हिंदू (Hindu) धर्म में अक्षय तृतीया का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व है. सुख-समृद्धि और सौभाग्य की कामना के लिए लोग इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी की विधि-विधान से साधना करते हैं. यह पावन तिथि न सिर्फ लक्ष्मी साधना के लिए बल्कि भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के अवतार भगवान परशुराम, नर-नारायण और हयग्रीव के अवतरण के लिए भी जानी जाती है. मान्यता है कि परम पिता ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी अक्षय तृतीया के दिन भी हुआ था. पूजा का अक्षय फल दिलाने वाली इस तिथि का जुड़ाव देश के कई पवित्र तीर्थ स्थानों (Pilgrimages) से भी है. देश के विभिन्न तीर्थ स्थानों में अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) को किस रूप में मनाया जाता है, आइए इसे विस्तार से जानते हैं.
अक्षय तृतीया पर खुलते हैं बद्रीनाथ के कपाट
अक्षय तृतीया तिथि का जुड़ाव चार धाम की यात्रा से भी है, क्योंकि इसी दिन उत्तराखंड में स्थित उस बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलते हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि – ‘जो जाए बद्री, वो न आए ओदरी’ यानि जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और उसे माता के गर्भ में दोबारा नहीं आना पड़ता. धरती का बैकुंठ माने जाने वाले बद्रीनाथ तीर्थ को भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि माना जाता है. प्रत्येक वर्ष इस पावन धाम के कपाट दीपावली के बाद छह महीनों के लिए बंद हो जाते हैं, जिसे दोबारा अक्षय पुण्य प्रदान करने वाली पावन तिथि अक्षय तृतीया के दिन खोला जाता है.
अक्षय तृतीया पर होती है भगवान जगन्नाथ के रथ निर्माण की शुरुआत
प्रत्येक वर्ष पावन अक्षय तृतीया के दिन ही जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों की 21 दिवसीय चंदन यात्रा शुरु होती है. अक्षय तृतीया के दिन ही रथों के निर्माण का आरंभ किया जाता है. गौरतलब है कि पुरी स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री जगन्नाथ को समर्पित है. परंपरा के अनुसार इस दिन भगवान जगन्नाथ जी के रथ में प्रयोग लाई जाने वाली लकड़ी को टक लगाया जाता है. टक लगाने के बाद भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा की विधिवत तैयारियां शुरू हो जाती है. रथ का निर्माण करने से पूर्व विधि-विधान से पूजा की जाती है. इसका आयोजन जगन्नाथ मंदिर के बाहर ‘रथ कला’ में होता है, जबकि चंदन यात्रा पुरी के एक सरोवर में आयोजित की जाती है.
अक्षय तृतीया पर होते हैं बांके बिहारी के चरण दर्शन
भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के मंदिर से भी अक्षय तृतीया का जुड़ाव है. उत्तर प्रदेश के वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर जो लाखों-करोड़ों लोगों की आस्था का पावन धाम माना जाता है, उसमें साल में सिर्फ एक बार अक्षय तृतीया के दिन ही बांके बिहारी के चरण दर्शन होते हैं. बाकी पूरे साल बांके बिहारी के चरण कमलों को ढककर रखा जाता है. मान्यता के अनुसार मंदिर में बांके बिहारी की मूर्ति राधा-कृष्ण का सम्मिलित रूप है. अक्षय तृतीया के दिन बांके बिहारी के चरणों में विशेष रूप से चंदन का लेप लगाकर सोने की पाजेब पहनाई जाती है. यही कारण है कि अक्षय तृतीया वाले दिन बांके बिहारी के दिव्य दर्शन के लिए बड़ी संख्या में भक्त वृंदावन पहुंचते हैं.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)