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विश्‍व परिवार दिवस: संयुक्त परिवार की अनूठी मिशाल हैं ये परिवार, हर खुशी होती है दोगुनी

by City Headline

परिवार…! जिस आंगन में खुशियां इठलाती हों, पीढ़ी के अंतर को स्वजन का सामंजस्य झुठलाता हो, गम भी यहां आकर राह भटक जाता है। हर हालात में जीने का सहारा परिवार ही होता है। यह जीवन की आधारशिला है। यह हर उम्र के लोगों के लिए दुनिया का सबसे महफूज ठिकाना भी है। बच्चे हों या बुजुर्ग, परिवार रूपी घरौंदे में ही जरूरी संबल पाते हैं।

संयुक्त परिवारों में प्रेम रूपी प्रतिरोधक क्षमता सबसे बड़ी होती है। इससे ही कोरोना जैसे अवश्य दुश्मन को भी मात दी गई। भारत में लगभग ऐसे परिवार तलाशना अब भी मुश्किल नहीं, जहां हर स्दस्य एक दूसरे के प्रति प्रेम और संवेदनाओं से ओतप्रोत हो। रिश्तों का ताना-बाना ही तो है, जो स्नेह और संबल के धागों से गुंथा हुआ है। ये समय के साथ रिश्तों में आई दरार को भरने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे परिवार में हर दिन खास होता है, लेकिन विश्व परिवार दिवस पर खुशियां कई गुना बढ़ जाती हैं।

ये रिश्तों का गुलस्ता है चार पीढिय़ां, पर छत एक ही है। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ की प्रमुख विष्णुपुरी कालोनी में सुभाष चंद्र अग्रवाल स्वदेशी के परिवार की यही पहचान है, जो पूरे क्षेत्र में मिसाल है। 20 लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। परिवार के सदस्य भी एक दूसरे के साथ मिल कर कार्य करने में रुचि रखते हैं। एक दूसरे का ध्यान रखने की होड़ लोगों को प्रेरित करती है। साझी रसोई, प्यार और सहकार के भाव के साथ पके भोजन में रिश्तों की खुशबू मन मोह लेती है। इस परिवार की एक पहचान खादी से है।

अलग रहने की सोचने वालों के लिए गभाना के गांव बीधानागर के राजवीर सिंह का परिवार एक अनूठी मिसाल है। एक छत के नीचे तीन पीढिय़ां हैं। दुख-सुख में इस परिवार के 15 सदस्य एक रहते हैं। इससे बड़ी से बड़ी समस्या का निदान होने में देरी नहीं होती है। पाश्चात्य सभ्यता के दुष्प्रभाव से संयुक्त परिवार पर एकल परिवार प्रणाली को सुरेश चंद्र वाष्र्णेय ने हावी नहीं होने दिया है।

सिकंदराराऊ (हाथरस) के मूल निवासी सुरेश चंद्र के बेटे उमेश और राजेश 1983 में एएमयू में पढऩे आए थे। 1990 में सरकोड़ा का व्यापार शुरू किया। चार साल बाद छोटे बेटे मुकेश माता-पिता को साथ ले आए। फिर यहीं के होकर रह गए। सासनीगेट क्षेत्र के राम विहार में इस परिवार की तीन पीढिय़ां साथ रह रही हैं। परिवार में कुल 20 सदस्य हैं। राजेश वाष्र्णेय कहते हैं, बजुर्गों के साथ रहने से बच्चों की संस्कार आते हैं, अनुशासन में रहना सीखते हैं। व्यापार के सिलसिले में टूर पर बाहर जाता हूं, पत्नी-बच्चों की चिंता नहीं रहती है।

गांव महगौरा में आप जब भी आएंगे और यहां के माहौल की बात करेंगे तो जोधराज शर्मा के परिवार की चर्चा जरूर होगी। वजह, संयुक्त परिवार इसी के लिए जोधराज सभी को प्रेरित करते हैं। एक ही घर में चार पीढिय़ों के 14 सदस्य रह रहे हैं। सभी एक- दूसरे के साथ मिल कर कार्य करने में रुचि रखते हैं। 85 वर्षीय जोधराज शर्मा किसान हैं। इनके दो बेटे हैं। इनका कहना है कि संयुक्त परिवार में दिक्कतें अधिक नही होतीं है। एक दूसरे की मदद से सभी काम हो जाते हैं। रसोई का खर्च भी कम रहता है। यदि अलग-अलग रहें तो यह खर्च अधिक रहेगा। जोधराज शर्मा बताते हैं कि संयुक्त परिवार में हर रोज किसी त्योहार जैसा नजारा होता है।

 

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