2011 की जनगणना के अनुसार 1484 वर्ग किलोमीटर में फैली दिल्ली की कुल आबादी 1.1 करोड़ थी। इसमें लगभग 18 वर्ग किलोमीटर का एरिया पानी से भरा क्षेत्र माना जाता है। इसका सबसे बड़ा हिस्सा यमुना नदी से आता है जबकि शेष जलाशयों और बावड़ियों के रूप में है। अब दिल्ली की आबादी लगभग 2.5 करोड़ के लगभग मानी जाती है। यानी इन वर्षों में दिल्ली की आबादी में लगभग दोगुने से ज्यादा की वृद्धि हुई है और इसी के साथ जल की मांग में वृद्धि हुई है, लेकिन जल स्रोत के क्षेत्र में लगातार कमी आई है। कई जलाशयों पर अवैध कब्जा कर उन्हें समाप्त कर दिया गया है, तो कई सूख चुके हैं। यानी दिल्ली का जल संकट सुलझने की बजाय उलझ गया है। इस कारण दिल्ली में पीने के पानी की समस्या लगातार बढ़ी है, लेकिन उसे सुलझाने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किया गया है।
पानी की कमी का बड़ा कारण
दिल्ली में पानी की कमी का मामला सर्वोच्च न्यायालय की दहलीज तक पहुंच गया है। दिल्ली सरकार ने हरियाणा से यमुना में ज्यादा पानी छोड़ने की मांग की है। भाजपा ने कहा है कि हरियाणा पूरा पानी छोड़ रहा था, जबकि दिल्ली सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रही है, जिसके कारण राजधानी में जल संकट का सामना करना पड़ रहा है।
हालांकि, शहरी मामलों के विशेषज्ञों का दावा है कि दिल्ली में पीने के पानी की कमी का सबसे बड़ा कारण वर्षा जल का सही तरीके से संचयन न किया जाना है। यदि जल का प्रबंधन सही तरीके से किया जाए, तो दिल्ली में पीने के पानी की समस्या का हल निकाला जा सकता है। इसके लिए यमुना के पानी का सही तरीके से दोहन और वर्षा जल के संग्रहण के लिए नए केंद्र स्थापित करने चाहिए। लेकिन आजादी के बाद से ही इस दिशा में कोई ठोस उपाय नहीं किया गया, जिसका परिणाम आज भुगतना पड़ रहा है।