भारतीय वर्कफोर्स पर सीएमआईई (CMIE Report) के आंकड़ों पर आधारित ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट को पढ़ने के बाद पहले तो मैं हक्का-बक्का रह गया और फिर काफी निराश हुआ. 25 अप्रैल, 2022 को प्रकाशित इस रिपोर्ट में काफी विश्वास के साथ कहा गया है कि भारत के 900 मिलियन (Indians not Looking for Jobs) कर्मचारियों में से आधे से अधिक ने नौकरियां तलाश करना बंद कर दिया है. रिपोर्ट में जिस संख्या की बात की जा रही है वो संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस की संयुक्त आबादी के बराबर है. इससे भी हैरतअंगेज आंकड़े तो भारत में काम करने वाली या काम की तलाश में महिलाओं के प्रतिशत के बारे में था. बहरहाल, इस रिपोर्ट का उबाऊ निष्कर्ष यह है कि ये आंकड़े साबित करते हैं कि भारत के लिए बहुप्रतीक्षित और वादा किया गया जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic dividend) शायद कभी हकीकत में नहीं बदलेगा.
इसमें कोई समस्या नहीं होती अगर यह भारत में (बेरोजगार) रोजगार संकट (Unemployment Crisis in India) को उजागर करने वाला एक “ओपिनियन पीस” होता. इसमें भी कोई समस्या नहीं होती अगर ये “ओपिनियन पीस” युवा भारतीयों के लिए पर्याप्त रोजगार देने में विफल रहने के लिए नरेंद्र मोदी शासन की आलोचना कर रहा होता. इसमें भी कोई समस्या नहीं होती अगर यह स्तंभ यह कह रहा होता कि नरेन्द्र मोदी फासिस्टों के नायक हैं और अपने चुनावी जनादेश के साथ विश्वासघात कर रहे हैं. यह एक आज़ाद मुल्क है और यहां सभी तरह के विचारों का स्वागत किया जाना चाहिए. लेकिन यह तब नहीं चलेगा जब आप अपनी राय व्यक्त करने के लिए जिन आंकड़ों का इस्तेमाल करते हैं वह न सिर्फ काल्पनिक है बल्कि सरासर गलत भी है. किसी राय को आप नहीं भी मान सकते हैं लेकिन जहां तक आंकड़ों और संख्या की बात है तो वो निस्संदेह पवित्र होते हैं.
भारत में कुल कार्यबल 500 मिलियन से कम है
समाचार रिपोर्ट में इस तरह के बेतुके दावों को पेश करने के लिए सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट का इस्तेमाल किया गया है. अब, सीएमआईई एक स्वतंत्र निकाय है जो मीडिया, स्कालरों और नीति निर्माताओं को आंकड़े प्रदान करता है. आंकड़े निस्संदेह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अक्सर शासनों के बारे में बताता है. ये सभी के लिए लागू होता है चाहे वे एनडीए हो या यूपीए या फिर कोई भी अगर वो आंकड़ों के साथ बेइमानी या खिलवाड़ कर रहे हैं तो ये आंकड़े सरकार की नीयत का पर्दाफाश ही करते हैं. बेशक, सीएमआईई जैसी संस्था की जिम्मेदारी बहुत बड़ी है. अफसोस की बात है कि “विश्वसनीय आंकड़ों” की परीक्षा में सीएमआईई कम से कम इस बार पूरी तरह से विफल रहा है. मैं यह अनुमान नहीं लगाना चाहता कि आखिर ऐसा क्यों हुआ है. बस ऐसा उन्होंने किया है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसने उस वैश्विक विमर्श की आग में घी का काम किया है जिसमें दावा किया जाता है कि मोदी सरकार इतनी क्रूर है कि वह भारतीय अर्थव्यवस्था या भारतीय नागरिकों की कोई परवाह नहीं करती.
अब आंकड़ों को देखें. अध्ययन में दावा किया गया है कि इंडियन वर्कफोर्स की कुल संख्या 900 मिलियन (90 करोड़) है. विकिपीडिया, जो कि जानकारी का सबसे “अविश्वसनीय” स्रोत है, के अनुसार भारत का कुल कार्यबल 500 मिलियन से कम है. यदि आप विश्व बैंक के अनुमानों पर एतबार करें तो भारत में कुल कार्यबल 500 मिलियन से कम है. सीएमआईई के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 और 2022 की शुरुआत में 405 मिलियन से 420 मिलियन भारतीयों को रोजगार मिला था. लेकिन इस आंकड़े में भी एक ट्विस्ट है. सीएमआईई का मानना है कि कामकाजी उम्र के ज्यादातर भारतीय अब काम की तलाश में नहीं हैं. जनवरी 2022 की एक रिपोर्ट में सीएमआईई ने कहा है: “यदि कामकाजी उम्र की आबादी का केवल 38 प्रतिशत कार्यरत है और केवल 3 प्रतिशत काम करना चाहता है लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा है (जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में बेरोजगार), तो कामकाजी उम्र की आबादी का लगभग 59 प्रतिशत आबादी काम नहीं करना चाहती है. “भारत की समृद्धि का मार्ग न केवल 3 प्रतिशत बेरोजगारों के लिए रोजगार खोजने में है बल्कि शेष 59 प्रतिशत आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्सा को भी रोजगार दिलाना होगा.”
