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मतदान के दूसरे चरण में गिरावट के संकेत से हार-जीत का अंतर कम हो सकता है, सभी राजनीतिक दलों में उत्साह और उत्तेजना |

by Nikhil

दूसरे चरण के मतदान में गिरावट के कारण हार-जीत का अंतर कम हो सकता है। इसके संबंध में सभी राजनीतिक दलों में हलचल देखी जा रही है। न केवल शहरी क्षेत्रों में, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी पूर्ववत उत्साह देखने में कमी आ रही है। दूसरे चरण के मतदान में आठ लोकसभा क्षेत्रों में 7.57 फीसदी की गिरावट आई है। इसके पीछे विभिन्न कारण बताए जा रहे हैं, जिसमें तेज धूप, खेतों में काम, और मतदाताओं में उत्साह की कमी शामिल हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सभी दलों को फायदा-नुकसान हो सकता है। विशेष बात यह है कि इससे हार-जीत की दरारें कम हो सकती हैं। इसके बावजूद, हर दल उत्सुक है कि कम मतदान का परिणाम किस प्रकार से प्रभावित होगा।

मेरठ, बागपत, अमरोहा, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, और मथुरा में दूसरे चरण के चुनाव हुए। 2014 में, यहां की औसत मतदान दर 69.46 फीसदी थी। उस समय, सभी आठ सीटों पर भाजपा का प्रभाव दिखाई दिया था। बसपा और सपा अलग-अलग मैदानों में थे। 2019 में, सपा-बसपा का गठबंधन हुआ।

मतदान में 6.70 फीसदी की गिरावट से मतदान का प्रतिशत 62.76 फीसदी रहा। बसपा को एक सीट मिली और चार सीटों पर वह दूसरे स्थान पर रही। हालांकि, इस चुनाव में भाजपा ने कई सीटों पर हार-जीत के अंतर में रिकॉर्ड कायम किया। इस चुनाव में 7.57 फीसदी की गिरावट हुई है। इससे हार-जीत के अंतर में गिरावट की संभावना है क्योंकि कई लोकसभा क्षेत्रों में मतदान में कांटे की टक्कर हुई है। मतदान में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पहले जैसा उत्साह नहीं दिखा गया। यहां तक कि सियासी जानकारों का मानना है कि मतदान प्रतिशत के आधार पर दलगत स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल है।

उदाहरण के रूप में, मथुरा में 2014 के मुकाबले 2019 में 1.03 फीसदी मतदान में गिरावट हुई, लेकिन भाजपा का वोट 7.55 फीसदी बढ़ गया। इसी तरह, अलीगढ़ में मतदान 2.30 फीसदी बढ़ा और भाजपा को वोटबैंक 8.08 फीसदी बढ़ गया।

विशेषज्ञ विचारक प्रो. अतरवीर सिंह, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ, के अनुसार, मतदान में गिरावट और बढ़ोतरी के अलग-अलग अर्थ होते हैं, और हर सीट का गणित अलग होता है। उनके अनुसार, मुस्लिम और दलित ज्यादा मतदान करने के कारण, कम मतदान से हार-जीत का अंतर कम हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि मतदान की कमी का कारण गर्मी, फसल कटाई, और उत्साह में कमी हो सकती है, जिससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहरी इलाकों के मतदाताओं का बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

दूसरे पक्ष से, प्रो. रतनलाल, दिल्ली विश्वविद्यालय, के अनुसार, जिन सीटों पर हार-जीत का अंतर ज्यादा है, वह कम मतदान से कम होगा। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में शहरी इलाकों के मतदाताओं के कम होने से सत्ता पक्ष को नुकसान हो सकता है, लेकिन यहां हार-जीत के अंतर पर अधिक प्रभाव पड़ेगा।

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