सीमेंट का कट्टा 30 रुपए से लेकर 50 रुपए तक महंगा हो गया. लागत बढ़ने से कंपनियों ने सीमेंट के दाम (Cement Price) 12 फीसदी तक बढ़ा दिए. सीमेंट की महंगाई के बाद घर खरीदना या उसकी मरमम्त और महंगी हो जाएगी. सिर्फ घर ही क्यों सड़क, पुल, पुलिया, स्कूल समेत तमाम प्रोजेक्ट्स की कंस्ट्रक्शन लागत (Construction Cost) में भी इजाफा होगा. यानी आने वाले दिनों में किसी सरकारी प्रोजेक्ट की रफ्तार धीमी पड़ती दिखे या गांव से सटे किसी सरकारी प्रोजेक्ट में देहाड़ी मजदूरों की मांग घटे तो चौकिंएगा नहीं.. सीमेंट की बढ़ी कीमतों का असर आम आदमी से लेकर सरकार के बजट तक हर जगह है.
किसी बिल्डिंग के निर्माण में स्टील के बाद सबसे ज्यादा लागत सीमेंट की होती है. कंस्ट्रक्शन लागत में स्टील का योगदान लगभग 25 फीसदी रहता है, जबकि सीमेंट का 16-17 फीसद के करीब…स्टील महंगा होने से पहले ही कंस्ट्रक्शन लागत बढ़ी हुई है और अब सीमेंट की बढ़ी हुई कीमतें इस लागत को और बढ़ा रही है.
अब समझिए सीमेंट की कीमतें बढ़ीं क्यों?
कंपनियां बढ़ी हुई लागत का हवाला देकर कीमतें बढ़ा रही हैं. आयातित कोयले के दाम आसमान पर हैं. जिस वजह से सीमेंट उत्पादन पर खर्च बढ़ गया है. ऊपर से पेट्रोल डीजल के महंगा होने से परिवहन की लागत भी बढ़ी है. सीमेंट कंपनियों का मानना है कि उनकी उत्पादन लागत में 60-70 रुपए प्रति बैग बढ़ोतरी हुई है. जबकि कीमतों इतनी नहीं बढ़ी…. यानी सीमेंट की कीमतों में इजाफे की एक लहर और आ सकती है.
खपत बढ़ने का लगाया जा रहा अनुमान
सीमेंट की कीमतें ऐसे समय बढ़ी हैं. जब अर्थव्यवस्था कोरोना की मार से उबर रही है और देश में खपत बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है. रेटिंग एजेंसी इक्रा का मानना है कि वित्तवर्ष 2022-23 के दौरान देश में सीमेंट की खपत 7-8 फीसद बढ़कर 38.2 करोड़ टन तक पहुंच सकती है. पिछले वित्तवर्ष में खपत 35.5 करोड़ टन रहने का अनुमान है. बढ़ती मांग में कीमतें बढ़ने का फायदा सीमेंट कंपनियों की बैलेंसशीट में दिखेगा.. हां सीमेंट का इस्तेमाल करने वाले लोगों को महंगाई की एक लड़ाई यहां भी लड़नी होगी.
पिछले वित्त वर्ष के पहले 6 महीने में मांग में तेजी देखने को मिली थी, हालांकि बाद में मांग सुस्त हो गई. हालांकि उस वक्त बेमौसम बरसात और श्रमिकों की कमी से मांग पर असर पड़ा है. फिलहाल सेक्टर को छोटे शहरों में बन रहे किफायती घरों की योजनाओं से मदद की उम्मीद है और अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में मांग 5-7 प्रतिशत के बीच रह सकती है, हालांकि ऊंची लागत की वजह से आशंका है कि मांग में एक सीमा से ज्यादा बढ़त नहीं होगी. वहीं कीमतें और बढ़ीं तो दबाव संभव है.