यह 900 मिलियन कार्यबल की संख्या कहां से आई? भारत की कुल जनसंख्या लगभग 1,360 मिलियन है. कम से कम 500 मिलियन 16 साल से कम या 60 साल से ऊपर के हैं. कम से कम 50 मिलियन से अधिक की आबादी माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ रही है और लगभग 10 मिलियन महाविद्यालयों में हैं या व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं. इसलिए कहा जा सकता है कि 900 मिलियन का आंकड़ा स्पष्ट रूप से बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है. यहां तक कि अगर आप इस परिभाषा के अनुसार चलते हैं कि 16 से 64 वर्ष की आयु के लोग कामकाजी उम्र के हैं तो भी कुल कार्यबल 700 मिलियन से अधिक नहीं होगा. मुद्दे की बात ये है कि अपने विश्लेषण की शुरुआत अत्यधिक अतिरंजित और गलत आंकड़ों से क्यों करें? यदि कोई 700 मिलियन के असंभव आंकड़ों के मुताबिक भी गणना करता है तो विमर्श और निष्कर्ष की पूरी इमारत ढह जाती है. निस्संदेह सीएमआईई का आंकड़ों के साथ दशकों पुराना ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है. इस बार भी उसे आंकड़ों के साथ सावधानी बरतनी चाहिए थी.
सीएमआईई के आंकड़े फर्जी हैं
अब हम आंकड़ों के एक और शानदार सेट पर आते हैं जो बताता है कि पिछले कुछ वर्षों में 21 मिलियन महिला कार्यबल से गायब हो गईं और वर्तमान में केवल 9 प्रतिशत महिलाएं या तो काम कर रही हैं या काम की तलाश में हैं. सीएमआईई के अनुमानों के अनुसार भारत में 50 मिलियन से भी कम महिलाएं काम कर रही हैं या काम की तलाश में हैं. हम जानते हैं कि सीएमआईई के आंकड़े फर्जी हैं. यहां तक कि अगर हम अभी भी अतिरंजित 700 मिलियन कार्यबल पर भरोसा करते हैं तो सीएमआईई हमें ये यकीन करने को कहेगा कि लगभग 35 मिलियन भारतीय महिलाएं काम कर रही हैं. मैंने पूरे भारत में यात्रा की है और आज तक किसी गरीब या कम आय वाले घर की ऐसी महिला से मुलाकात नहीं हुई है जो काम-काज नहीं कर रही है. यहां तक कि नीति आयोग भी मानता है कि लगभग 25 प्रतिशत भारतीय बहुआयामी गरीबी से पीड़ित हैं .
इस तरह बिना सोचे-विचारे और बिना शोध किए हुए गणना यह दिखाता है कि लगभग 100 मिलियन गरीब महिलाएं काम करती हैं. हाउस हेल्प, कंस्ट्रक्शन साइट वर्कर्स, नरेगा लाभार्थियों और आंगनवाड़ी वर्कर्स को देखें तो आपको अंदाजा हो जाएगा. हम यहां कम आय वाली महिलाओं को भी नहीं जोड़ रहे हैं जो ब्यूटीशियन, गारमेंट फैक्ट्री वर्कर, शॉप असिस्टेंट, कॉल सेंटर कर्मचारी, सेल्स गर्ल और न जाने क्या-क्या काम करती हैं. यह कहना अत्यंत ही हास्यास्पद होगा कि भारत में कामकाजी उम्र की 50 मिलियन से भी कम महिलाएं काम करती हैं. और भी बहुत सारे बिंदु हैं लेकिन सारे गलत विवरण को यहां पेश करने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है. शोधकर्ताओं के पास वैध कारण होते हैं कि वे अक्सर सरकारी आंकड़ों पर भरोसा नहीं करते हैं. लेकिन यह निश्चित ही दुखद दिन होगा अगर एक “स्वतंत्र” निकाय पूरी तरह से गलत नहीं तो चकमा देने वाले आंकड़े पेश करने लग जाए.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)