, तो हमें ऐसी जानकारी से दूर क्यों रखा जाए?

पॉलिटिकल साइंस (राजनीति विज्ञान) में कोई भी इस विषय को अलग-अलग राजनीतिक दृष्टि से पढ़ता है. चाहे वह कक्षा 10, 11 या 12 में हो या फिर कॉलेज में. अगर जवाहरलाल नेहरू ने उस गुटनिरपेक्ष आंदोलन को शुरू किया था जो इतने लंबे समय तक सिलेबस का हिस्सा बना रहा और अब भी है, तो मुझे समझ नहीं आता कि इसके कुछ हिस्सों को क्यों हटा देना चाहिए. जब तक कि उस टॉपिक को हटाया नहीं गया है. क्योंकि कुछ राजनीतिक विचारधारा पंडित नेहरू के पक्ष में नहीं है. मैं उनसे कहूंगा कि आप अपनी राजनीतिक लड़ाई जमीन पर लड़ें और पाठ्य पुस्तकों को अपने राजनीतिक खेल का हिस्सा न बनाएं.

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की अवधारणा इस बारे में है कि यह महत्वपूर्ण है, प्रासंगिक है या नहीं, और आज हम इसे कैसे आगे बढ़ाते हैं. स्टूडेंट्स को पता होना चाहिए कि हुआ क्या था. आजादी के बाद से हमारी विदेश नीति क्या रही है. इस पर आधारित एक चैप्टर को हटा देने का मतलब है स्टूडेंट्स को यह जानने का अधिकार नहीं देना कि अतीत में क्या हुआ था. एक स्टूडेंट को आंदोलन की पूरी जानकारी के बिना विदेश नीति के बारे में कैसे पता चलेगा? यह कोशिका और उसकी संरचना की अवधारणा को समझे बिना डीएनए को समझने की कोशिश करने जैसा होगा.

सिलेबस घटाने-बढ़ाने में सरकारी हस्तक्षेप गलत

सिलेबस बनाने या उसमें से कुछ हटाने में सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए.
सरकार को स्कूलों या कॉलेजों का सिलेबस तय करने में दखल नहीं देना चाहिए. इसे उन लोगों पर छोड़ देना चाहिए जो उस क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं. दुनिया भर में उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों द्वारा सिलेबस डिजाइन किया जाता है न कि नियामक प्राधिकरण द्वारा. लेकिन भारत में, हमने देखा है कि कैसे यूजीसी (UGC) एक नियामक संस्था होने के बावजूद विश्वविद्यालय स्तर पर हर तरह के पाठ्यक्रम में बदलाव करने में शामिल रहा है. पाठ्यक्रम में कोई भी बदलाव विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों द्वारा खुद किया जाना चाहिए, किसी और द्वारा नहीं. इससे नौकरशाहों और राजनेताओं को दूर रहना चाहिए.

जब इस तरह के टॉपिक को सब्जेक्ट से हटा दिया जाता है तो इसका एक बुरा प्रभाव होना तय है. वजह साफ है. एक बार जब विषय का खास हिस्सा ही छोटा कर दिया जाता है तो स्टूडेंट की उस विषय के प्रति रुचि कम हो जाएगी. ऐसे में वे इस विषय को उच्च शिक्षा में बिल्कुल भी नहीं लेंगे. और शायद एक समय के बाद राजनीति विज्ञान एक विषय के रूप में अपना वजूद खो दे.

आज यह दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) में लिए जाने वाले सबसे अधिक विषयों में से एक और टॉपर्स की पहली पसंद है. लेकिन कुछ साल बाद ऐसा नहीं रह जाएगा. क्यों? क्योंकि हमने एक स्टूडेंट में उसके स्कूल के दिनों के दौरान इस विषय के प्रति रुचि पैदा करने के लिए कुछ नहीं किया (कक्षा 10,11,12 के सिलेबस से हटते चैप्टर इसकी वजह). यदि हम स्कूल स्तर पर विषयों को काटते हैं तो इसका प्रभाव विश्वविद्यालय की शिक्षा पर भी पड़ना तय है.

जबकि हमें अपने युवाओं में बहस और बातचीत की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए लेकिन आज जो हो रहा है वह एजुकेशन के हर उस एलिमेंट को कम कर रहा है जिस पर चर्चा करने की कुछ गुंजाइश है. इसे एक ऐसे मॉडल के साथ बदल दिया गया है, जो एक विशेष विचारधारा के अनुकूल है. स्कूल स्तर पर इतिहास और राजनीति विज्ञान के विषयों पर समझौता कर हम इनके उद्देश्य को ही खत्म कर रहे हैं. अध्यायों से अंश हटाने की इस संस्कृति को रोकने की जरूरत है.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर हैं. उन्होंने शालिनी सक्सेना से बात की)

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