आजादी का अमृत महोत्सव के मौके पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- भारतीय प्राकृतिक राल और गोंद संस्थान और कृषि विज्ञान केंद्र ने कृषि और किसानों को बढ़ावा देने के लिए एक अभियान चलाया. इस मौके पर संस्थान के अधिकारियों, कर्मचारियों और किसानों के लिए व्याख्यान सह कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस दौरान फल और सब्जियों (Vegetables) को पोषक तत्वों में आ रही गिरावट को लेकर चर्चा की गयी. इसके अलावा अमृत कृषि करने के लिए किसानों को जागरुक किया गया. किसानों को अमृत कृषि के बारे में बताया गया और इसके करने के फायदे के बारे में बताया गया साथ ही कहा कि किस प्रकार अमृत कृषि के जरिए फसल और सब्जियों में पोषण की मात्रा को वापस हासिल किया जा सकता है.
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के बिजनेस एंड प्लानिंग डेवलपमेंट विभाग के सीइओ सिद्धार्थ जायसवाल ने कहा कि हमारे देश में खेती का लंबा इतिहास रहा है. पर पिछले कुछ दशकों में हमारे देश में उत्पादित सब्जियों में पोषक तत्वो की मात्रा में भारी गिरावट आई है. 1914 में 64 मिलीग्राम से, 1992 के आंकड़ों के अनुसार यह घटकर केवल 2.5 मिलीग्राम रह गया है. जबकि हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थों की मात्रा बढ़ गई है.
अमृत जल है कारगर तरीका
उन्होंने अमृत की खेती को व्यापक रूप से अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि छोटे कीड़े और बैक्टीरिया हमारी फसलों और उत्पादों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्व जीवाणुओं द्वारा पौधों तक पहुंचाए जाते हैं, इसलिए इनकी संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है, जिसका सबसे अच्छा और सस्ता तरीका अमृत जल (गोबर, गोमूत्र, गुड़ और पानी का मिश्रण) है.
किसान अधिकार अधिनियम की दी गई जानकारी
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दूसरे स्पीकर फूल सिंह मालवीय, डिप्टी रजिस्ट्रार, पीपीवी-एफआर, रांची ने किसानों को भारतीय पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 और इसके महत्व से अवगत कराया. उन्होंने अपने स्तर पर स्थानीय, जंगली और देशी किस्मों की फसलों के बीजों के संरक्षण के बारे में किसानों को बताया और इस विषय पर किसानों को दिए जाने वाले विभिन्न पुरस्कारों के बारे में बताया और विभिन्न योजनाओं से भी अवगत कराया.
प्राकृतिक खेती की चुनौतियों का हुआ जिक्र
इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं संस्थान के निदेशक डॉ. केके शर्मा ने कहा कि संस्थान में जैविक खेती के संबंध में कार्य किया जा रहा है और उन्होंने इससे होने वाली कठिनाइयों एवं चुनौतियों से भी अवगत कराया. डॉ. शर्मा ने कहा कि कई बार समाधान बड़ी समस्याओं का कारण बन जाता है, जिससे बचने के लिए हमें धीरे-धीरे बदलाव को अपनाना जरूरी है और यह भी विचार करना चाहिए कि क्या हम अपनी बढ़ती आबादी को प्राकृतिक खेती से भर सकते हैं.