हमारे देश में कई दशकों से औषधीय पौधों की खेती (Medicinal Plant Farming) होती रही है. किसान इससे अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं, क्योंकि इनका इस्तेमाल कई तरह की दवा बनाने में होता है और मांग हमेशा बनी रहती है. इसी तरह की एक फसल है मेंथा, जिसकी खेती कर किसान मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. मेंथा की खेती (Mentha Farming) वैसे तो पूरे देश में की जाती है, लेकिन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और पंजाब के किसान मेंथा की खेती करते हैं. पूरी दुनिया में मेंथा से निकले मेंथा तेल की खपत लगभग 9500 मीट्रिक टन है. भारत इसके उत्पादन में दुनिया में नंबर वन है.
केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान मेंथा की खेती पर लगातार शोध कर रहा है. मेंथा की अच्छी उपज के लिए बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है. साथ ही जल निकासी की सुविधा अच्छी हो और मिट्टी का भुरभुरा होना भी जरूरी है. मेंथा की वृद्धि के लिए बारिश को अच्छा माना जाता है. मेंथा की रोपाई से पहले खेत की गहरी जुताई करनी होती है. अंतिम जुताई के समय खेत में 300 किलो गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालने से उपज अच्छी होती है.
एक हेक्टेयर में 3 लाख रुपए तक होगी कमाई
मेंथा के तेल का उपयोग दवाइयां और सौंदर्य प्रसाधनों के साथ ही सुगंध के लिए भी किया जाता है. एक हेक्टेयर में लगाई गई मेंथा की फसल से 150 किलो ग्राम तेल निकलता है. समय से रोपाई, सिंचाई और उर्वरकों के इस्तेमाल से मेंथा की खेती की जाए तो तेल का उत्पादन 250 से 300 किलो तक पहुंच सकता है. मेंथा का तेल 1000 रुपए प्रति लीटर से अधिक दाम पर बिकता है. इस तरह देखें तो अच्छा उत्पादन होने पर किसान एक हेक्टेयर से 3 लाख रुपए तक की कमाई कर सकते हैं. एक सीजन में किसी भी अन्य फसल से होने वाली कमाई से यह कई गुना अधिक है.
मेंथा से तेल निकालने से पहले कटाई के बाद संयंत्र में लेकर जाते हैं. फिर कटी हुई मेंथा को कुछ समय के लिए फैला देते हैं. इससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और वजन कुछ कम हो जाता है. इसके बाद इसे डिस्टिलेशन संयंत्र में भरकर गर्म किया जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान मेंथा से तेल निकल आता है. बचे हुए अवशेष का इस्तेमाल खाद के रूप में किया जाता है.
किसानों को सलाह दी जाती है कि वे कटाई से 15 दिन पहले ही सिंचाई बंद कर दें. समय-समय पर खेत की निगरानी की सलाह दी जाती है ताकि कीट और रोग का नियंत्रण किया सके. मेंथा की फसल 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है. इससे किसान कम समय में ही अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं.