अंतरराष्ट्रीय मार्केट में खाद के रॉ मैटीरियल के रेट में लगातार वृद्धि हो रही है. मोदी सरकार (Modi Government) इस बढ़ोत्तरी का बोझ खुद पर ले रही है ताकि किसानों पर इसका असर न पड़े. सरकार ने खाद पर सब्सिडी बढ़ाकर 1.62 लाख करोड़ रुपये कर दी है. इसे 2023 तक 2.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है. खाद सब्सिडी (Fertilizer Subsidy) का ही कमाल है कि जिस यूरिया के एक बैग की असल कीमत 4,000 रुपये है वो आपको सिर्फ 267 रुपये में मिल रही है. जिस डीएपी के एक बोरे की कीमत 3851 रुपये होनी चाहिए थी वो आपको सिर्फ 1350 रुपये में मिल रही है. आपको यह भी जानना चाहिए कि दूसरे देशों में किसानों (Farmers) को खाद कितने में मिलती है?
केंद्र सरकार का दावा है कि चीन, अमेरिका और ब्राजील में खाद पर सब्सिडी नहीं है. पाकिस्तान में सब्सिडी है लेकिन इतनी नहीं है, इसलिए वहां पर खाद भारत के मुकाबले काफी महंगी है. इंडोनेशिया में यूरिया पर बहुत कम सब्सिडी है. कुल मिलाकर भारत के किसान ज्यादा खुशनसीब हैं कि उन्हें अपनी खेती के लिए सस्ता रासायनिक खाद मिल रहा है. यहां सरकार उर्वरकों के दाम (Fertilizer Price) का भार किसानों पर डालने का सियासी रिस्क नहीं लेना चाहती. इसलिए सब्सिडी बढ़ाए जा रही है.
उर्वरकों के दाम का तुलनात्मक ब्यौरा
(भारतीय रुपये में 50 किलो के बैग का दाम)
देश
यूरिया
डीएपी
एमओपी
भारत
266.70*
1350
1700
पाकिस्तान
791
4177
4577
इंडोनेशिया
593
9700
2900
चीन
2100
2400
2987
बांग्लादेश
719
719
673
अमेरिका
3060
3633
3060
ब्राजील
3600
4180
3825
Source: Ministry of Fertilizers। *45 किलो का बैग
क्या सब्सिडी के दबाव में हो रही प्राकृतिक खेती की बात
पिछले कुछ महीनों से देश में प्राकृतिक खेती की बात होने लगी है. जैविक खेती की बात तो काफी दिनों से हो ही रही थी. बताया जा रहा है कि हर साल खाद की बढ़ती मांग और दाम की वजह से सब्सिडी में तेजी से इजाफा हो रहा है. ऐसे में सरकार जैविक और प्राकृतिक खेती का रकबा बढ़ाकर रासायनिक उर्वरकों की खपत और उसकी सब्सिडी का बोझ कम करना चाहती है.
देश में करीब 14 करोड़ किसान है, जो एक बड़े वोटबैंक के तौर पर देखे जाते हैं. इसलिए सरकार सब्सिडी न बढ़ाने का कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती. सब्सिडी नहीं बढ़ेगी तो खाद के दाम में इजाफा होगा और किसान नाराज होंगे. ऐसे में प्राकृतिक और जैविक खेती के बहाने खाद की खपत कम करने का प्लान ज्यादा अच्छा है.
इस वक्त देश में 140 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि है. जिसमें से महज 40 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती होती है. जो कुल कृषि योग्य जमीन का 2.71 फीसदी है. जबकि करीब 4 लाख हेक्टेयर में प्राकृतिक खेती हो रही है. कृषि वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं जैविक खेती से फसलों का उत्पादन नहीं घटता.
कैसे कम होगी खाद की खपत?
कृषि विशेषज्ञ बिनोद आनंद का कहना है कि भारत में आजादी के बाद खाद्यान्नों की बहुत कम पैदावार हो रही थी. इसलिए रासायनिक खादों (Chemical Fertilizers) की मदद से हम इस मामले में आत्मनिर्भर हो गए. अब हमारे अनाज के गोदाम भरे हुए हैं और हमने एक ही साल में करीब 4 लाख करोड़ रुपये के कृषि उत्पादों का एक्सपोर्ट भी कर लिया है. ऐसे में हम यूरिया वाली खेती को छोड़ने का रिस्क लेने की स्थिति में हैं. अगर सरकार खाद की खपत कम करना चाहती है तो उसे तीन महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे.
सरकार का अनुमान है कि 2023 तक फर्टिलाइजर सब्सिडी 2.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है. इतनी सब्सिडी को डायरेक्ट किसानों के अकाउंट में रकबे के हिसाब से भेज दिया जाए.
फर्टिलाइजर सब्सिडी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के जरिए सीधे किसानों को मिलेगी तो किसान कम खर्च करेंगे. फर्टिलाइजर कंपनियों खाद सिर्फ कागजों में नहीं बनाएंगी. अभी कई कंपनियां सिर्फ कागजों में खाद बनी दिखाकर सब्सिडी हजम कर जाते हैं. इसीलिए सीजन में खाद की किल्लत हो जाती है.
सरकार खाद के लिए 50 किलो के बैग की जगह 10 और 5 किलो के छोटे बैग का भी इस्तेमाल करे. जब सब्सिडी का पैसा अकाउंट में आएगा और महंगी खाद (बिना सब्सिडी) के मिलेगी तो खपत कम होगी.
खाद के सभी पैकेट पर क्यूआर कोड और बारकोड हो, ताकि हर बोरी की ट्रेसेबिलिटी हो और इसकी ब्लैक मार्केटिंग न हो सके. इस काम को करने के लिए सरकार को कोई खास खर्च नहीं करना है.
सरकार के पास 11 करोड़ किसानों का केवाईसी है. इन सभी को पीएम किसान का पैसा भेजा जा रहा है. हर किसी के खेत का रकबा सरकार को पता है. ऐसे में फर्टिलाइजर सब्सिडी का पैसा कंपनियों की बजाय सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में भेजने में कोई दिक्कत नहीं होगी.