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मध्य प्रदेश के इस शहर में है दुनिया की सबसे छोटी कुरान, 22 साल 5 महीने में हुई मुकम्मल

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मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में रीवा (Rewa) की तरहटी मोहल्ले में स्थित मन्नान मस्जिद अब हर जगह फेमस हो गई है. इस मस्जिद के फेमस होने के पीछे यहां रखी कुरान शरीफ है. दरअसल यहां दुनिया की सबसे छोटी कुरान शरीफ में से एक (One of the shortest Quran Sharif in the world) रखी हुई है. हाजी मोहम्मद अली अंसारी के पुराने मकान के आंगन में बनी इस मस्जिद के अंदर दुनिया की सबसे छोटी कुरान में से एक है. हिंदी अखबार दैनिक भास्कर से बातचीत में मन्नान मस्जिद के मुतव्वली मोहम्मद अली ने बताया कि, 7 पीढ़ियों से कुरान शरीफ को संभालकर और सहेजकर रखा गय़ा है.

मोहम्मद अली के पास जो कुरान है, वह ढाई सेंटीमीटर लंबी, डेढ़ सेंटीमीटर चौड़ी और एक सेंटीमीटर मोटी है. माचिस की डिब्बी से भी छोटी कुरान की सारी आयतें अरबी भाषा में लिखी हुई हैं. इसकी नक्काशी कुरान-ए-शरीफ से मिलती जुलती है.

22 साल की कढ़ी मेहनत के बाद तैयार हुई थी कुरान

अंसारी का दावा है कि सदियों पहले यह कुरान शरीफ हाथों से लिखी गई थी. हालांकि सात पीढ़ियों से इसे सहेजकर रखने वाले परिवार को भी नहीं पता कि इसे कब लिखा गया था. चमड़े के जिल्द में सोने की नक्काशी वाले पन्ने हैं. इसको पूरा होने में 22 साल 5 महीने लगे थे. माचिस की डिब्बी से भी छोटी कुरान में 86,450 शब्द है. वहीं उसके अंदर 3,23,760 अक्षर लिखे गए हैं.

कुरान को नंगी आंखों से पढ़ पाना है मु्श्किल

कुरान शरीफ को नंगी आंखों से पढ़ पाना बहुत मुश्किल है. इस पढ़ने के लिए बाहर लेंस लगाया गया है. दावा है कि बिना लेंस के कुरान को पढ़ना संभव नहीं है. तीस पारे की कुरान शरीफ में सारी आयतें लिखी हैं. इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग रीवा आते हैं. बुजुर्गों का कहना है कि यह विश्व की सबसे छोटी और दुर्लभ कुरानों में से एक है.

मन्नान मस्जिद का ये है इतिहास

1906 में रीवा शहर में भीषण अकाल पड़ा था. तब लोग भूख से बचने के लिए पलायन करने लगे थे. अंसारी ने दावा करते हुए बताया कि ऐसे हालात में तरहटी मोहल्ले में रहने वाले उनके पूर्वज आगे आए. उन्होंने लोगों को रोजगार और भोजन देने के लिए अपने घर के आंगन में पहली मस्जिद तामील कराई. दूसरी मस्जिद मनगवां और तीसरी मस्जिद गुढ़ में तामील हुई. उस समय दिन में मजदूर व्यंकट भवन में कार्य करते थे और रात में ​मस्जिद का. तब सैकड़ों लोगों ने परिवार का भरण-पोषण कर भूख से जंग जीती थी.

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