रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन दूसरे ऐसे प्रमुख शासनाध्यक्ष हैं, जो भारत की यात्रा पर आए हैं। इससे पहले भारत दौरे पर जापान के पीएम भी आए थे। साथ ही आस्ट्रेलियाई पीएम के साथ भारतीय पीएम की वर्चुअल शिखर वार्ता हो चुकी है। वाशिंगटन में भारत-अमेरिका के रक्षा एवं विदेश मंत्रियों के बीच विशेष बातचीत भी चल रही थी।
बता दें कि चीनी विदेश मंत्री समेत उन विदेशी मेहमानों की तो गिनती करना भी कठिन है, जो हाल में भारत आए। भारत का इस तरह अंर्तराष्ट्रीय कूटनीति के केंद्र में आना उसके बढ़ते कद का परिचायक है। जापान हो या अमेरिका, ब्रिटेन हो या आस्ट्रेलिया ये सब भारत के इस दृष्टिकोण से सहमत होने को विवश हैं कि वह इन सब देशों की तरह रूस से दूरी नहीं बना सकता है।
ब्रिटिश पीएम ने शायद इसी वजह से भारत के स्वतंत्र रुख पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी न करना ही सही समझा। यह बात अन्य देश भी समझे तो अच्छा, क्योंकि न तो भारत अपने हितों की अनदेखी कर किसी पाले में खड़ा होने वाला है और न ही अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के मामले में किसी दबाव में आने वाला है।
इसी के साथ ब्रिटिश पीएम ने कहा कि पीएम मोदी के साथ मेरी बातचीत व्यापक और उत्पादक थे। हमने भारत-यूके मैत्री में शामिल जमीन का जायजा लिया और सहयोग के नए क्षेत्रों पर भी चर्चा की। हमारी चर्चाओं में व्यापार, वाणिज्य, रक्षा और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों को प्रमुखता से रखा गया। मैंने भारत में सुधारों और उनके द्वारा लाए गए निवेश के अवसरों के बारे में बात की। हमने अपने युवाओं और स्टार्ट-अप्स के लाभ के लिए इनोवेशन इको-सिस्टम को मजबूत करने पर भी विचार-विमर्श किया है।
जैसा कि भारत अपनी आजादी के 75वें वर्ष का जश्न मना रहा है, मैं अपने देशों के बीच दोस्ती की गहराई और आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारे लोगों के लिए सुरक्षा और समृद्धि के बारे में बेहद आशावादी हूं। इस यात्र का जितना इंतजार भारत को था, उतना ही ब्रिटेन को भी, क्योंकि यूरोपीय समुदाय से अलग होने के बाद उसे भारत जैसी बड़ी आर्थिक शक्ति से संबंध सुदृढ़ करने की आवश्यकता महसूस हो रही थी।
बोरिस जानसन ने यह भी भरोसा दिलाया कि वह विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे लोगों को भारत को सौंपने के लिए तैयार हैं, बल्कि अपने यहां सक्रिय खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ भी कार्रवाई भी करेंगे। उनकी मानें तो ऐसे तत्वों पर निगरानी रखने के लिए एक विशेष कार्यबल का गठन किया गया है। भारत को इस पर ध्यान देना होगा कि यह कार्यबल उसकी अपेक्षाओं के हिसाब से काम करे।
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