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मध्य प्रदेश सरकार को स्थानीय निकाय चुनावों में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा, कहा- पिछले दो साल से खाली पड़े हैं पद, हैरतअंगेज है स्थिति

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सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार (Madhya Pradesh Government) को स्थानीय निकाय चुनावों (Local Body Elections)में देरी पर फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि पूरे मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी हमारी है, 23000 स्थानीय निकाय पद पिछले दो साल से खाली पड़े हैं, यह हैरतअंगेज स्थिति है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट (Supreem Court)ने डेटा समिति को लेकर इन पहलूओं पर भी जानकारी मांगी है. जिसमें समिति की संरचना, क्या समिति ने सभी हितधारकों से आपत्तियां आमंत्रित कीं, क्या समिति में कोई शिकायत निवारण तंत्र है? अदालत ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए कल पोस्ट किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर इस चुनाव में ओबीसी आरक्षण नहीं दिया गया, तो स्वर्ग जमीन पर नहीं गिर जाएगा.

प्रदेश में लाखों लोगों की नजर पंचायत चुनाव पर टिकी हुई है. जानकारी के अनुसार, परिसीमन के बाद मतदाताओं की सूची का प्रकाशन जल्द किया जाएगा. साथ ही आरक्षण का ऐलान भी किया जाएगा. उसके बाद तारीखों के ऐलान की औपचारिकता भर रह जाएगी. तारीखों के बारे में पुख्ता तौर पर बता पाना तो अभी संभव नहीं है, लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले तीन चार महीनों के भीतर चुनाव कराए जा सकते हैं.

पंचायतों में आरक्षण का काम बाकी है

मध्य प्रदेश में परिसीमन के बाद पंचायतों की संख्या लगभग 23 हजार हो गई है. पंचायतों के लिए मतदाता सूची 25 अप्रैल तक तैयार होनी थी. इसके बाद पंचायतों में आरक्षण पर भी फैसला लिया जाना था, लेकिन प्रशासन में बैठे अधिकारी और कर्मचारियों के सुस्त तरीके से काम करने के कारण अभी भी काम बाकी है. जबकि मार्च में आरक्षण और परिसीमन के मुद्दे पर ही चुनावों को निरस्त कर दिया गया था.

ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश में 2014 के बाद पंचायत चुनाव का आयोजन नहीं किया गया है. कमलनाथ सरकार के आने के बाद पंचायत चुनाव को लेकर तैयारियां शुरू की गई थी. हालांकि, बाद में सत्ता परिवर्तन होने की वजह से एक बार फिर से यह मामला अटक गया सरकार ने 2019-20 में परिसीमन को निरस्त करते हुए पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग के आदेश जारी किए थे. हालांकि, इस बीच ओबीसी आरक्षण का मामला विवादों में आ गया था. वहीं, 27 फीसद ओबीसी आरक्षण को लेकर मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया. जिसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव को निरस्त कर दिया था.

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