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विश्व अस्थमा दिवस 2022: प्रदूषण के कारण बच्चों में होती है यह बीमारी, पिछले चार महीनों से बढ़ रहे हैं केस: एक्सपर्ट

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ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट 2018 (Global Asthma Report) के मुताबिक भारत में लगभग छह प्रतिशत बच्चों और दो प्रतिशत वयस्कों को अस्थमा (Asthma) की बीमारी है. भारत में सांस की लंबी समस्या से लगभग 9.3 करोड़ लोग जूझ रहे हैं. इनमें से लगभग 3.7 करोड़ अस्थमा के रोगी हैं. इसका मतलब है कि दुनियाभर में जितने अस्थमा के रोगी हैं उनका 11.1 प्रतिशत भारत में हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के अनुसार, अस्थमा से होने वाली 80 प्रतिशत से अधिक मौतें निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में होती हैं. विश्व अस्थमा दिवस 2022 (World Asthma Day) की थीम है क्लोजिंग गैप इन अस्थमा केयर. इस मौके पर गाजियाबाद के मणिपाल अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमित कुमार गुप्ता ने TV9 से इस बीमारी से जुड़े मिथकों और क्या चीजें इस बीमारी की वजह बनतीं हैं इस बारे में बात की.

डॉ गुप्ता ने कहा, “अस्थमा पर्यावरण पर निर्भर करता है. ऐसी जगहों पर जहां धूल और प्रदूषण कम है. वहां इसके मामले कम हैं. लेकिन दिल्ली जैसी जगहों पर जहां धूल और आग से होने वाला प्रदूषण ज्यादा है. वहां बच्चों में अस्थमा के मामलों की संख्या भी अधिक है. इसके अलावा गर्मियों में भी इसके मामले बढ़ते हैं. पिछले तीन-चार सालों में कोविड से पहले अस्थमा के मामले ज्यादा थे. महामारी के दौरान इसके कम केस देखे गए. लेकिन पिछले तीन-चार महीनों में अस्थमा के मामले फिर से बढ़े हैं और बच्चों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत भी पड़ी है. अगर हम पूरे भारत की बात करें तो प्रति हजार बच्चों में से एक या दो इससे पीड़ित हैं.”

अस्थमा को लेकर कई मिथक भी हैं

डॉ. ने कहा कि अस्थमा और COVID के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है. “लेकिन अस्थमा के लिए वायरल फीवर एक कॉमन ट्रिगर है. स्कूल खुल गए हैं. अस्थमा के लिए वायरल इन्फेक्शन एक ट्रिगर फैक्टर है. अस्थमा फेफड़े से जुड़ी एक बीमारी है जिसमें सांस लेने में कठिनाई होती है क्योंकि सांस लेने की नली में सूजन आ जाती है जिससे वो संकीर्ण हो जाती है. जब कोई व्यक्ति धूल, प्रदूषण, अत्यधिक ठंड, और मौसम में अत्यधिक परिवर्तन के संपर्क में आता है या उसे ऊपरी श्वसन तंत्र संबंधी समस्याएं हैं तो यह सब अस्थमा को ट्रिगर कर सकता है.”

डॉ. गुप्ता ने कहा, “यह सच नहीं है कि जिन बच्चों को अस्थमा है वह फिजिकल एक्टिविटी नहीं कर सकते. वे खेल सकते है और एरोबिक्स भी कर सकते हैं. केवल उन्हें ऐसे खेल खेलने से बचना होगा जिनमें बहुत ज्यादा भागदौड़ होती है जिसकी वजह से उनकी सांस फूल सकती है.

दो से तीन साल की उम्र में दिखने लगते हैं लक्षण

डॉ. गुप्ता ने कहा कि छोटे बच्चों में तनाव नहीं होता है इसलिए उनमें कोई ट्रिगर नहीं होता है, लेकिन जब बच्चा 8-10 साल का होता है तो तनाव भी एक ट्रिगर हो सकता है. उन्होंने कहा, “अस्थमा के लक्षण दो-तीन साल की उम्र से बच्चों में दिखने शुरू हो जाते हैं और पांच से छह साल की उम्र तक यह बीमारी सामने आ जाती है. तनाव केवल आठ साल से ऊपर के बच्चों के लिए एक ट्रिगर है.”

उन्होंने कहा कि अस्थमा उन बच्चों में आम है जिनके परिवार में इस बीमारी का इतिहास रहा है या जिनके माता-पिता को किसी तरह की एलर्जी है. “अस्थमा ऐसी बीमारी नहीं है जो अचानक सामने आ जाती है. यह एक क्रमिक प्रक्रिया है जो बार-बार श्वसन प्रणाली की समस्या से शुरू होती है. हम यह नहीं कह सकते कि किसी व्यक्ति को अस्थमा है जब तक कि उसे सांस लेने की समस्या शुरू हुए छह महीने न बीत चुके हों.

नेब्युलाइजर से दें बच्चे को दवा

डॉ गुप्ता ने अंत में कहा कि छोटे बच्चों को पफ देना मुश्किल होता है इसलिए उन्हें दवा नेब्युलाइजर के जरिए दी जाती है. गुप्ता ने कहा, “छोटे बच्चों के लिए पफ हैंडल करना मुश्किल होता है. हो सकता है कि वह पफ से दवा ठीक से न ले पाएं इसलिए हम नेब्युलाइजर की सलाह देते हैं. लेकिन जब वे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें नेबुलाइजर अपने साथ रखना मुश्किल होता है वहीं पफ को संभालना आसान होता है.

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